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Geeta Sar : वर्षा यज्ञ संपन्न करने से होती है और...

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Published : Dec 2, 2022, 6:13 AM IST

Updated : Feb 3, 2023, 8:34 PM IST

आत्म-साक्षात्कार का प्रयत्न करने वाले मनुष्य दो प्रकार के होते हैं. कुछ इसे ज्ञान योग द्वारा समझने का प्रयत्न करते हैं तो कुछ भक्ति-मय सेवा के द्वारा. मनुष्य न तो कर्मों का आरंभ किये बिना निष्कर्मता को प्राप्त होता है और न ही कर्मों के त्याग मात्र से सिद्धि को प्राप्त होता है. कोई भी मनुष्य किसी भी अवस्था में क्षणमात्र भी कर्म किये बिना नहीं रह सकता क्योंकि प्रकृति के गुणों के अनुसार विवश होकर प्राणियों को कर्म करना ही पड़ता है. जो सम्पूर्ण इन्द्रियों को नियंत्रित करता है, किन्तु इन्द्रिय विषयों का मानसिक चिंतन करता रहता है, वह निश्चित रूप से स्वयं को धोखा दे रहा है और मिथ्याचारी कहलाता है. जो मनुष्य मन से इन्द्रियों पर नियंत्रण करके आसक्ति रहित होकर निष्काम भाव से समस्त इन्द्रियों के द्वारा कर्म योग का आचरण करता है, वही श्रेष्ठ है. मनुष्य को शास्त्र विधि से नियत किये हुए कर्म करना चाहिए क्योंकि कर्म नहीं करने से शरीर का सुचारू संचालन भी नहीं होगा. नियत कर्मों के अतिरिक्त किए जाने वाले कार्यों में लगा हुआ मनुष्य कर्मों से बंधता है, इसलिए मनुष्यों को आसक्ति रहित होकर कर्म करना चाहिए. वेदों में नियमित कर्मों का विधान है और ये साक्षात परब्रह्म से प्रकट हुए हैं. फलतः सर्वव्यापी ब्रह्म यज्ञ कर्मों में सदा स्थित रहता है. जो मानव जीवन में वेदों द्वारा स्थापित यज्ञ-चक्र का पालन नहीं करता, वह निश्चय ही पापमय जीवन व्यतीत करता है. ऐसे व्यक्ति का जीवन व्यर्थ है. सारे प्राणी अन्न पर आश्रित हैं, जो वर्षा से उत्पन्न होता है. वर्षा यज्ञ संपन्न करने से होती है और यज्ञ नियत कर्मों से उत्पन्न होता है. यज्ञों के द्वारा प्रसन्न होकर देवता तुम्हें भी प्रसन्न करेंगे और इस तरह मनुष्यों तथा देवताओं के मध्य सहयोग से सबको संपन्नता प्राप्त होगी.
Last Updated : Feb 3, 2023, 8:34 PM IST

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