ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र का जलाभिषेक - जल जगन्नाथ मंदिर के अंदर बने सोना-कुआँ से 108 घड़ों में निकाला जाता है
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की मूर्तियों को सुबह-सुबह जगन्नाथ पुरी के रत्नसिंहासन से स्नान मंडप पर लाया जाता है. इस प्रक्रिया को पोहंडी कहा जाता है, जिसमें मंत्रों का उच्चारण, घंटा, ढोल, बिगुल और झांझ की थाप के साथ जीवंत रूप देखने को मिलता है. देवताओं के स्नान के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला जल जगन्नाथ मंदिर के अंदर बने सोना-कुआं से 108 घड़ों में निकाला जाता है. इन सभी घड़ों के जल को मंदिर के पुजारी हल्दी जौ, अक्षत, चंदन, पुष्प और सुगंध से पवित्र करते हैं. इसके बाद इन घड़ों को स्नान मंडप में लाकर विधि विधान से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का स्नान संपन्न कराया जाता है जिसे जलाभिषेक कहते हैं. इसके बाद दोपहर में भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की मूर्तियों को फिर से हाथी-गणपति वेश पहनाकर तैयार किया जाता है. बाद में रात में तीन मुख्य देवता मंदिर परिसर में स्थित अनसर गृह में निवृत्त हो जाते हैं. अनसर अवधि के दौरान, भक्त अपने देवताओं को नहीं देख सकते हैं. हिंदू किवदंतियों के अनुसार, यह माना जाता है कि स्नान यात्रा अनुष्ठान के दौरान देवताओं को बुखार हो जाता है और 15 दिनों का एकान्त वास होता है.
Last Updated : Jun 24, 2021, 4:51 AM IST