जानें क्यों भगवान जगन्नाथ ने हनुमान को सोने की बेड़ियों में बांधा - कैलाश से महादेव
ओडिशा में स्थित पावन पुरी क्षेत्र को जगन्नाथ पुरी धाम के तौर पर जाना जाता है. यह सप्तपुरियों में एक पवित्र नगरी है और जिस तरह से महादेव शिव ने लोगों के कल्याण के लिए काशी को अपना निवास बनाया. ठीक उसी तरह द्वापरयुग की द्वारका के नष्ट हो जाने के बाद श्रीकृष्ण अवतार में विष्णु ने पुरी को अपना निवास बनाया. इस धाम के बारे में एक बहुत रोचक कथा किवदंतियों के रूप में प्रचलित है. हुआ यह कि जब भगवान नील माधव पुरी के राजा इंद्रद्युम्न के राज्य में पधारे तो उनके सभी भक्त दर्शन करने पहुंचे. स्वर्ग से देवता, कैलाश से महादेव, दक्षिण से कार्तिकेय और उत्तर से लोकपालों सहित श्रीगणेश भी आए. जगन्नाथ स्वामी ने सबको उनके अनुरूप इच्छानुसार उसी रूप में दर्शन दिया. इस अवसर पर चिरंजीवी हनुमान भी पधारे. उन्हें अपने प्रभु श्रीराम के दर्शन करने थे तो वे भी समुद्र पार कर चल पड़े. समुद्र ने जब उन्हें देखा तो वह भी उनके पीछे हो लिए. हनुमान जी ने तो श्रीराम के दर्शन कर लिए, लेकिन समुद्र के नगर में घुसने के कारण पूरा पुरी क्षेत्र जलमग्न हो गया. श्रीराम ने सागर को भी दर्शन दिए तो समुद्र लौट गया. लेकिन समुद्र को जब भी मन करता वह पुरी क्षेत्र में चला आता. तब जगन्नाथ जी ने हनुमान को आदेश दिया कि वह सागर को वहीं किनारे पर रोककर रखें. हनुमान जी समुद्र से पुरी क्षेत्र की रक्षा में जुट गए. लेकिन हनुमान भी भगवान के भक्त, वह भी श्रीराम के दर्शन करना चाहते थे. हनुमान जब भी पुरी में प्रवेश करते तो समुद्र उनके पीछे-पीछे चला आता. ऐसा तीन बार हुआ और पुरी क्षेत्र को बहुत हानि हुई. तब जगन्नाथ स्वामी श्रीराम के रूप में आए और हनुमान जी को समुद्र के किनारे ले जाकर सोने की बेड़ियों में बांध दिया और हंसते हुए कहने लगे, अब तुम दोनों भक्त यहीं से मेरे दर्शन करना. बेड़ी हनुमान मंदिर भक्त और भगवान के बीच अनूठे संबंध की कहानी कहता है. जगन्नाथ स्वामी के दर्शन करने वाले हर भक्त बेड़ी हनुमान जरूर जाते हैं. मान्यता है कि जो भक्त जगन्नाथ स्वामी के दर्शन करके आते हैं, हनुमान जी उन भक्तों की आंखों में झांक कर प्रभु राम के दर्शन करते हैं. प्रभु की आज्ञा पाकर हनुमान जी आज भी बेड़ियों में जकड़े हुए समुद्र से पुरी धाम की रक्षा कर रहे हैं. इस कथा का साक्षी है पुरी धाम में समुद्र के किनारे स्थित बेड़ी हनुमान मंदिर.