आज की प्रेरणा - हनुमान भजन
जो पुरुष अपने कर्मफल के प्रति अनासक्त है और जो अपने कर्तव्य का पालन करता है, वही संन्यासी और असली योगी है. वह नहीं, जो न तो अग्नि जलाता है और न कर्म करता है. जब कोई पुरुष समस्त भौतिक इच्छाओं का त्याग करके न तो इन्द्रिय तृप्ति के लिए कार्य करता है और न सकाम कर्म में प्रवृत्त होता है तो वह योगारूढ़ कहलाता है. मनुष्य को चाहिए कि अपने मन की सहायता से अपना उद्धार करे और अपने को नीचे न गिरने दे. यह मन बद्धजीव का मित्र भी है और शत्रु भी. जिसने मन को जीत लिया है उसके लिए मन सर्वश्रेष्ठ मित्र है, किन्तु जो ऐसा नहीं कर पाया उसके लिए मन सबसे बड़ा शत्रु बना रहेगा. जिसने मन को जीत लिया है, उसने पहले ही परमात्मा को प्राप्त कर लिया है, क्योंकि उसने शान्ति प्राप्त कर ली है. ऐसे पुरुष के लिए सुख-दुख, सर्दी-गर्मी एवं मान-अपमान एक से हैं. जो योगी ज्ञान और विज्ञान से तृप्त है, जो विकार रहित और जितेन्द्रिय है, जिसके लिए मिट्टी, स्वर्ण और पाषाण समान है, वह परमात्मा से युक्त कहलाता है. कभी न संतुष्ट होने वाले काम का आश्रय लेकर तथा गर्व के मद एवं मिथ्या में डूबे हुए आसुरी लोग, मोहग्रस्त होकर सदैव क्षणभंगुर वस्तुओं के द्वारा अपवित्र कर्म का व्रत लिए रहते हैं. जब मनुष्य निष्कपट हितैषियों, प्रिय मित्रों, तटस्थों, मध्यस्थों, ईर्ष्यालुओं, शत्रुओं तथा मित्रों, पुण्यात्माओं एवं पापियों को समान भाव से देखता है, तो वह और भी श्रेष्ठ माना जाता है. शरीर और मन को संयमित किया हुआ योगी एकान्त स्थान पर अकेले रहते हुए आशा और परिग्रह से मुक्त होकर निरन्तर मन तथा आत्मा को परमेश्वर में लगाए. जो खाने, सोने, आमोद-प्रमोद तथा काम करने की आदतों में नियम पूर्वक रहता है, वह योगाभ्यास द्वारा समस्त भौतिक क्लेशों को नष्ट कर सकता है. जब योगी अध्यात्म में स्थित हो जाता है अर्थात समस्त भौतिक इच्छाओं से रहित हो जाता है, तब वह योग में सुस्थिर कहा जाता है. यहां आपको हर रोज मोटिवेशनल सुविचार पढ़ने को मिलेंगे. जिनसे आपको प्रेरणा मिलेगी.