हैदराबाद : हर साल बड़ी संख्या में सेना, नौसेना और वायु सेना के जवान राष्ट्र के लिए अपनी जान गंवा देते या दिव्यांगता के शिकार हो जाते हैं. इन जवानों और उनके आश्रितों के कल्याण की जिम्मेदारी शासकों के साथ-साथ आम लोगों की भी है. राष्ट्र की सुरक्षा में उनके योगदान को साथ-साथ जरूरत के समय सशस्त्र बलों और आश्रितों के पुनर्वास व कल्याण की जिम्मेदारी के बारे में याद दिलाने के लिए हर साल सशस्त्र सेना झंडा दिवस मनाया जाता है.
देश के सशस्त्र बलों को युवा बनाए रखने के लिए सैन्य कर्मियों को 35-40 वर्ष की आयु में सेवानिवृति/अनिवार्य सेवानिवृति दे दी जाती है. एक अनुमान के मुताबिक हर साल 60000 सशस्त्र बलों के जवान सेवानिवृत हो जाते हैं. जब तक वे सुरक्षाबल में होते हैं तो शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हैं. इस दौरान उनमें नेतृत्व करने की बेहतरीन क्षमता के साथ-साथ वे अनुशासित जीवन जीते हैं. इन सैनिकों के देखभाल की जिम्मेदारी हमसबों की है. इसी जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए केंद्रीय सैनिक कल्याण बोर्ड काम करता है.
1949 से मनाया जाता है सशस्त्र सेना झंडा दिवस
सैनिक कल्याण के लिए धन सरकार के अलावा आम लोगों के डोनेशन से भी आता है. देशभर में 1949 से हर साल 7 दिसंबर को सशस्त्र सेना झंडा दिवस के रूप में मनाया जाता है. 13 अप्रैल 1993 को भारत सरकार के विशेष गजट में सभी सैन्य कल्याण कोषों को एकीकृत कर सशस्त्र सेना झंडा दिवस कोष में बदल दिया गया.
इस दिन देश भर छात्र, एनसीसी कैडेट्स, स्काउट एण्ड गाइड से जुड़े कैडेट्स, सैन्य कर्मी सहित सशस्त्र सेना झंडा दिवस कोष के लिए धन संग्रह करते हैं. इस दौरान सशस्त्र सेना झंडा दिवस का स्टीकरलगाकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को सशस्त्र सेना झंडा दिवस कोष और इसके बारे में जागरूक किया जाता है. इस अवसर देश के सशस्त्र बलों के तीनों अंग जैसे सेना, नौसेना और वायु सेना के कर्मियों को सर्वोच्च योगदान को भी याद किया जाता है.