आनुवांशिक बीमारी थैलेसिमिया एक ऐसा रोग है, जिसमें पीड़ित के शरीर में लाल रक्त कण बनने बंद हो जाते हैं, जिससे इससे शरीर में रक्त की कमी हो जाती है. इस रोग में पीड़ित को बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है.
यह एक ऐसा जटिल रोग है जो मातापिता से बच्चों को मिलता है, इसलिए आजकल यह भी कहा आने लगा है कि विवाह के समय जन्मपत्री मिलवाने से पहले लड़के और लड़की का एचबीए- 2 टेस्ट अवश्य करवाना चाहिए.
आंकड़ों की माने तो वर्तमान में भारत में लगभग 2,25,000 बच्चे थैलेसिमिया रोग से ग्रस्त हैं. लोगों को इस रोग के कारणों तथा उपचार के बारें में जागरूक करने के साथ ही इस रोग के साथ जीवन जीने के तरीकों के बारे में ज्यादा जानकारी देने के उद्देश्य से हर साल दुनिया भर में 8 मई को विश्व थैलेसिमिया दिवस मनाया जाता है.
इतिहास
विश्व थैलेसिमिया दिवस की शुरुआत वर्ष 1994 में थैलेसिमिया इंटरनेशनल फेडरेशन द्वारा की गई थी. तब से लेकर हर साल विश्व स्वास्थ्य संगठन के तत्वावधान में 8 मई को इस आनुवंशिक विकार, इसके कारणों, उपचार तथा इस रोग से पीड़त लोगों के संघर्ष के बारें में जन जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से यह दिवस मनाया जाता है.
थैलेसीमिया होने के कारण
दरअसल यह रोग महिलाओं एवं पुरुषों के शरीर में मौजूद क्रोमोज़ोम (जीन )में समस्या के कारण होता है. जो उनसे उनके बच्चों को मिलते हैं. थैलेसिमिया तीन प्रकार होता है माइनर थैलेसिमिया , थैलेसिमिया इंटरमीडिया तथा मेजर थैलेसिमिया. इनमें माइनर थैलेसिमिया को विकार की श्रेणी में नही रखा जाता है बल्कि उसे हल्का एनीमिया ही माना जाता है. वही थैलेसिमिया इंटरमीडिया में इस रोग के हल्के से लेकर गंभीर लक्षण तक देखने में आ सकते हैं. लेकिन मेजर थैलेसिमिया एक गंभीर अवस्था है. इस अवस्था में बच्चे के जन्म के छह महीने बाद से शरीर में खून बनना बंद हो जाता है और उसे बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है.
दरअसल हमारे रक्त में हीमोग्लोबीन दो तरह के प्रोटीन से बनता है अल्फा ग्लोबीन और बीटा ग्लोबीन. थैलासीमिया रोग इन दोनों प्रोटीन में ग्लोबीन निर्माण की प्रक्रिया में खराबी होने से होता है. इस अवस्था में रक्त की लाल रक्त कोशिकाएं तेजी से नष्ट होने लगती हैं. जिससे शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है और पीड़ित को बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है.
बच्चे के जन्म से पहले जांच जरूर कराएं
हमारे देश में वर्तमान समय में भारत में लगभग 2,25,000 बच्चे थैलेसिमिया रोग से पीड़ित हैं. विश्व स्वस्थ संगठन के अनुसार हर साल इस रोग के 10000 से ज्यादा मामले सामने आते हैं. आमतौर पर इस रोग के लक्षण बच्चे में 6 माह से लेकर 18 माह के भीतर नजर आने लगते हैं. जैसे बच्चे का रंग पीला पड़ने लगता है, उसे सोने में समस्या और उल्टी,दस्त, और बुखार जैसी परेशानियाँ होने लगती है, और उसकी भूख भी काफी कम हो जाती है. आमतौर पर थैलेसिमिया माइनर के पीड़ितों का दवाइयों से उपचार हो जाता है और वे सामान्य जीवन जी पाते हैं. लेकिन थैलेसिमिया मेजर में अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण, जीन थेरेपी या नियमित रूप से रक्त चढ़ाकर ही जीने की अवधि बढ़ाई जा सकती है.
थैलेसिमिया रोग से बचने के लिए विवाह से पहले होने वालए दम्पत्ति को अपना डीएनए परीक्षण (एचबीए- 2 ) जरूर करवाना चाहिए. इसके अलावा यदि किसी दंपति के जीन में समस्या हो तो ऐसे में जब महिला गर्भवती होती है तो उसे गर्भावस्था के दौरान नियमित जांच तथा चिकित्सक द्वारा बताई गई विशेष सावधानियों को अपनाना चाहिए तथा प्रसव के दौरान ज्यादा ध्यान रखना चाहिए.
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