कैंसर एक ऐसा रोग है, जिसकी गंभीरता और उसकी भयावहता से लगभग सभी लोग वाकिफ हैं। हालांकि चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति के चलते सही समय पर कैंसर का पता चलने पर उसका इलाज संभव है। लेकिन फिर भी हर साल बड़ी संख्या में लोग जागरूकता और सही समय पर सही इलाज के अभाव में विभिन्न प्रकार के कैंसर के चलते अपनी जान गंवा देते हैं। ग्लोबल कैंसर ऑब्जर्वेटरी (ग्लोबोकॉन) 2018 के अनुसार महिलाओं में जितने भी तरह के कैंसर होते हैं, उनमें डिंबग्रंथि या ओवेरियन कैंसर आठवां सबसे आम कैंसर है। मृत्यु दर के मामले में इसका स्थान पांचवां है।
दुनियाभर में ओवरी कैंसर को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 8 मई को विश्व ओवेरियन कैंसर दिवस के रूप में मनाया जाता है।
अंडाशय का कैंसर तथा उसके लक्षण
कैंसर चाहे किसी प्रकार का हो शरीर में अलग-अलग अंगों में असामान्य तंतुओं यानी सेल्स के निर्माण और उनके विकास के कारण पनपता है। ओवेरियन या यूटेरस कैंसर में अंडाशय में छोटी-छोटी सिस्ट बन जाती हैं। इस प्रकार का कैंसर होने पर गर्भधारण में समस्या होने की आशंका बढ़ जाती है तथा गर्भाशय और ट्यूब्स डैमेज होने लगती हैं।
आमतौर पर अंडाशय के कैंसर में लक्षण थोड़ी देर से नजर आते हैं। जिनमें से कुछ मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं;
- पेल्विस या कमर में दर्द।
- शरीर के निचले हिस्से में दर्द।
- पेट और पीठ में दर्द।
- अपच।
- कम खाकर ही पेट भरा होने की फीलिंग।
- बार-बार पेशाब आना।
- यौन क्रिया के दौरान दर्द।
- मल त्याग की आदतों में बदलाव।
जरूरी नहीं है की यह लक्षण अंडाशय के कैंसर का पक्का संकेत है। लेकिन इन लक्षणों के नजर आने पर अंडाशय के कैंसर होने की आशंका ज्यादा रहती है। इसलिए लक्षण नजर आने पर तुरंत चिकित्सीय जांच जरूरी है। रोग बचाव तथा निवारण केंद्र (सीडीसी) के अनुसार किसी भी प्रकार के असामान्य लक्षण नजर आने पर तत्काल चिकित्सीय सलाह तथा उसके उपरांत उसका उपचार इस रोग से निवारण की संभावना को काफी ज्यादा बढ़ा देता है।
अंडाशय के कैंसर को प्रभावित करने वाले तत्व
अंडाशय का कैंसर चार स्तरों पर फैलता है। पहले स्तर में यह दोनों ओवरी तक ही सीमित रहता है। दूसरे स्तर में यह पेल्विक एरिया तक फैल जाता है तथा तीसरे और चौथे स्तर में यह पेट और पेट के बाहरी अंगों तक फैल जाता है। आमतौर पर इस कैंसर के मूल कारण का पता अभी तक नहीं चल पाया है मगर कुछ कारक हैं, जो इस कैंसर को बढ़ाने का काम करते हैं; जैसे-
- परिवार में कैंसर का इतिहास।
- अगर किसी महिला को या परिवार के किसी सदस्य को स्तन कैंसर या कोलन कैंसर हुआ हो तो ओवेरियन कैंसर के होने का खतरा बढ़ जाता है।
- उम्र के 50-60वें पड़ाव के बाद इस कैंसर के होने का अनुमान रहता है।
- पीरियड्स का समय से पहले शुरू होना और देर से खत्म होना।
- मोटापा ।
- गर्भधारण ना कर पाना या अन्य प्रजनन संबंधी समस्याएं ।
- एंडोमेट्रियोसिस ।
- जीवन शैली से जुड़े कारण ।
- इसके साथ ही जिन महिलाओं ने एस्ट्रोजन हार्मोनल थेरेपी ली हो, उनमें भी ओवेरियन कैंसर के होने का खतरा बढ़ जाता है।
- बीआरएसीए1 तथा बीआरएसीए2 जैसे अनुवांशिक कारण ।
संकेत तथा उपचार
ओवेरियन कैंसर के परीक्षण की बात करें तो उसमें अल्ट्रासाउंड, एमआरआई या सीटी स्कैन द्वारा पेल्विक जांच की जाती है। खून की जांच में कैंसर एंटीजन 125 दर की जांच, एचसीजी लेवल की जांच, इन्हिबिन, एस्ट्रोजन और टेस्टोस्टेरोन दर की जांच के साथ रक्त जांच भी किया जाता है।
अंडाशय के कैंसर की पुष्टि होने के उपरांत आमतौर पर चिकित्सक उपचार के रूप में कुछ सर्जरी तथा कीमोथेरेपी की सलाह देते हैं। अंडाशय की सर्जरी के अतिरिक्त उपचार के लिए हार्मोन थेरेपी, रेडिएशन थेरेपी तथा इम्यूनोथेरेपी की मदद भी ली जाती है। इन सभी थेरेपी का उपयोग तथा उनकी आवृत्ति कैंसर की गंभीरता पर निर्भर करती है। कैंसर के इलाज का पूरे शरीर पर प्रभाव पड़ता है तथा उपचार के दौरान रोगी के शरीर पर गंभीर प्रभाव भी नजर आ सकते हैं। इसलिए बहुत जरूरी है कि उपचार शुरू कराने से पहले उसके विभिन्न चरणों तथा उसके शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में चिकित्सक से पूरी जानकारी ले ली जाए।
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कोविड-19 के दौर में कैंसर
वर्तमान समय में कोविड-19 के कारण उत्पन्न हुई परिस्थितियों में ज्यादातर लोग अपनी सामान्य समस्याओं या पहले से चल रहे इलाज के लिए भी अस्पताल जाने में घबराते हैं। वहीं अस्पतालों में भी सामान्य या गंभीर रोगों से पीड़ित रोगियों को बहुत ज्यादा जरूरत ना होने तक आने से मना किया जा रहा है। ऐसे में टेली कॉलिंग सामान्य तथा गंभीर रोगों से ग्रसित लोगों के लिए बड़ी मदद बनकर सामने आ रही है। समय की गंभीरता को देखते हुए विभिन्न विधाओं के बहुत से चिकित्सक वर्तमान समय में टेली कंसल्टेंसी यानी सामान्य फोन या वीडियो कॉल के जरिए लोगों की जांच कर उन्हें सलाह दे रहे हैं तथा उनका इलाज कर रहे हैं। इस तकनीक की मदद से ज्यादातर मामलों में ऐसे लोग जिन्हें अपने शरीर में किसी भी रोग से संबंधित लक्षण नजर आ रहे हो या फिर वे लोग जिनका पहले से किसी गंभीर रोग का इलाज चल रहा है, अपनी जांच और इलाज सुचारु रख पा रहे हैं।