विश्व लिम्फोमा जागरूकता दिवस पर चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि इस दिन उन लोगों की रक्षा करने के साधनों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जो संक्रमण के जोखिम और इसके प्रतिकूल प्रभाव में हैं. लिम्फोमा कैंसर के लिए एक व्यापक शब्द है, जो लसिका प्रणाली की कोशिकाओं में शुरू होता है. दो मुख्य प्रकार हॉजकिन लिंफोमा और नॉन-हॉजकिन लिंफोमा (NHL) हैं. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राणि विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने टी सेल लिंफोमा (एक प्रकार का इम्यून सेल कैंसर) में एक अत्यंत महत्वपूर्ण अध्ययन किया है. इस अध्ययन में पहली बार इस प्रकार के कैंसर को बढ़ाने में लाइसोफॉस्फेटिडिक एसिड (LPA) की भूमिका प्रदर्शित की गई है.
वैज्ञानिकों (Scientists from the Department of Zoology, Banaras Hindu University) के मुताबिक अभी तक टी सेल लिंफोमा (T cell lymphoma) बढ़ाने में एलपीए की भूमिका तथा टी सेल लिंफोमा के चिकित्सीय उपचार में एलपीए रिसेप्टर की संभावित क्षमता का मूल्यांकन नहीं किया गया है. लाइसोफॉस्फेटिडिक (Lysophosphatidic acid) सबसे सरल प्राकृतिक बायोएक्टिव फॉस्फोलिपिड्स में से एक है, जो ऊतकों की मरम्मत, घाव भरने और कोशिका के जीवित बने रहने में शामिल है. सामान्य शारीरिक स्थितियों के दौरान, एलपीए घाव भरने, आंतों के ऊतकों की मरम्मत, इम्यून सेल माइग्रेशन और भ्रूण के मस्तिष्क विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. हालांकि, डिम्बग्रंथि, स्तन, प्रोस्टेट और कोलोरेक्टल कैंसर (ovarian cancer, breast cancer, prostate cancer, and colorectal cancer) के मामलों में एलपीए व इसके रिसेप्टर का बढ़ा हुआ स्तर देखा गया है.
कोविड-19 का खतरा :लिम्फोमा से पीड़ित मरीजों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से कोविड-19 से संक्रमित होने का खतरा अधिक होता है. ऐसे में इन्हें उच्च जोखिम वाले समूहों में शामिल किया गया है. क्योंकि लिम्फोमा पीड़ितों को जानलेवा वायरस का शिकार होना पड़ता है. लेकिन किसी भी अध्ययन में यह सिद्ध नहीं हुआ है कि वायरस का सीधा प्रभाव लिम्फोमा या कैंसर पीड़ितों पर पड़ता है. हॉजकिन लिंफोमा को अक्सर ठीक किया जा सकता है. NHL का पूर्वानुमान विशिष्ट प्रकार पर निर्भर करता है. कैंसर कोई अकेली बीमारी नहीं है बल्कि इससे जुड़ी बीमारियों का समूह है. हमारे जीन, हमारी जीवनशैली और हमारे आस-पास के वातावरण में कई चीजें कैंसर होने के हमारे जोखिम को बढ़ा या घटा सकती हैं.
प्रतिरक्षा प्रणाली से समझौता : जिन रोगियों को कैंसर के उपचार से गुजरना पड़ता है, उन्हें प्रतिरक्षा प्रणाली से समझौता करना पड़ता है, जिससे वे संक्रमणों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं, जिनमें कोरोनोवायरस भी शामिल है. और हेमैटोकोलॉजिकल विकृतियों जैसे कि तीव्र माइलॉयड ल्यूकेमिया (AML), लिम्फोमा और मायलोमा विशेष रूप से कमजोर हो सकते हैं, क्योंकि ये कैंसर प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करते हैं.