दुनिया भर में लोगों को टीको की जरूरत तथा उनके महत्व के बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से 10 नवंबर को विश्व टीकाकरण दिवस बनाया जाता है.
विश्व टीकाकरण दिवस
दुनिया भर में बच्चों को गंभीर बीमारियों से दूर रखने के विभिन्न प्रकार की टीकों को लगाया जाना जरूरी किया गया है. जिसके लिए वृहद स्तर पर कार्यक्रम भी चलाए जाते हैं, लेकिन उसके बावजूद हर साल बहुत से बच्चे किसी ना किसी कारण से इन टीकों को नहीं लगवा पाते हैं. अगर बच्चों को महत्वपूर्ण टीके समय पर लगाए जाए, तो उन्हें कई जानलेवा बीमारियों से बचाया जा सकता है. आंकड़ों की मानें तो वर्ष 2003 में दुनिया भर में बच्चों की कुल आबादी के 85 प्रतिशत यानी लगभग 116 मिलियन बच्चों ने डिप्थीरिया टिटनस और परट्यूसिस की तीन-तीन खुराक ग्रहण की थी. लेकिन लगभग 20 मिलियन बच्चे ये जीवनदायी टीके नहीं ले पाए थे.
एनएचपी इंडिया के अनुसार भारत दुनिया भर में सबसे बड़े और वृहद स्तर पर टीकाकरण अभियान चलाने वाले देशों में से एक है. लेकिन दवाइयों की उपलब्धता, बड़ी संख्या में सरकारी विभागों तथा संस्थाओं की संलग्नता, दूरस्थ ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में टीकाकरण की सुविधा उपलब्ध कराए जाने के बावजूद बाल जनसंख्या के कुल 65 प्रतिशत बच्चे टीकाकरण का लाभ ले पाते हैं. शत-प्रतिशत बच्चों को टीकाकरण का लाभ मिले इसके लिए भारत सरकार द्वारा 2014 में इंद्रधनुष कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी. इसका मुख्य उद्देश्य ही था की गर्भवती महिला तथा नवजात सहित तमाम बच्चों को पूर्ण टीकाकरण का लाभ मिल सके.
टीकाकरण की जरूरत तथा महत्व
नेशनल हेल्थ पोर्टल के अनुसार हमारे शरीर में संक्रमण से बचाव रखने के लिए प्राकृतिक तौर पर प्रतिरक्षण क्षमता यानी इम्यूनिटी मौजूद होती है. शिशु के जन्म लेने के बाद शुरुआती सालों में शिशु की प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित हो रही होती है. जन्म से पहले माता के गर्भ में तथा जन्म के उपरांत माता के दूध पिलाने पर शिशु के शरीर को एंटीबॉडीज मिलती रहती हैं, जिनसे वह ज्यादातर संक्रमणों से सुरक्षित रहता है. लेकिन धीरे-धीरे एंटीबॉडीज की संख्या कम होने लगती है. उस समय शिशु के शरीर में संक्रमण से बचने के लिए एंटीबॉडीज उत्पन्न करने की जरूरत होने लगती हैं. जीवनदाई टीके शिशु के शरीर में एंटीबॉडीज विकसित करने में मदद करते हैं. ये एंटीबॉडीज इन्फेक्शन या संक्रमण पैदा करने वाले जीवाणुओं से हमारी रक्षा करते हैं और उसके ठीक होने के बाद भी हमारे शरीर में ही रहते हैं. यह हमारे शरीर में जिंदगी भर के लिए रक्षा करने के लिए रहते है.