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सीमित ही सही लेकिन क्षमताओं का जश्न है विश्व डाउन सिंड्रोम माह

डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक विकार है, जिसके चलते बच्चे का शारीरिक तथा मानसिक विकास बाधित हो जाता है. इस विकार से पीड़ित बच्चे सामान्य बच्चों से अलग नजर आते है. पूरे विश्व में डाउन सिंड्रोम को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से अक्टूबर महीने को 'विश्व डाउन सिंड्रोम माह’ के रूप में मनाया जाता है.

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विश्व डाउन सिंड्रोम माह

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Published : Oct 13, 2020, 4:21 PM IST

शारीरिक क्षमताओं का रोना रोने की बजाए कम ही सही, लेकिन जो क्षमताएं हैं, उनका जश्न मनाना जीवन में खुशी के कुछ क्षण दे देता है. इसी सोच के साथ हर साल अक्टूबर महीने को 'विश्व डाउन सिंड्रोम माह' के रूप में मनाया जाता है. इस अवसर को विभिन्न संगठन सिर्फ जागरूकता फैलाने वाले अभियान के रूप में नहीं बल्कि डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोगों की सीमित ही सही लेकिन उपलब्ध क्षमताओं का जश्न मनाने के लिए उत्सव के रूप में मनाते हैं. इस अवसर पर दुनिया भर में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोग सम्मिलित होते हैं.

विश्व डाउन सिंड्रोम माह तथा उसका इतिहास

विश्व डाउन सिंड्रोम माह के दौरान दुनिया भर में सरकारी तथा गैर सरकारी संगठनों द्वारा इस विकार के बारे में जन जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से कार्यक्रम तो आयोजित किए ही जाते हैं, साथ ही डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों तथा बड़े लोगों के लिए कई प्रकार के रंगारंग कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है.

इंग्लिश फिजिशियन जॉन लैंगडन डाउन ने सर्वप्रथम इस जेनेटिक डिसऑर्डर के बारे में अपने शोध में जानकारी दी थी. उन्हीं के नाम पर इस विकार का नाम डाउन सिंड्रोम रखा गया. जिसके उपरांत 1950 में फ्रेंच बाल रोग विशेषज्ञ तथा जेनेटिस्ट जेरोम लेजेऊन ने अपने शोध के माध्यम से दुनिया को इस बीमारी के मूल कारण, क्रोमोजोम के असंतुलन के बारे में बताया.

क्या है डाउन सिंड्रोम

डाउन सिंड्रोम को ट्राइसोमी 21 के नाम से भी जाना जाता है. यह एक जेनेटिक विकार है, जो कई बार आनुवांशिक कारणों से भी होता है. डाउन सिंड्रोम एक ऐसी समस्या है,जिसमें बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास आम बच्चों जैसा नहीं हो पाता है.इन बच्चों की शारीरिक संरचना भी आम बच्चों जैसी नहीं होती है. भ्रूण में क्रोमोजोम की मात्रा ज्यादा होने पर बच्चों में डाउन सिंड्रोम की बीमारी होती है. डाउन सिंड्रोम वाले लोगों को अल्जाइमर, मिर्गी, सुनने की क्षमता में कमी, कानों में संक्रमण, आंखों की कमजोरी, दिल में विकृति, थायराइड, एनीमिया, आंतों में अवरोध तथा मोटापे जैसी बीमारियों सहित कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है. एक शोध के मुताबिक हर साल पैदा हुए 1 हजार बच्चों में से एक में डाउन सिंड्रोम पाया जाता है. इस विकार में पीड़ित बच्चों की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और वह सामान्य बच्चों से अलग व्यवहार करता है.

डाउन सिंड्रोम के कारण

सामान्य रूप से शिशु 46 क्रोमोसोम के साथ पैदा होता है. 23 क्रोमोसोम का एक सेट शिशु अपने पिता से और 23 क्रोमोसोम का एक सेट अपनी मां से ग्रहण करता है. लेकिन डाउन सिंड्रोम तब होता है, जब माता या पिता अतिरिक्त क्रोमोसोम का योगदान करते हैं. डाउन सिंड्रोम से पीड़ित शिशु में एक अतिरिक्त 21वां क्रोमोसोम आ जाता है, जिससे उसके शरीर में क्रोमोसोम्स की संख्या बढ़कर 47 हो जाती है. ज्यादातर मामलों में यह एक आनुवांशिक बीमारी होती है. बच्चे में इस रोग के होने की आशंका तब ज्यादा बढ़ जाती है, जब जन्म देने वाली माता की उम्र 35 या उसके अधिक हो तथा उसके भाई या बहन इस विकार से पीड़ित हो. इसके अलावा यदि पहले बच्चे को डाउन सिंड्रोम है, तो दूसरे बच्चे में भी यह बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है.

डाउन सिंड्रोम के लक्षण

डाउन सिंड्रोम से पीड़ित अधिकतर बच्चों की मांसपेशियां और जोड़ ढीले होते हैं, जिसके कारण वह सामान्य रूप से चल- फिर नहीं पाते हैं. इन बच्चों में से ज्यादातर हृदय, आंत, कान या श्वास संबंधी समस्याओं के साथ पैदा होते हैं. सामान्य बच्चों की तुलना में, इन बच्चों में बुद्धि का स्तर काफी कम होता है. साथ ही इनका मानसिक के साथ शारीरिक विकास भी बहुत धीरे-धीरे होता है. लेकिन सही चिकित्सीय जांच और उचित मार्गदर्शन के साथ डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के जीवन को काफी हद तक सुधारा जा सकता है.

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