आमतौर पर विकलांगों को लेकर लोग दया या हीन भाव रखते हैं. लोगों को लगता है कि यदि कोई व्यक्ति विकलांग है कि इसका मतलब है कि वह निश्चित तौर पर दूसरों पर बोझ बना रहेगा. जो सही नहीं है. थोड़े से प्रयास से विकलांग व्यक्ति भी सामान्य जीवन जी सकते हैं. लोगों में इसी सोच को लेकर जागरूकता फैलाने, दुनिया भर में विकलांग या दिव्यांग जनों के अक्षमता से जुड़े मुद्दों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने तथा उनके उचित आर्थिक व सामाजिक विकास के लिए प्रयास करने के उद्देश्य से हर साल 3 दिसंबर को दुनिया भर में विश्व विकलांग दिवस या विश्व दिव्यांग दिवस मनाया जाता है.
आमतौर पर लोगों को लगता है कि चूंकि दिव्यांग किसी ना किसी मद में शारीरिक व मानसिक अक्षमता का शिकार होते हैं तो इसलिए वे आजीवन दूसरों पर बोझ बने रहते हैं. जबकि सत्य यह है कि कई प्रकार की दिव्यांगता में सही प्रशिक्षण, सही मौके तथा सही प्रयास की मदद से ना सिर्फ उनको आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है बल्कि वे समाज में बराबरी का जीवन भी जी सकते हैं. शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को देश की मुख्यधारा में लाने के उद्देश्य से हर साल वैश्विक पटल पर अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस मनाया जाता है.
दिव्यांगता का उद्देश्य तथा थीम (World Divyang Day 2022 Theme)
दिव्यांगों को लेकर समाज में व्याप्त पूर्वाग्रह और भेदभाव को दूर करने के लिए, उनसे जुड़े मुद्दों को लेकर दुनिया भर में लोगों को जागरूक करने तथा दिव्यांग लोगों को समाज में बराबरी के स्तर पर लाने के लिए उन्हें आर्थिक व सामाजिक रूप से सुदृढ़ बनाने के मौके पैदा करने के लिए प्रयास करने के उद्देश्य से हर साल दुनिया भर में 3 दिसंबर को विश्व दिव्यांग दिवस मनाया जाता है.
इस वर्ष विश्व दिव्यांगता दिवस का थीम "जो भविष्य हम चाहते हैं, उसके लिए 17 लक्ष्यों को प्राप्त करना" हैं. गौरतलब है कि वर्ष 2016 में भी दिव्यांग व्यक्तियों के लिए 17 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजीएस) को अपनाने तथा इन लक्ष्यों की भूमिका से विश्व को अधिक समावेशी और न्यायसंगत बनाने के उद्देश्य से इसी थीम के साथ विश्व विकलांगता दिवस मनाया गया था.
क्या कहते हैं दिव्यांगता के आँकड़े
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में दिए गए एक अनुमान के अनुसार विश्व आबादी का करीब 15%, यानि एक अरब से अधिक लोग किसी ना किसी प्रकार की दिव्यांगता से पीड़ित हैं. जिनमें से 80% विकासशील देशों में रहते है.
वहीं संयुक्त राष्ट्र बाल कोष द्वारा नवम्बर 2021 में जारी की गई एक रिपोर्ट की माने तो विश्व भर में क़रीब 24 करोड़ विकलांग बच्चे हैं. यानि हर दस में एक बच्चा दिव्यांगता का शिकार है. रिपोर्ट के अनुसार 18 वर्ष व उससे अधिक उम्र की महिलाओं में, दिव्यांगता की औसत दर जहां 19% है( क़रीब हर पाँच में से एक महिला) वहीं पुरुषों के लिये यह आँकड़ा 12 % का है. वहीं विश्व में लगभग 80 करोड़ दिव्यांगजन कामकाजी उम्र के हैं.
रिपोर्ट के अनुसार दिव्यांगता की अवस्था में रहे पुरुषों, महिलाओं व बच्चों को आमतौर पर व्यवस्थागत तथा सामाजिक अवरोधों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका सामाजिक व आर्थिक दर्जा प्रभावित होता है. चिंता की बात यह है कि अधिकांश दिव्यांग अलग-अलग कारणों से जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं का फायदा नहीं ले पाते हैं, मनचाही शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं और यहां तक कि उन्हें समाज में रोजगार के अवसर भी बहुत कम मिल पाते हैं. ऐसे में विश्व दिव्यांग दिवस एक मौका है, जो दिव्यांगों को लेकर समाज में व्याप्त पूर्वाग्रह और भेदभाव को दूर करने के लिए राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न समुदायों को प्रयास करने के लिए एक मंच देता है, जिससे दुनिया भर के दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करने तथा उनके लिए एक बाधा मुक्त समाज की स्थापना करने में सफलता मिल सके. हालांकि इसमें काफी हद तक सफलता भी मिली है. लेकिन अभी भी रोजगार, शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में दिव्यांगों को पूरे अधिकार नहीं मिल पाते हैं.
क्या है दिव्यांगता और उसके कारण
गौरतलब है कि दिव्यांगता शब्द में शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार की दिव्यांगता शामिल होती है. मुख्य रूप से यदि दिव्यांगता की श्रेणियों कि बात करें तों आमतौर पर निम्नलिखित समस्याओं से पीड़ित लोगों को दिव्यांगता की श्रेणी में रखा जाता जाता है.