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World Birth Defects Day 2023: जन्मजात विकलांगता-विसंगतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है- विश्व जन्म दोष दिवस - Birth Defects Day

दुनियाभर में जन-जन को जन्मजात विसंगतियों तथा उनसे जुड़े कारकों को लेकर जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 3 मार्च को “विश्व जन्म दोष दिवस” मनाया जाता है. World Birth Defects Day 2023

विश्व जन्म दोष दिवस
World Birth Defects Day 2023

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Published : Mar 3, 2023, 1:37 PM IST

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वैश्विक स्तर पर लगभग 8 मिलियन नवजात शिशु हर साल जन्म दोष के साथ पैदा होते हैं. वहीं यह आंकड़ा भारत में 1.7 मिलियन से अधिक का हैं. सिडीसी के अनुसार जन्म दोष या जन्मजात विसंगतियां जन्मस्थान, नस्ल या जातीयता की परवाह किए बिना शिशुओं को प्रभावित करते हैं तथा इन्हें दुनिया भर में नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों की मृत्यु के प्रमुख कारणों से एक माना जाता है. चिंता की बात यह है कि इन विसंगतियां से बच्चे यदि ठीक हो भी जाते हैं तो ऐसे उनमें से कई को आजीवन विकलांगता का सामना भी करना पड़ सकता है.

जन्म दोष के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों और संगठनों को एकजुट करने तथा जन्मजात विसंगतियों के बारे में विशेषकर उनकी रोकथाम, निगरानी और देखभाल के बारे में आमजन में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 3 मार्च को “ विश्व जन्म दोष दिवस” मनाया जाता है.

क्या है जन्म दोष जन्मजात विसंगतियां
जन्मजात विसंगतियों में कई प्रकार के जन्म दोष शामिल हो सकते हैं. जन्मजात विसंगती दरअसल उस अवस्था को कहते हैं जब बच्चा किसी दोष, विकृति, विकार या रोग के साथ ही जन्म लेता है. आम तौर पर जिन जन्मजात विसंगतियों के मामले सबसे ज्यादा देखने सुनने में आते हैं , उनमें मुख्य हैं कटे होंठ या तालू, डाउन सिंड्रोम, जन्मजात बहरापन, ट्राईसोमी 18 , क्लबफुट, हृदय दोष, न्यूरल ट्यूब दोष, सिकेलसेल एनीमिया तथा सिस्टिक फाइब्रोसिस तथा क्रोमोसोमल असामान्यताएं आदि. जन्मजात विसंगतियों के लिए आमतौर पर एक या अधिक आनुवंशिक समस्याओं , गर्भवती माता में या गर्भ में बच्चे में किसी प्रकार का रोग/ संक्रमण या पोषण में कमी तथा कुछ वातावरणीय व पर्यावरणीय कारक आदि को जिम्मेदार माना जा सकता है. दरअसल अलग अलग प्रकार के दोष के लिए जिम्मेदार कारक भी भिन्न हो सकते हैं.

क्या कहते हैं आंकड़े
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में, जन्म दोष, बाल मृत्यु दर का तीसरा सबसे आम कारण और नवजात मृत्यु दर का चौथा सबसे आम कारण है. जो सभी नवजात मौतों का लगभग 12% है. उपलब्ध सूचना के अनुसार वर्ष 2010 और 2019 के बीच, इन क्षेत्रों में बाल मृत्यु दर के लिए जन्म दोष का अनुपात 6.2% से बढ़कर 9.2% हो गया था .वहीं वर्ष 2019 में, जन्म दोषों के कारण 1,17, 000 मृत्यु की बात कही गई थी.

दक्षिण पूर्व एशिया के लिए डब्ल्यूएचओ की क्षेत्रीय निदेशक डॉ पूनम खेत्रपाल सिंह ने विश्व जन्म दोष दिवस के अवसर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट पर जारी सूचना में बताया है कि डब्ल्यूएचओ विश्व जन्म दोष दिवस के मौके पर दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के देशों और विश्व स्तर पर जन्म दोषों को रोकने, उनका पता लगाने तथा उनके प्रबंधन व देखभाल के लिए स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है.

डॉ पूनम खेत्रपाल सिंह ने सूचना में बताया है कि वर्ष 2014 से, डब्ल्यूएचओ द्वारा लगातार सभी देशों में तेजी से मातृ, नवजात और बाल मृत्यु दर में कमी लाने के लिए तथा जन्म दोषों की रोकथाम, उनका पता लगाने, प्रबंधन और देखभाल के लिए लगातार लक्षित कार्रवाई की जा रही है. वहीं संगठन द्वारा कई देशों में अस्पताल आधारित जन्म दोष निगरानी भी शुरू की गई है. साथ ही जन्म दोषों को रोकने और प्रबंधित करने के लिए कई राष्ट्रीय कार्य योजनाओं को भी लागू किया गया है.

वह बताती हैं कि डब्ल्यूएचओ का मानना है कि प्रत्येक बच्चे को गुणवत्ता व व्यापक स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं तक पूर्ण पहुंच के साथ जीवित रहने और फलने-फूलने का पूरा अधिकार है. अपने इसी उद्देश्य को लेकर डब्ल्यूएचओ क्षेत्र के सभी देशों में जन्म दोषों को रोकने, उनका पता लगाने तथा उनके प्रबंधन व देखभाल के लिए स्वास्थ्य प्रणालियों को तत्काल मजबूत करने के लिए समर्थन देने के लिए प्रतिबद्ध हैं..

क्या है निवारण और सावधानियां
जानकारों तथा चिकित्सकों की माने तो कई संरचनात्मक जन्मजात विसंगतियों को चिकित्सा व सर्जरी की मदद से ठीक किया जा सकता है. वहीं आजीवन चलने वाली थैलेसीमिया (वंशानुगत रक्त विकार), सिकल सेल विकार, और जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म (थायराइड का कम कार्य) जैसी कार्यात्मक समस्याओं में बच्चों को लगातार उपचार तथा थेरेपी काफी हद तक सामान्य जीन जीने में मदद कर सकती है. अलग अलग प्रकार की जन्मजात विसंगतियों के बचने के लिए जरूरी हैं कि पीड़ित कुछ बातों का विशेष ध्यान रखें. जैसे...

  1. गर्भावस्था में चिकित्सक के परामर्श पर महिलाएं सभी प्रकार की सब्जियों, अनाज व दालों तथा फलों से युक्त स्वस्थ आहार लें , जिससे शरीर को जरूरी पोषण मिल सके.
  2. गर्भस्थ महिलाओं को गर्भधारण से पहले तथा गर्भावस्था के दौरान हानिकारक पदार्थों, विशेषकर शराब और तंबाकू से दूर रहना चाहिए.
  3. गर्भवती महिलाएं नियमित अंतराल पर चिकित्सक से अपनी स्थिति को लेकर परामर्श जरूर लें.
  4. वजन को नियंत्रित रखने का प्रयास करें.
  5. गर्भावस्था की शुरुआत से लेकर पूरी अवधि तक चिकित्सक द्वारा बताई गई सावधानियों का पालन करें.

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