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न्यूरोलॉजिकल अवस्था है ऑटिज्म : विश्व ऑटिज्म जागरूकता सप्ताह

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Published : Mar 31, 2021, 11:17 AM IST

Updated : Mar 31, 2021, 5:16 PM IST

ऑटिज्म एक ऐसी अवस्था है, जिसे लेकर लोगों के मन में बहुत से भ्रम तथा प्रश्न व्याप्त हैं। लोगों के इन्हीं भ्रमों को दूर करने तथा ऑटिज्म को लेकर उनमें जन जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 29 मार्च से 4 अप्रैल तक 'विश्व ऑटिज्म जागरूकता सप्ताह' का आयोजन किया जाता है।

Autism Awareness Week
ऑटिज्म जागरूकता सप्ताह

आमतौर पर हम घर के बड़े बुजुर्गों को बच्चों के हाइपर तथा कई बार क्रोधी व्यवहार के बारे में कहते हुए सुनते हैं कि उनके समय में बच्चे ऐसा व्यवहार नहीं करते थे। यह एक सामान्य बात है। सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा स्वस्थ रहे, अच्छे से बढे़ और खुशमिजाज बने। लेकिन कभी-कभी कुछ बच्चों के व्यवहार में अन्य बच्चों के मुकाबले असहजता तथा असमान्यताएं नजर आने लगती हैं, जो धीरे-धीरे सभी का ध्यान अपनी ओर खींचने लगती है। ऐसा ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के कारण हो सकता है। 'विश्व ऑटिज्म जागरूकता सप्ताह' के उपलक्ष्य में अपने स्तर से एक प्रयास करते हुए ETV भारत सुखीभवा की टीम ने ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के बारे में बाल मनोवैज्ञानिक तथा ऑटिज्म के क्षेत्र में कार्य कर रही समृद्धि पाटकर से बात की।

क्या है ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर?

समृद्धि पाटकर बताती हैं कि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक तरह की न्यूरोलॉजिकल अवस्था है, जो लोगों की संवाद स्थापित करने तथा सामाजिक मेलजोल बनाने की क्षमता पर असर डालती है। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों तथा बड़ो में आमतौर पर दूसरों से संपर्क साधने तथा संवाद बनाने की क्षमता में कठिनाई, किसी भी कार्य को बार-बार दोहराने की आदत, इंद्रियों से जुड़ी समस्याएं तथा वातावरण के साथ सामंजस्य बैठाने में कठिनाई जैसी समस्याएं देखने और सुनने में आती हैं। गौरतलब है ऑटिज्म से पीड़ित लोगों की समस्याएं, जरूरतें तथा उनके लक्षण व संकेत अलग-अलग हो सकते हैं।

ऑटिज्म को विशेषज्ञ बीमारी नहीं मानते हैं, क्योंकि इससे पीड़ित बच्चों का मानसिक विकास सामान्य बच्चों की तुलना में धीमी गति से होता है, लेकिन निरंतर होता है। इस अवस्था से पीड़ित कई बच्चों में गणित, साहित्य, कंप्यूटर, पेंटिंग तथा संगीत सहित अलग-अलग विषयों तथा कलाओं से जुड़े गुण तथा कौशल भी नजर आते हैं। हालांकि यह क्षमता सभी ऑटिस्टिक बच्चों में नहीं होती है, लेकिन यदि सही समय पर इस अवस्था के बारे में जानकारी मिल जाए, तो पीड़ित बच्चे अपनी लगन के बल पर तथा सही दिशा निर्देश मिलने पर काफी हद तक इस अवस्था के चलते सामने आने वाली कठिनाइयों का सामना करने के लिए तैयार हो सकते हैं।

ऑटिज्म की जांच तथा उसके उपचार

समृद्धि पाटकर बताती हैं कि आमतौर पर बच्चों में 18 महीने या उससे भी कम समय में ऑटिज्म के थोड़े-थोड़े लक्षण नजर आने लगते हैं, जिन्हें बाल रोग विशेषज्ञ तथा अनुभव प्राप्त क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक सरलता से भांप सकते हैं। लेकिन बच्चे में ऑटिज्म की पुष्टि उसकी गहन जांच तथा निरीक्षण के उपरांत ही होती है।

बच्चों में सही समय पर ऑटिज्म का पता चलने के उपरांत उनके खानपान तथा दवाइयों पर आधारित विभिन्न उपचारों, इंद्रियों के विकास संबंधी व बोलने और भाषा संबंधी थेरेपियों तथा पिक्चर एक्सचेंज इनफार्मेशन सिस्टम (पीईसीएस), ट्रीटमेंट एंड एजुकेशन ऑफ ऑटिस्टिक एंड कम्युनिकेशन रिलेटेड हैंडिकैप्ड चिल्ड्रन (टीईएसीसीएच), एप्लाइड बिहेवियरल एनालिसिस (एबीए) जैसी पद्धतियों से बच्चे की मदद करने का प्रयास किया जाता है। इन सभी उपचारों तथा पद्धतियों में पीईसीएस का विशेष स्थान है, क्योंकि कई शोध के नतीजे बताते हैं कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे चित्रों के माध्यम से बातों और परिस्थितियों को ज्यादा बेहतर ढंग से समझ पाते हैं, क्योंकि उनमें चित्रों को याद रखने की क्षमता काफी ज्यादा होती है।

जीवन पर्यंत तक चलने वाली अवस्था है ऑटिज्म

समृद्धि पाटकर बताती हैं कि ऑटिज्म एक ऐसी अवस्था है, जो जीवन पर्यंत तक चलती है। किसी भी उपचार या थेरेपी से इस समस्या का पूर्णत्या निस्तारण संभव नहीं है। लेकिन समय पर इस समस्या के बारे में जानकारी मिल जाने पर विभिन्न साधनों तथा उपचारों की मदद से बड़ी संख्या में ऑटिस्टिक बच्चों को इतना सक्षम बनाया जा सकता है कि वह अपनी देखभाल स्वयं कर सके। यह सत्य है कि ऑटिस्टिक बच्चे शारीरिक गतिविधियों तथा दूसरों से संवाद स्थापित करने में ज्यादा सक्षम नहीं होते हैं, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि उनका दिमाग कुंद होता है। क्योंकि ऐसे बच्चों का दिमाग ज्यादातर एक ही दिशा में केंद्रित होता है, इसलिए उनमें लगन तथा सोचने और सीखने की क्षमता में कमी नहीं होती है। समृद्धि पाटकर बताती हैं कि ऑटिस्टिक बच्चों तथा बड़ों के लिए वैकल्पिक संचार की संभावनाएं बढ़ाने के उद्देश्य से 'आवाज एसीसी' तथा उस जैसी कुछ अन्य ऐप चित्र आधारित गतिविधियों पर कार्य कर रही हैं।

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सही दिशा में इलाज जरूरी

समृद्धि पाटकर बताती हैं कि ऑटिज्म के लक्षण तथा उससे जुड़े संकेत बच्चों में अलग-अलग हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त बच्चे में ऑटिज्म की प्रवृत्ति भी अलग-अलग प्रकार की हो सकती है। इसलिए बहुत जरूरी है कि शुरुआती लक्षणों के आधार पर बच्चे की किसी विशेषज्ञ से जांच कराई जाए तथा उसके उपरांत ही उसके इलाज की प्रणाली तय की जाए। ऑटिज्म को लेकर वर्तमान समय में बहुत से उपचार तथा थेरेपिया जरूरतमंदों को प्रदान की जा रही है। लेकिन यह उपचार तथा थेरेपी तभी फायदा करते हैं, जब वे ऑटिज्म के लक्षणों व संकेतों पर आधारित हो। इस अवस्था से लड़ने तथा उससे जीतने के लिए बहुत जरूरी है कि पीड़ित, उसके परिजनों तथा चिकित्सक के बीच सामंजस्य तथा विश्वास हो।

इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए samrudhi.bambolkar@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

Last Updated : Mar 31, 2021, 5:16 PM IST

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