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Published : May 4, 2021, 1:15 PM IST

ETV Bharat / sukhibhava

कोरोना काल में ज्यादा सचेत रहे अस्थमा रोगी : विश्व अस्थमा दिवस

ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा द्वारा हर वर्ष मई के प्रथम सप्ताह में 'विश्व अस्थमा दिवस' मनाया जाता है। अस्थमा जोकि फेफड़ों की बीमारी है, एक ताउम्र रहने वाली बीमारी है, जिसे रोग प्रबंधन के जरिए नियंत्रण में रखा जा सकता है। कोरोना काल में अस्थमा के रोगियों को लेकर ज्यादा चिंता जताई जा रही है, क्योंकि कोरोना सबसे पहले फेफड़ों को प्रभावित करता है। ऐसे में अस्थमा रोगियों के लिए समस्याएं अपेक्षाकृत ज्यादा बढ़ने की आशंका रहती है। इसीलिए जानकार कोरोना काल में अस्थमा रोगियों को ज्यादा सचेत रहने की सलाह दे रहे हैं।

World Asthma Day
विश्व अस्थमा दिवस

फेफड़ों की बीमारी अस्थमा दुनिया भर में बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित करती है। डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वैश्विक स्तर पर 339 मिलियन से अधिक लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। 2016 में वैश्विक स्तर पर अस्थमा के कारण 4,17,918 लोग ने अपनी जान गंवाई थी। कोरोना संक्रमण के चलते वर्तमान समय में अस्थमा पीड़ितों को ज्यादा जटिलताओं का सामना करना पड़ रहा है। वैश्विक स्तर पर लोगों में अस्थमा के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 'विश्व अस्थमा दिवस' मनाया जाता है।

विश्व अस्थमा दिवस

दुनिया भर में अस्थमा को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा, द्वारा विश्व अस्थमा दिवस आयोजित किया जाता है। 1993 में स्थापित ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा, विश्व स्वास्थ्य संगठन सहयोगी संस्था है। इस वर्ष के विश्व अस्थमा दिवस 'अनकवरिंग अस्थमा मिसकन्सेप्शन' थीम पर मनाया जा रहा है, जिसका मतलब है अस्थमा से जुड़ी भ्रांति को उजागर करना और उन्हें दूर करना। ऐसा इसलिए क्योंकि अस्थमा पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है, मगर अस्थमा अटैक को कम करने और रोकने के लिए अस्थमा को प्रबंधित करना संभव है।

क्या है अस्थमा

अस्थमा फेफड़ों की बीमारी है। माना जाता है की इसका कोई स्थाई इलाज मौजूद नहीं है, मगर इसके लक्षणों को काबू में रख कर इस समस्या पर नियंत्रण किया जा सकता है। दमे के नाम से मशहूर सांस की इस बीमारी में मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है। इस बीमारी में सांस की नली में सूजन या पतलापन आ जाता है। जिससे फेफड़ों पर अतिरिक्त दबाव महसूस होता है। ऐसे में सांस लेने पर दम फूलने लगता है, खांसी होने लगती है और सीने में जकड़न के साथ-साथ घर्र-घर्र की आवाज आती है। अस्थमा से किसी भी उम्र के लोग प्रभावित हो सकते हैं। समान्यतः ये बचपन में ही शुरू हो जाता है, हालांकि इसके लक्षण किशोरों में भी नजर आ सकते हैं।

अस्थमा दो प्रकार का माना जाता है, बाहरी और आंतरिक अस्थमा;

  1. बाहरी अस्थमा : यह फूलों और पौधों के पराग, जानवरों, धूल व गंदगी तथा कॉकरोच जैसे कीड़ों के कारण हो सकता है।
  2. आंतरिक अस्थमा:यह कुछ विशेष रसायनों के किसी भी माध्यम से शरीर में प्रवेश करने के कारण होता है। प्रदूषण और किसी भी प्रकार का धूम्रपान भी इस प्रकार के दमें का कारण बन सकता है। आमतौर पर इस बीमारी का मुख्य असर मौसम के बदलाव के साथ दिखता है।

अस्थमा के लक्षण

अस्थमा के लक्षण हर किसी में अलग-अलग नजर आते हैं। कुछ लोगों में यह स्थाई होते हैं, तो कुछ लोगों में विशेष परिस्थितियों में नजर आते हैं। आमतौर पर अस्थमा के कारण पीड़ित को रात में या सुबह तड़के, ठंडी हवा या कोहरे से, ज्यादा कसरत करने पर तथा बारिश या ठंड के मौसम में ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

कई बार अस्थमा के लक्षण की तीव्रता काफी ज्यादा बढ़ जाती है, जिसके कारण अस्थमा के दौरा पड़ने की आशंका बढ़ जाती है। अस्थमा के कुछ आम लक्षण इस प्रकार हैं;

  • सांस फूलना
  • लगातार खांसी आना
  • छाती घड़घड़ाना यानी छाती से आवाज आना
  • छाती में कफ जमा होना
  • सांस लेने में अचानक दिक्कत होना
  • छाती में जकड़न- ऐसा लगता है, मानो किसी ने कोई रस्सी बांध दी हो

अस्थमा के कारण

अस्थमा कई कारणों से हो सकता हैं, जिनमें से कुछ विशेष कारण इस प्रकार हैं;

  1. वायु प्रदूषण : अस्थमा अटैक के अहम कारणों में वायु प्रदूषण भी है। धूल, हवा में मौजूद हानिकारक गैस, कारखानों से निकलने वाला धुआं, धूप-अगरबत्ती और कॉस्मेटिक जैसी सुगंधित चीजों से अस्थमा के रोगियों की समस्याएं बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है।
  2. धूम्रपान: धूम्रपान से भी अस्थमा के अटैक की आशंका बढ़ जाती है।
  3. खाने-पीने की चीजें: कई बार खाने-पीने की कुछ चीज से भी अस्थमा पीड़ित की अवस्था पर असर पड़ता है। आमतौर पर अंडा, मछली, सोयाबीन, गेहूं से एलर्जी है, तो अस्थमा का अटैक पड़ने की आशंका बढ़ जाती है।
  4. आनुवंशिकता: अस्थमा कई बार आनुवंशिक कारणों से भी हो सकता है। यदि माता-पिता में से किसी को भी अस्थमा है, तो बच्चों को यह बीमारी होने की आशंका होती है। अगर माता-पिता दोनों को अस्थमा है, तो बच्चों में इसके होने की आशंका 50 से 70 फीसदी और एक में है, तो करीब 30-40 फीसदी तक होती है।
  5. तनाव:चिंता, डर, खतरे जैसे भावनात्मक उतार-चढ़ावों से तनाव बढ़ता है। इससे सांस की नली में रुकावट पैदा होती है और अस्थामा का दौरा पड़ता है।

अस्थमा और एलर्जी में अंतर

अस्थमा और एलर्जी को एक सिक्के के दो पहलुओं के रूप में देखा जाता है। दोनों में कई समानताएं हैं, फिर भी दोनों अलग-अलग हैं। उदारहण के लिए लगातार कई दिनों तक जुकाम, खांसी या सांस लेने में दिक्कत हो तो इसका कारण संक्रमण हो सकता है, जबकि अस्थमा में सांस लेने में परेशानी के अलावा रात में सोते वक्त खांसी आना, छाती में जकड़न महसूस होना, कसरत करते समय या सीढ़ियां चढ़ते वक्त सांस फूलना या खांसी आना, ज्यादा ठंड या गर्मी होने पर सांस लेने में दिक्कत होना जैसे लक्षण होते हैं।

जानकारों का कहना है कि अस्थमा भी एक तरह की एलर्जी ही है। जैसे ही शरीर एलर्जी वाली चीजों के संपर्क में आता है, अस्थमा का अटैक होने की आशंका बढ़ जाती है। यह अवस्था एलर्जिक अस्थमा कहलाती है।

अस्थमा को प्रभावित करने वाले खाद्य पदार्थ

नवंबर 2017 में न्यूट्रिएंट्स में प्रकाशित एक समीक्षा के अनुसार, कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ हैं, जो अस्थमा के मरीजों को परेशान कर सकते हैं या लक्षणों को और घातक बना सकते हैं। जैसे सूखे मेवो में सल्फाइट्स पाया जाता है, जो अस्थमा के मरीजों के लिए नुकसानदायक माना जाता है। ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमें 'पोटेशियम बाइसल्फाइट' और 'सोडियम सल्फाइड' हो, अस्थमा के रोगियों को उनसे दूर रहना चाहिए। ये खाद्य पदार्थ अस्थमा को ट्रिगर कर सकते हैं। इसके अलावा अचार, शराब, आर्टिफिशियल स्वीटनर तथा तला हुआ भोजन भी अस्थमा की समस्या बढ़ा सकता है। चिकित्सकों का कहना है की अस्थमा के रोगियों को अपने भोजन में विटामिन डी युक्त खाद्य पदार्थ, जैसे दूध और अंडे, बीटा कैरोटीन युक्त सब्जियां, जैसे कि गाजर और पत्तेदार साग, तथा मैग्नीशियम युक्त खाद्य पदार्थ, जैसे कि पालक और कद्दू के बीज शामिल करने चाहिए।

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अस्थमा और कोविड-19

चूंकि कोविड-19 वायरस फेफड़ों को ज्यादा प्रभावित करता है, इसलिए अस्थमा को रोगियों पर संक्रमण के ज्यादा गंभीर असर नजर आ सकते हैं। अस्थमा रोगी कोरोना संक्रमण को लेकर ज्यादा संवेदनशील भी होते है। कोरोना संक्रमण में फेफड़ों में खून सप्लाई करने वाली नलियों में खून जमने लगता है। जिससे निमोनिया और सेप्टीसीमिया होने का डर रहता है। इससे शरीर में ऑक्सीजन का स्तर लगातार घटता है। इससे भी अस्थमा के मरीजों में दिक्कत ज्यादा होने लगती है। चूंकि अस्थमा और कोरोना क्योंकि दोनों ही फेफड़ों से संबंधित रोग हैं, इसलिए कोविड के साथ अस्थमा को ठीक होने में भी अधिक समय लगता है। लेकिन चिकित्सक मानते हैं की अस्थमा के मरीज यदि अपनी दवाइयां नियमित तौर पर लेते रहें तो उनके लिए कोरोना का खतरा ज्यादा नहीं बढ़ेगा। इसके साथ ही कोरोना काल में उन्हें अपेक्षाकृत ज्यादा सावधानियां बरतनी चाहिए।

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