पहले के समय में माना जाता था की अर्थराइटिस यानी गठिया बुढ़ापे की बीमारी है. लेकिन आज की अनुशासनहीन जीवनशैली और असंतुलित आहार शैली का नतीजा है कि वर्तमान समय में कम उम्र के लोगों में भी यह काफी नजर आने लगी है. हालांकि, यह एक सामान्य स्वास्थ्य समस्या है. लेकिन इस बीमारी के प्रति लोगों में उतनी जानकारी और जागरूकता नही है, जितनी ह्रदय रोग या मधुमेह को लेकर होती है. इसलिए अर्थराइटिस को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से पूरी दुनिया में 12 अक्टूबर को विश्व गठिया दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष 12 अक्टूबर 2021 को विश्व गठिया दिवस की 25वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है.
विश्व गठिया दिवस का उद्देश्य
सर्वप्रथम विश्व गठिया दिवस, 12 अक्टूबर, 1996 को अर्थराइटिस और रूमेटिज़म इंटरनेशनल (ARI) द्वारा आयोजित किया गया था. तब से हर साल गठिया और मस्कुलोस्केलेटल रोगों (RMD) के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए यह विशेष दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाता है.
क्या कहते हैं दुनिया भर के आंकड़े
भारत में वर्ष 2020 में व्यापक स्तर पर कराए गए सर्वेक्षण के परिणामों के अनुसार राजधानी दिल्ली में गठिया पीड़ितों की संख्या कुल जनसंख्या का लगभग 23 % है , वहीं मुंबई में गठिया पीड़ितों का अनुपात कुल जनसंख्या का लगभग 18 % तथा बेंगलुरु से लगभग 15% से अधिक है. इस विषय पर किए गए कई शोध के नतीजे बताते हैं की वर्तमान समय में लगातार बढ़ रहे गठिया के मामलों के लिये काफी हद तक असंतुलित जीवनशैली तथा आहार को जिम्मेदार माना जा सकता है.
आर्थराइटिस के प्रकार
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन विभाग (सीडीसी) की मानें तो हड्डी तथा टिश्यू की समस्या सहित लगभग 100 से ज्यादा विभिन्न प्रकार की समस्याएं हमारे जोड़ों को प्रभावित करती हैं. जिनके लिये बढ़ती उम्र, धूम्रपान, अत्यधिक वजन, पूर्वनिर्धारित आनुवंशिक कारक, चोट के उच्च जोखिम वाले व्यवसाय और जोड़ों का अत्यधिक उपयोग सहित कई कारकों को जिम्मेदार माना जा सकता है. इसी आधार पर सीडीसी ने विभिन्न प्रकार की अर्थराइटिस को 6 वर्गों में बांटा है.
- ओस्टियोआर्थराइटिस
- फाइब्रोमाल्जिया
- रूमेटाइड अर्थराइटिस
- गाउट
- जुवेनाइल आर्थराइटिस
- लुपस