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महिलाओं में शारीरिक व मानसिक रोगों का कारण बन सकता है कार्यस्थल पर शोषण

यूएन की वेबसाइट पर महिलाओं के साथ उत्पीड़न विषय पर प्रकाशित एक आलेख  में बताया गया है कि क़रीब 33 फ़ीसदी महिलाओं व लड़कियों को जीवन में शारीरिक और यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है. वहीं इंडियन नेशनल बार एसोसिएशन द्वारा वर्ष 2017 में करवाए गए एक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के साथ रोजगार के विभिन्न क्षेत्रों में अश्लील टिप्पणीयों से लेकर शारीरिक उत्पीड़न की घटनाएं आम होती हैं, लेकिन महिलायें डर , शर्मिंदगी तथा बदनामी के डर से उसकी रिपोर्ट नही करवाती है. इस सर्वे में लगभग 6000 कर्मचारियों से जानकारी ली गई थी.

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महिलाओं में शारीरिक व मानसिक रोगों का कारण बन सकता है कार्यस्थल पर शोषण

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Published : Feb 27, 2022, 6:01 AM IST

महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर शोषण एक आम बात मानी जा सकती है. कार्यस्थल पर शोषण कई प्रकार का हो सकता है जैसे शाब्दिक शोषण यानी अश्लील या लिंग आधारित टिप्पणी करना, नीचा दिखाना या यौन शोषण, लेकिन शोषण चाहे किसी भी माध्यम में हो उसका असर शोषित महिला के मानसिक स्वास्थ्य को काफी प्रभावित करता है.जिससे कहीं न कहीं उसका शारीरिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है. इस विषय से जुड़े एक शोध में यह बात भी सामने आई है कि कार्यस्थल पर लंबे वक्त तक यौन उत्पीड़न, पीड़ित में हाईपरटेंशन समेत अन्य बीमारियों का कारण भी बन सकता है.

हाइपरटेंशन और हार्ट अटैक का खतरा

अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के जनरल में प्रकाशित इस शोध में सामने आया था कि ऐसी महिलाओं में उच्च रक्तचाप की समस्या अपेक्षाकृत ज्यादा होती है जिन्हें कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. ऐसी महिलाओं में हाइपरटेंशन के साथ ही हार्ट अटैक का खतरा भी ज्यादा होता है.

लंबे समय तक चले इस अध्धयन में 40 से 60 वर्ष की 33 हजार ऐसी कामकाजी महिलाओं को शामिल किया गया जिन्हें 2008 तक हाई ब्लड प्रेशर जैसी कोई समस्या नहीं थी. शोध के पहले चरण में प्रतिभागी महिलाओं से उनमें तनाव को लेकर प्रश्न पूछे गए. शोध के दूसरे चरण में वर्ष 2015 में सात साल बाद प्रतिभागी महिलाओं की स्वास्थ्य रिपोर्ट की दोबारा जांच की गई तथा उनसे कार्यस्थल पर तनाव व अन्य शोषण संबंधी मुद्दों पर भी जानकारी ली गई. जिसमें सामने आया कि हर पांचवी महिला में हाइपरटेंशन और ब्लड प्रेशर के मामले मिले. इनमें से लगभग 20% महिलाओं में हाइपरटेंशनकी समस्या देखी गई. पीड़ित महिलाओं में से कई ने कार्यस्थल पर किसी न किसी प्रकार के शोषण की भी पुष्टि की.

शोध के नतीजों में हावर्ड के बोस्टन स्थित चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की महामारी विज्ञान शोधकर्ता रिबेका लॉन ने बताया कि शोध में शामिल आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में हर साल 44 % महिलाएं ऑफिस में उनके साथ छेड़छाड़ की शिकायत करती है. वहीं 80 % महिलाओं को कार्यस्थल पर किसी न किसी प्रकार के शोषण का सामना करना पड़ता है. शोध में सामने आया है कि ऐसी महिलाओं में जिन्होंने दोनों प्रकार के शोषण का सामना किया था, उनमें हाईपरटेंशन होने का जोखिम 21% तक बढ़ गया था. वहीं ऐसी महिलायें जिन्होंने कार्यस्थल पर सिर्फ यौन उत्पीड़न का सामना किया था उनमें 15% तथा अन्य प्रकार के मानसिक शोषण का सामना करने वाली महिलाओं में 11% तक हाई ब्लड प्रेशर की समस्या होने का खतरा देखा गया था.

इसके अलावा ऐसी महिलायें जो कभी न कभी यौन उत्पीड़न का शिकार हुई थी उनमें हाईपरटेंशन के लक्षण देखें गए थे. शोध में यह भी बताया गया था कि हाइपरटेंशन से जुड़ी बीमारियों से होने वाली महिलाओं की मौतों में से एक तिहाई हार्ट अटैक से होती हैं.

आम है यौन हिंसा

सिर्फ अमेरिका में ही नही दुनियाभर में महिलाओं को सिर्फ कार्यस्थल ही नहीं बल्कि स्कूल, कालेज, समारोहों यहां तक की घर पर भी शारीरिक या अन्य प्रकार की हिंसा का सामना करना पड़ता है. भारत की बात करें तो वर्ष 2015-16 में कराए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में इस बात का उल्लेख किया गया था कि भारत में 15-49 आयु वर्ग की लगभग 30 फीसदी महिलाओं को 15 साल की आयु से ही शारिरिक हिंसा का सामना करना पड़ा था. रिपोर्ट में कहा गया कि 15-49 आयु वर्ग की लगभग 6 फीसदी महिलाओं को उनके जीवनकाल में कम से कम एक बार यौन हिंसा का सामना करना पड़ा था. सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि ज्यादातर महिलायें अपने साथ हुई हिंसा के बारें में रिपोर्ट कराना तो दूर उसके बारें में लोगों को बताने से भी कतराती हैं.

मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर असर

शारीरिक व मानसिक शोषण के महिला के शारीरिक व मानसिक विकास पर पड़ने वाले असर को लेकर मनोवैज्ञानिक डॉ रेणुका शर्मा बताती हैं कि हिंसा चाहे किसी भी माध्यम में हुईे हो महिला के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत ज्यादा असर डालती है. शारीरिक व मानसिक शोषण विशेषकर शारीरिक यौन उत्पीड़न के चलते पीड़ित महिला में सदमा, तनाव, अवसाद, चिंता, गुस्सा, डर, नींद में कमी तथा आत्मविश्वास में कमी जैसी मानसिक समस्याओं या अवस्थाओं के होने का जोखिम बढ़ जाता है. जिसका सीधा असर उनके शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है और उनमें कई तरह की बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है.

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