खुश रहना हर किसी का अधिकार है , लेकिन माना जाता है की महिला हो या पुरुष, खुशी तभी महसूस कर पाता है जब वह स्वतंत्र महसूस करे . स्वतंत्रता, अपनी इच्छा से जीने की और सबसे ज्यादा अपने लिए निर्णय लेने की. लेकिन ना सिर्फ हमारे समाज में बल्कि दुनिया भर में सारी जिम्मेदारियाँ निभाने के बावजूद महिलाएं शादी से पहले पुरुष और शादी के बाद पति पर आश्रित मानी जाती है. यहाँ तक अपनी पसंद का खाने और कपड़े पहनने की आजादी भी ज्यादातर महिलाओं को नहीं मिल पाती हैं. कुछ प्रतिशत ही सही मगर यह बातें महिलाओं की खुशी को प्रभावित करती है.
लेकिन अब बदलते समय के साथ समाज की सोच में धीरे-धीरे आ रहे अंतर का नतीजा है की कुछ हद तक महिलाएं अपनी पसंद के हिसाब के जीने लगी है और अपने जीवन के सामान्य फैसले लेने लगी हैं जैसे वे क्या पहने क्या नहीं , क्या खाएं या क्या नहीं करें आदि. नतीजतन वे ज्यादा स्वतंत्र और प्रसन्न महसूस करने लगी हैं.
हाल ही में हुए सर्वे में पता चला है कि कुछ दशक पहले की तुलना में आज की युवतियां ज्यादा खुश रहने लगी हैं और ये बदलाव उनमें अपने जीवन से जुड़े फैसला लेने के अधिकार मिलने की वजह से आया है. उसके अलावा आध्यात्मिकता को भी इसके विशेष कारणों में गिना गया है.
पुणे के एक रिसर्च सेंटर दृष्टि स्त्री अध्ययन प्रबोधन केंद्र (Drishti Stree Adhyayan Prabhodhan Kendra) ने हाल ही में देश के 29 राज्यों की 18 साल से लेकर 70 साल के बीच आयु वाली 43 हजार महिलाओं पर सर्वे किया और जाना वह कितनी खुश हैं. इसके साथ ही सर्वे में उनकी खुशी के कारणों के बारें में भी जानने का प्रयास किया गया.