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World Zoonoses Day : एक विश्व-एक स्वास्थ्य के लिए जूनोज को रोकें, जानिए क्यों है खतरनाक

जुनोटिक संक्रमण या जानवरों से किसी भी कारण से होने या फैलने वाली बीमारियों के बारें में तथा उनसे बचाव व उसके इलाज को लेकर आम जन में जागरूकता फैलाने तथा उन पर चर्चा के लिए एक मंच देने के उद्देश्य से हर साल 6 जुलाई को दुनिया भर में World Zoonoses Day 2023 ( विश्व जूनोज दिवस ) मनाया जाता है. Zoonoses Day .

World Zoonoses Day 2023
विश्व जूनोज दिवस 2023

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Published : Jul 5, 2023, 5:12 PM IST

Updated : Jul 6, 2023, 11:28 AM IST

विश्व जूनोज दिवस :पिछले एक दशक में दुनिया भर में जानवरों के कारण होने वाले तथा उनके कारण फैलने वाले रोगों तथा संक्रमणों के मामलों में काफी बढ़ोतरी रिकार्ड हुई है. एक अनुमान के अनुसार वैश्विक स्तर पर हर साल जुनोटिक बीमारियों के लगभग एक अरब कम या ज्यादा गंभीर मामले सामने आते हैं. वहीं हर साल उनके चलते लाखों मौतें भी होती हैं. पिछले कुछ दशकों में नए-नए प्रकार के जुनोटिक संक्रमणों के मामले सामने आने तथा उनके तेजी से फैलने की क्षमता के कारण इन्हे वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय भी माना जाने लगा है.

जानवरों से किसी भी कारण से होने या फैलने वाली बीमारियों या जुनोटिक या जुनोस संक्रमणों को लेकर लोगों में जानकारी व जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 6 जुलाई को विश्व जूनोसिस दिवस या विश्व जूनोज दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष World Zoonoses day 2023 theme - One World, One Health: Prevent Zoonoses ("एक विश्व, एक स्वास्थ्य: जूनोज को रोकें!" ) थीम पर मनाया जा रहा है.

विश्व जूनोज दिवस 2023 - कॉन्सेप्ट इमेज

क्या कहती है रिपोर्ट
वर्ष 2020 में ' संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम' तथा 'अंतर्राष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान' द्वारा कोविड़ 19 महामारी के संदर्भ में 'प्रिवेंटिंग द नेक्स्ट पेंडेमिक: ज़ूनोटिक डिजीज़ एंड हाउ टू ब्रेक द चेन ऑफ ट्रांसमिशन' नामक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी. जिसमें कहा गया गया था मनुष्यों में 60% जुनोटिक रोग ज्ञात हैं,लेकिन ऐसे अभी भी 70% जुनोटिक रोग ऐसे है जो अभी ज्ञात नहीं हैं. यहीं नहीं दुनिया भर में हर साल विशेषकर निम्न-मध्यम आय वाले देशों में लगभग 10 लाख लोग ज़ूनोटिक रोगों के कारण जान गवा देते हैं.

विश्व जूनोज दिवस 2023 - कॉन्सेप्ट इमेज

रिपोर्ट में चेतावनी भी दी गई हैं कि यदि पशुजनित बीमारियों की रोकथाम के लिए जरूरी प्रयास नहीं किये गए तो भविष्य में कोविड़-19 जैसी अन्य महामारियों का सामना भी करना पड़ सकता है. इस रिपोर्ट में जुनोटिक रोगों के प्रसार के लिए जिम्मेदार कारणों का भी उल्लेख किया गया था. जिनमें पशु प्रोटीन की बढ़ती मांग, गहन और अस्थिर खेती में वृद्धि, वन्यजीवों का बढ़ता उपयोग , प्राकृतिक संसाधनों का निरंतर उपयोग व हनन , खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में बदलाव तथा जलवायु परिवर्तन संकट शामिल थे.

विश्व जूनोज दिवस 2023

वहीं स्टेट ऑफ द वर्ल्ड फॉरेस्ट रिपोर्ट 2022 में भारत और चीन के, नए जूनोटिक संक्रामक रोगों के लिए सबसे बड़े हॉटस्पॉट के रूप में उभरने का उल्लेख किया गया गया है. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि जूनोटिक संक्रामक रोगों का जोखिम एशिया और अफ्रीका में ऐसे स्थानों पर जहां मानव जनसंख्या घनत्व ज्यादा होगा, अधिक होगा. यही नहीं इन स्थानों पर ऐसे संक्रामक रोग के फैलने की दर में 4,000 गुना तक वृद्धि देखी जा सकती है. गौरतलब है कि अफ्रीकी महाद्वीप के अधिकांश देशों में इबोला तथा अन्य पशु-जनित संक्रमणों व महामारियों का प्रभाव पहले से ही ज्यादा देखा जाता हैं.

क्या है जूनोटिक रोग
जूनोटिक संक्रमण या बीमारियां वे रोग होते हैं जो जानवरों से इंसानों में फैल सकते हैं. वहीं कई बार कुछ परिस्थितियों में मनुष्यों से भी जानवरों में संक्रमण फैल सकता है . ऐसी अवस्था को रिवर्स जुनोसिस कहा जाता है. जूनोटिक संक्रमण मनुष्यों में संक्रमित जानवर की लार, रक्त, मूत्र, बलगम, मल या शरीर के अन्य तरल पदार्थों के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने में आने से फैल सकते हैं. इस प्रकार के रोगों में वेक्टर जनित रोग भी आते हैं जो टिक, मच्छर या पिस्सू से फैलते हैं. जूनोटिक रोग बैक्टीरिया, वायरस, फफूंद अथवा परजीवी किसी भी रोगकारक से हो सकते हैं. जो मनुष्यों में कई बार गंभीर व जानलेवा प्रभाव भी दिखा सकते हैं. वर्तमान समय में दुनिया भर में 200 से ज्यादा ज्ञात जूनोटिक रोग हैं.

जानवरों तथा विभिन्न स्वास्थ्य संस्थाओं की रिपोर्ट की मानें तो हर 10 संक्रामक रोगों में से 6 जुनोटिक होते हैं. वहीं सी.डी.सी. के अनुसार भी सभी मौजूदा संक्रामक रोगों में से 60% जुनोटिक हैं. वैसे तो दुनिया भर में कई प्रकार के जुनोटिक संक्रमण या रोगों के मामले देखने में आते हैं लेकिन भारत में जिन जूनोटिक रोगों के मामले सबसे ज्यादा देखने में आते हैं उनमें रेबीज, स्केबीज, ब्रूसेलोसिस, स्वाइन फ्लू, डेंगू, मलेरिया, इबोला, इंसेफेलाइटिस, बर्ड फ्लू, निपाह, ग्लैंडर्स, सालमोनेलोसिस, मंकी फीवर/ मंकी पॉक्स, प्लाक, हेपेटाइटिस ई , पैरेट फीवर, ट्यूबरक्युलोसिस (टीबी), जीका वायरस , सार्स रोग तथा रिंग वॉर्म आदि शामिल हैं.

विश्व जूनोसिस दिवस का इतिहास व उद्देश्य
गौरतलब है कि विश्व जूनोज दिवस या विश्व जूनोसिस दिवस पहली बार वर्ष 2007 में 6 जुलाई को रेबीज के पहले टीकाकरण की याद में मनाया गया था. दरअसल फ्रांसीसी जीवविज्ञानी लुई पाश्चर ने रेबीज़ वैक्सीन की खोज करने के बाद 6 जुलाई, 1885 को उसका पहला टीका सफलतापूर्वक लगाया था. वर्ष 2007 के बाद से हर साल इस दिवस को ज़ूनोटिक रोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाने, जनता, नीति निर्माताओं और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को जूनोटिक रोगों, उनकी रोकथाम और नियंत्रण उपायों के बारे में शिक्षित करने के लिए एक मंच देने, उभरती हुई जूनोटिक बीमारियों का पता लगाने और उन पर प्रतिक्रिया देने के लिए निगरानी, अनुसंधान और तैयारियों को बढ़ावा देने तथा मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और पर्यावरण क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मनाया जाता है. इस अवसर पर दुनिया भर में जागरूकता अभियानों, शैक्षिक गतिविधियों , सरकारी व गैर सरकारी स्वास्थ्य संगठनों और पशु चिकित्सा संघों द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.

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Last Updated : Jul 6, 2023, 11:28 AM IST

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