विश्व जूनोज दिवस :पिछले एक दशक में दुनिया भर में जानवरों के कारण होने वाले तथा उनके कारण फैलने वाले रोगों तथा संक्रमणों के मामलों में काफी बढ़ोतरी रिकार्ड हुई है. एक अनुमान के अनुसार वैश्विक स्तर पर हर साल जुनोटिक बीमारियों के लगभग एक अरब कम या ज्यादा गंभीर मामले सामने आते हैं. वहीं हर साल उनके चलते लाखों मौतें भी होती हैं. पिछले कुछ दशकों में नए-नए प्रकार के जुनोटिक संक्रमणों के मामले सामने आने तथा उनके तेजी से फैलने की क्षमता के कारण इन्हे वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय भी माना जाने लगा है.
जानवरों से किसी भी कारण से होने या फैलने वाली बीमारियों या जुनोटिक या जुनोस संक्रमणों को लेकर लोगों में जानकारी व जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 6 जुलाई को विश्व जूनोसिस दिवस या विश्व जूनोज दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष World Zoonoses day 2023 theme - One World, One Health: Prevent Zoonoses ("एक विश्व, एक स्वास्थ्य: जूनोज को रोकें!" ) थीम पर मनाया जा रहा है.
क्या कहती है रिपोर्ट
वर्ष 2020 में ' संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम' तथा 'अंतर्राष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान' द्वारा कोविड़ 19 महामारी के संदर्भ में 'प्रिवेंटिंग द नेक्स्ट पेंडेमिक: ज़ूनोटिक डिजीज़ एंड हाउ टू ब्रेक द चेन ऑफ ट्रांसमिशन' नामक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी. जिसमें कहा गया गया था मनुष्यों में 60% जुनोटिक रोग ज्ञात हैं,लेकिन ऐसे अभी भी 70% जुनोटिक रोग ऐसे है जो अभी ज्ञात नहीं हैं. यहीं नहीं दुनिया भर में हर साल विशेषकर निम्न-मध्यम आय वाले देशों में लगभग 10 लाख लोग ज़ूनोटिक रोगों के कारण जान गवा देते हैं.
रिपोर्ट में चेतावनी भी दी गई हैं कि यदि पशुजनित बीमारियों की रोकथाम के लिए जरूरी प्रयास नहीं किये गए तो भविष्य में कोविड़-19 जैसी अन्य महामारियों का सामना भी करना पड़ सकता है. इस रिपोर्ट में जुनोटिक रोगों के प्रसार के लिए जिम्मेदार कारणों का भी उल्लेख किया गया था. जिनमें पशु प्रोटीन की बढ़ती मांग, गहन और अस्थिर खेती में वृद्धि, वन्यजीवों का बढ़ता उपयोग , प्राकृतिक संसाधनों का निरंतर उपयोग व हनन , खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में बदलाव तथा जलवायु परिवर्तन संकट शामिल थे.
वहीं स्टेट ऑफ द वर्ल्ड फॉरेस्ट रिपोर्ट 2022 में भारत और चीन के, नए जूनोटिक संक्रामक रोगों के लिए सबसे बड़े हॉटस्पॉट के रूप में उभरने का उल्लेख किया गया गया है. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि जूनोटिक संक्रामक रोगों का जोखिम एशिया और अफ्रीका में ऐसे स्थानों पर जहां मानव जनसंख्या घनत्व ज्यादा होगा, अधिक होगा. यही नहीं इन स्थानों पर ऐसे संक्रामक रोग के फैलने की दर में 4,000 गुना तक वृद्धि देखी जा सकती है. गौरतलब है कि अफ्रीकी महाद्वीप के अधिकांश देशों में इबोला तथा अन्य पशु-जनित संक्रमणों व महामारियों का प्रभाव पहले से ही ज्यादा देखा जाता हैं.