एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि नौकरी की कमी ने कामकाजी लोगों को डिप्रेशन में डाल दिया है. यह स्थिति उन्हें आत्महत्या या नशीली दवाओं के कारण अकाल मृत्यु के लिए प्रेरित करती है. जामा नेटवर्क द्वारा 1980 के दशक में अध्ययन शुरू किया, जब 11,680 पुरुष अपने हाई स्कूल में थे और यह शोध उनके नौकरी मिलने तक जारी रहा.
मौत के आंकड़ों में तीन गुना बढ़ोतरी
अमेरिका के ऑस्टिन में टेक्सास विश्वविद्यालय के लेखक चंद्र मुलर कहते है कि अध्ययन के परिणामों के अनुसार जो बिना डिग्री वाली नौकरी कर रहे थे, उन्हें बाद में नौकरी नहीं मिली, क्योंकि हाथ का काम कम हो गया था, और पढ़े लिखे लोगों को ज्यादा काम मिलने लगा . इसके कारण पुरुषों में तीन गुना आत्महत्या और नशीली दवाओं से मौत में बढ़ोतरी देखी गई, क्योंकि वो जो नौकरी चाहते थे, उसके लिए बैचलर डिग्री की जरूरत होती है. नौकरी एक प्रमुख भूमिका निभाती है व्यक्ति की जीवन शैली तय करने में और यही उसे मानसिक रूप से भी प्रभावित करती है.
मुलर कहते है कि, यह संभव है कि किशोरावस्था में विकसित व्यावसायिक उम्मीदें वयस्क होने के बाद सफलता के मायने तय करती है. लेकिन उम्मीद पूरी ना हो, तो व्यक्ति के लिए घातक साबित हो सकती है. शोधकर्ताओं ने हाई स्कूल और बियॉन्ड कोहोर्ट के डेटा का उपयोग कर दो ट्रेंड के बीच संबंधों की जांच की. 1980 के दशक की शुरुआत में 11,680 पुरुषों पर जांच की, फिर 1992 में, फिर से 2015 में की गई.
आत्महत्या और नशीली दवाओं से मौत बढ़े