हैदराबाद :गायक व अभिनेता निक जोनस, लेखिका एन राइस, मशहूर भारतीय अभिनेता कमल हसन तथा अभिनेत्री सोनम कपूर, पाकिस्तानी क्रिकेटर वसीम अकरम व अभिनेता फवाद खान, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले इन लोगों में एक बात आम है. ये सभी टाइप वन डायबिटीज से पीड़ित रहे हैं. टाइप वन डायबिटीज जिसे जुवेनाइल डायबिटीज भी कहा जाता है, आम समस्या नहीं है. बल्कि सही प्रबंधन तथा इलाज के अभाव में यह पीड़ित के लिए कई बार गंभीर जोखिमों का कारण भी बन सकती है. जानकारों की माने तो यह एक ऑटोइम्यून डिजीज है जो आमतौर पर 18 साल तक कभी भी ट्रिगर कर सकती है.
क्या है जुवेनाइल डायबिटीज/ टाइप वन डायबिटीज
- कोकिलाबेन अस्पताल इंदौर के इंटरनल मेडिसिन के कंसल्टेंट डॉ संजय जैन बताते हैं कि टाइप वन डायबिटीज या जुवेनाइल डायबिटीज एक आजीवन रहने वाली समस्या है. हालांकि यह एक गंभीर समस्या है लेकिन सही इलाज व प्रबंधन की मदद से पीड़ित कुछ समस्याओं को छोड़ कर आम जीवन जी सकते है. वह बताते हैं कि यूं तो टाइप वन डायबिटीज तथा टाइप टू डायबिटीज दोनों के लिए शरीर में इंसुलिन के निर्माण या मात्रा में कमी जिम्मेदार होती है . लेकिन जहां टाइप टू डायबिटीज में इसके लिए खराब जीवनशैली, कुछ प्रकार की बीमारियां या दवाओं व थेरेपी के प्रभाव जिम्मेदार हो सकते हैं, वहीं टाइप वन डायबिटीज माता पिता से बच्चों को पहुंचने वाली बीमारी है.
- वह बताते हैं कि टाइप वन डायबिटीज एक ऑटोइम्यून डिजीज है जिसमें हमारा इम्यून सिस्टम पैंक्रियास में इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाओं के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने लगता है जिससे वह नष्ट होना शुरू हो जाती हैं, जिससे इंसुलिन बनाना या तो बंद हो जाता है या कम होने लगता है. जिसके चलते रक्त में शुगर का स्तर अनियमित होने लगता है.
- यह एक जेनेटिकली इनहेरिटेड बीमारी है जो माता अथवा पिता या दोनों से विरासत में मिल सकती हैं. इसलिए इसे आनुवंशिक बीमारी भी कहा जाता हैं.
- वह बताते हैं कि यदि पिता को टाइप वन डायबिटीज हो तो बच्चे को यह समस्या होने की आशंका 10% तक रहती हैं, वहीं यदि माता टाइप वन डायबिटीज से पीड़ित है तो बच्चे में यह आशंका 8%-10% तक रहती हैं. लेकिन यदि माता व पिता दोनों को टाइप वन डायबिटीज हैं तो बच्चे में समस्या होने की आशंका 30% तक बढ़ जाती है.
लक्षण तथा प्रभाव
- डॉ संजय जैन बताते हैं कि इसके लक्षण या प्रभाव आमतौर पर बच्चे में जन्म के बाद पांच से दस सालों में नजर आने शुरू हो सकते हैं. लेकिन कई बार यह लक्षण या प्रभाव 22 या 25 वर्ष की आयु तक कभी भी नजर आ सकते हैं.
- वह बताते हैं कि इस समस्या का प्रभाव पीड़ित बच्चे के शारीरिक स्वास्थ्य पर काफी ज्यादा नजर आता है. ऐसे बच्चों का वजन आम बच्चों के जैसे उम्र तथा शारीरिक विकास के अनुसार बढ़ नहीं पाता है. बल्कि समस्या का प्रभाव बढ़ने पर उनका वजन ज्यादा घटने लगता है.
- इस अवस्था में पीड़ित बच्चों की भूख काफी ज्यादा बढ़ जाती है. लेकिन ज्यादा खाने के बावजूद भी उनका वजन बढ़ नहीं पाता है. इसके अलावा उन्हे बार-बार पेशाब आता हैं, बहुत ज्यादा प्यास लगती है तथा बहुत जल्दी थकान होने लगती है. वहीं यदि खेलते हुए या किसी भी कारण से उन्हे चोट लग जाती है तो वह जल्दी ठीक नहीं होती है और ना ही उसका घाव जल्दी भर पाता हैं.
जांच व इलाज
- वह बताते हैं कि लक्षणों के आधार पर रक्त, मूत्र व अन्य परीक्षणों की मदद से टाइप वन डायबिटीज की जांच की जाती हैं. टाइप वन डायबिटीज में इंसुलिन लेना एकमात्र इलाज है. चूंकि इस विकार में या तो शरीर में इंसुलिन बनता ही नहीं है या काफी कम बनता है ऐसे में पीड़ित को बाहर से इंसुलिन देना जरूरी हो जाता है. जिससे रक्त में शुगर की मात्रा नियंत्रित रहे.
- इंसुलिन की मात्रा तथा उसे देने की आवृत्ती पीड़ित की अवस्था तथा वह कितनी बार खाता है , इस बात पर निर्भर करती है. यानी पीड़ित 3-4 या 5 जितनी भी बार खाता है उसे इंसुलिन लेना होता है. वहीं इस अवस्था में बच्चे हो या बड़े सभी पीड़ितों की शुगर मॉनिटरिंग जरूरी होती है जिससे उनकी इंसुलिन की डोज निर्धारित की जा सके. इसके अलावा डाइटरी मोड़ीफिकेशन यानी आहार का ध्यान व परहेज भी काफी जरूरी होता है.
- वह बताते हैं कि यदि इस समस्या से पीड़ित बच्चे 20 से 25 वर्ष की आयु बिना किसी कॉम्पलिकेशन के अच्छे से पार कर लेते हैं तो उनकी इंसुलिन की जरूरत धीरे धीरे कम भी हो सकती है. वहीं ऐसे में आयु बढ़ने पर उनके सेहत से जुड़े जोखिम भी अपेक्षाकृत कम होने लगते हैं. ऐसे में कई बार इंसुलिन के अलावा उनके इलाज में कुछ दवाएं भी जोड़ी जा सकती हैं. जो उनकी दिनचर्या को सामान्य बनाए रखने में काफी मदद करती हैं. हालांकि इन्हे अपने खानपान व कुछ अन्य जरूरी सावधानियों का आजीवन ध्यान रखना पड़ता है.