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Type 1 Diabetes : टाइप वन डायबिटीज के लिए इंसुलिन है एकमात्र इलाज, जानें क्या कहते हैं डॉक्टर - टाइप वन डायबिटीज का इलाज

बच्चों में टाइप वन डायबिटीज या जुवेनाइल डायबिटीज एक गंभीर समस्या है. जो ज्यादा ध्यान ना देने पर ना सिर्फ कई अन्य कम या ज्यादा गंभीर समस्याओं के जोखिम को बढ़ा सकती है बल्कि उनकी सामान्य बढ़त या विकास को भी प्रभावित करती है. पढ़ें पूरी खबर..

Type 1 Diabetes
टाइप वन डायबिटीज

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 23, 2023, 6:10 AM IST

हैदराबाद :गायक व अभिनेता निक जोनस, लेखिका एन राइस, मशहूर भारतीय अभिनेता कमल हसन तथा अभिनेत्री सोनम कपूर, पाकिस्तानी क्रिकेटर वसीम अकरम व अभिनेता फवाद खान, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले इन लोगों में एक बात आम है. ये सभी टाइप वन डायबिटीज से पीड़ित रहे हैं. टाइप वन डायबिटीज जिसे जुवेनाइल डायबिटीज भी कहा जाता है, आम समस्या नहीं है. बल्कि सही प्रबंधन तथा इलाज के अभाव में यह पीड़ित के लिए कई बार गंभीर जोखिमों का कारण भी बन सकती है. जानकारों की माने तो यह एक ऑटोइम्यून डिजीज है जो आमतौर पर 18 साल तक कभी भी ट्रिगर कर सकती है.

क्या है जुवेनाइल डायबिटीज/ टाइप वन डायबिटीज

  • कोकिलाबेन अस्पताल इंदौर के इंटरनल मेडिसिन के कंसल्टेंट डॉ संजय जैन बताते हैं कि टाइप वन डायबिटीज या जुवेनाइल डायबिटीज एक आजीवन रहने वाली समस्या है. हालांकि यह एक गंभीर समस्या है लेकिन सही इलाज व प्रबंधन की मदद से पीड़ित कुछ समस्याओं को छोड़ कर आम जीवन जी सकते है. वह बताते हैं कि यूं तो टाइप वन डायबिटीज तथा टाइप टू डायबिटीज दोनों के लिए शरीर में इंसुलिन के निर्माण या मात्रा में कमी जिम्मेदार होती है . लेकिन जहां टाइप टू डायबिटीज में इसके लिए खराब जीवनशैली, कुछ प्रकार की बीमारियां या दवाओं व थेरेपी के प्रभाव जिम्मेदार हो सकते हैं, वहीं टाइप वन डायबिटीज माता पिता से बच्चों को पहुंचने वाली बीमारी है.
  • वह बताते हैं कि टाइप वन डायबिटीज एक ऑटोइम्यून डिजीज है जिसमें हमारा इम्यून सिस्टम पैंक्रियास में इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाओं के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने लगता है जिससे वह नष्ट होना शुरू हो जाती हैं, जिससे इंसुलिन बनाना या तो बंद हो जाता है या कम होने लगता है. जिसके चलते रक्त में शुगर का स्तर अनियमित होने लगता है.
  • यह एक जेनेटिकली इनहेरिटेड बीमारी है जो माता अथवा पिता या दोनों से विरासत में मिल सकती हैं. इसलिए इसे आनुवंशिक बीमारी भी कहा जाता हैं.
  • वह बताते हैं कि यदि पिता को टाइप वन डायबिटीज हो तो बच्चे को यह समस्या होने की आशंका 10% तक रहती हैं, वहीं यदि माता टाइप वन डायबिटीज से पीड़ित है तो बच्चे में यह आशंका 8%-10% तक रहती हैं. लेकिन यदि माता व पिता दोनों को टाइप वन डायबिटीज हैं तो बच्चे में समस्या होने की आशंका 30% तक बढ़ जाती है.

लक्षण तथा प्रभाव

  • डॉ संजय जैन बताते हैं कि इसके लक्षण या प्रभाव आमतौर पर बच्चे में जन्म के बाद पांच से दस सालों में नजर आने शुरू हो सकते हैं. लेकिन कई बार यह लक्षण या प्रभाव 22 या 25 वर्ष की आयु तक कभी भी नजर आ सकते हैं.
  • वह बताते हैं कि इस समस्या का प्रभाव पीड़ित बच्चे के शारीरिक स्वास्थ्य पर काफी ज्यादा नजर आता है. ऐसे बच्चों का वजन आम बच्चों के जैसे उम्र तथा शारीरिक विकास के अनुसार बढ़ नहीं पाता है. बल्कि समस्या का प्रभाव बढ़ने पर उनका वजन ज्यादा घटने लगता है.
  • इस अवस्था में पीड़ित बच्चों की भूख काफी ज्यादा बढ़ जाती है. लेकिन ज्यादा खाने के बावजूद भी उनका वजन बढ़ नहीं पाता है. इसके अलावा उन्हे बार-बार पेशाब आता हैं, बहुत ज्यादा प्यास लगती है तथा बहुत जल्दी थकान होने लगती है. वहीं यदि खेलते हुए या किसी भी कारण से उन्हे चोट लग जाती है तो वह जल्दी ठीक नहीं होती है और ना ही उसका घाव जल्दी भर पाता हैं.

जांच व इलाज

  • वह बताते हैं कि लक्षणों के आधार पर रक्त, मूत्र व अन्य परीक्षणों की मदद से टाइप वन डायबिटीज की जांच की जाती हैं. टाइप वन डायबिटीज में इंसुलिन लेना एकमात्र इलाज है. चूंकि इस विकार में या तो शरीर में इंसुलिन बनता ही नहीं है या काफी कम बनता है ऐसे में पीड़ित को बाहर से इंसुलिन देना जरूरी हो जाता है. जिससे रक्त में शुगर की मात्रा नियंत्रित रहे.
  • इंसुलिन की मात्रा तथा उसे देने की आवृत्ती पीड़ित की अवस्था तथा वह कितनी बार खाता है , इस बात पर निर्भर करती है. यानी पीड़ित 3-4 या 5 जितनी भी बार खाता है उसे इंसुलिन लेना होता है. वहीं इस अवस्था में बच्चे हो या बड़े सभी पीड़ितों की शुगर मॉनिटरिंग जरूरी होती है जिससे उनकी इंसुलिन की डोज निर्धारित की जा सके. इसके अलावा डाइटरी मोड़ीफिकेशन यानी आहार का ध्यान व परहेज भी काफी जरूरी होता है.
  • वह बताते हैं कि यदि इस समस्या से पीड़ित बच्चे 20 से 25 वर्ष की आयु बिना किसी कॉम्पलिकेशन के अच्छे से पार कर लेते हैं तो उनकी इंसुलिन की जरूरत धीरे धीरे कम भी हो सकती है. वहीं ऐसे में आयु बढ़ने पर उनके सेहत से जुड़े जोखिम भी अपेक्षाकृत कम होने लगते हैं. ऐसे में कई बार इंसुलिन के अलावा उनके इलाज में कुछ दवाएं भी जोड़ी जा सकती हैं. जो उनकी दिनचर्या को सामान्य बनाए रखने में काफी मदद करती हैं. हालांकि इन्हे अपने खानपान व कुछ अन्य जरूरी सावधानियों का आजीवन ध्यान रखना पड़ता है.

जोखिम

डॉ संजय जैन बताते हैं कि टाइप वन डायबिटीज में डायबिटीक कीटोएसिडोसिस, कम या ज्यादा गंभीर नजर दोष, किडनी फेलियर तथा संक्रमण होने का जोखिम काफी ज्यादा रहता है.

इनमें विशेष तौर पर डायबिटीक कीटोएसीडोसिस की बात करें तो यदि किसी कारण से पीड़ित जरूरी मात्रा में इंसुलिन नहीं ले रहा है या उसकी कुछ डोज छूट गई हो या फिर उसे निमोनिया या उस जैसा कोई संक्रमण या रोग हो गया हो तो उसे डायबिटीक कीटोएसिडोसिस होने की आशंका बढ़ सकती है. यह एक बेहद गंभीर अवस्था है. जिसमें पीड़ित को उल्टी, पेटदर्द, सांस लेने में समस्या तथा बेहोशी जैसे लक्षण नजर आते हैं. ऐसे में पीड़ित को अस्पताल में भर्ती करना जरूरी हो जाता है.

सावधानियां

वह बताते हैं कि टाइप वन डायबिटीज के प्रबंधन के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना बेहद जरूरी हो जाता है जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

  • इस समस्या में पीड़ित के लिए नियमित रूप से शुगर की जांच व चिकित्सक को दिखाना बेहद जरूरी होता है.
  • पीड़ित ऐसे आहार से परहेज करें जिससे शुगर के स्तर में कमी या बढ़ोतरी हो. खासतौर पर इस समस्या में अवस्था के आधार पर कार्बोहाइड्रेट डाइट पर नियंत्रण या परहेज जरूरी होता है, क्योंकि वह शुगर बढ़ाता है. वहीं आहार में प्रोटीन व विटामिन युक्त आहार की मात्रा बढ़ाना काफी लाभकारी होता है. इसके अलावा ज्यादा से ज्यादा मात्रा में पानी पीना भी इस अवस्था में काफी फायदे देता हैं
  • इस समस्या से पीड़ित लोगों को 20 से 25 वर्ष की आयु तक जटिल व्यायाम करने से पहले एक बार अपने चिकित्सक से परामर्श जरूर करना चाहिए. दरअसल जब हम ज्यादा जटिल या ज्यादा देर तक व्यायाम करते हैं तो शरीर में ग्लूकोज का स्तर कम होता है. और चूंकि इस समस्या में पीड़ित को बाहरी इंसुलिन पर निर्भर रहना पड़ता है ऐसे में इस अवस्था में शुगर का स्तर अनियंत्रित हो सकता है. जो परेशानी का कारण बन सकता है. यह समस्या बच्चों में ज्यादा नजर आ सकती हैं.
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