आमतौर पर मौसम बदलने पर फ्लू तथा वायरल संक्रमण के प्रभाव में आने पर बड़े तथा बच्चों, दोनों में गले में दर्द की शिकायत देखने में आती है. ज्यादातर मामलों में इसके लिए टॉन्सिलाइटिस यानी टॉन्सिल में सूजन को जिम्मेदार माना जाता है. वैसे तो टॉन्सिलाइटिस एक आम समस्या होती है लेकिन कई बार सही इलाज के अभाव या अन्य कारणों से यह गंभीर प्रभाव भी दे सकती है. टॉन्सिलाइटिस क्या है (What is tonsillitis) क्यों होता है तथा इसके क्या प्रभाव हो सकते हैं, इस बारें में जानने के लिए ETV भारत सुखी भव ने चंडीगढ़ के नाक, कान, गला विशेषज्ञ डॉ बलविंदर सिंह (Nose, Ear, Throat Specialist Dr Balwinder Singh Chandigarh) से जानकारी ली.
सामान्य तौर पर इलाज द्वारा बैक्टीरिया या वायरस का प्रभाव कम होने पर तथा कुछ सावधानियों का पालन करने से यह समस्या आराम से ठीक हो जाती है. लेकिन कभी कभी कुछ विशेष परिस्थितियों में या सही इलाज ना होने पर यह लंबे समय तक गंभीर स्वरूप में प्रभावित कर सकती है. जैसे टॉन्सिल्स की सूजन ज्यादा बढ़ जाना, उनका रंग बदल जाना और उन पर अलग अलग रंगों के पैच नजर आना आदि. यहां तक कि कई बार उनमें मवाद भी पड़ सकता है. जिसके चलते पीड़ित को खाने-पीने, बोलने और यहां तक की कभी कभी सोने में भी परेशानी होने लगती है. वहीं यह समस्या यदि ज्यादा बढ़ जाय या बार बार होने लगे तो टॉन्सिल को हटाना जरूरी हो जाता है जिसके लिए सर्जरी की मदद भी लेनी पड़ती है.
हो सकता है वयस्कों को: ENT specialist Dr Balwinder Singh बताते हैं कि टॉन्सिल्स हमारे गले का हिस्सा या अंग होते हैं जो गले के दोनों तरफ होते हैं. आमतौर पर मौसम बदलने पर या अन्य अवस्था में वायरल संक्रमण, फ्लू या कुछ विशेष बैक्टीरिया या वायरस के संपर्क में आने पर टॉन्सिल्स में सूजन आ जाती है. यह अवस्था टॉन्सिलाइटिस कहलाती है. यह एक संक्रामक बीमारी होती है. Dr Balwinder Singh Chandigarh बताते हैं कि सामान्य तौर पर सामान्य टॉन्सिलाइटिस 5 से 15 वर्ष के बच्चों को ज्यादा प्रभावित करता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह वयस्कों को नहीं हो सकता है.
टॉन्सिलाइटिस के प्रकार (Types of tonsillitis)
Dr Balwinder Singh ENT specialist बताते हैं कि टॉन्सिलाइटिस की गंभीरता, उसकी होने की निरन्तरता तथा उसके प्रभावों के आधार पर इसके छः मुख्य प्रकार माने जाते हैं.
- एक्यूट टॉन्सिलाइटिस: इस प्रकार के टॉन्सिलाइटिस में किसी जीवाणु या वायरस द्वारा संक्रमित होने पर टॉन्सिल्स पर ग्रे (स्लेटी) या सफेद रंग की परत बनने लगती है. इस अवस्था में गले में सूजन और खराश के साथ बुखार की समस्या हो सकती है. सही ध्यान व इलाज से एक्यूट टॉन्सिलाइटिस जल्दी ठीक हो जाता है.
- क्रोनिक टॉन्सिलाइटिस: बार-बार या कम अंतराल पर एक्यूट टॉन्सिलाइटिस होने की अवस्था को क्रोनिक टॉन्सिलाइटिस की श्रेणी में रखा जाता है.
- स्ट्रेप थ्रोट: स्ट्रेप थ्रोट स्ट्रेप्टोकोकस नामक बैक्टीरिया के कारण होता है. इस प्रकार के संक्रमण को गंभीर माना जाता है. इसमें गले में दर्द व बुखार के साथ गर्दन में दर्द तथा गला बंद होने जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं.
- एक्यूट मोनोन्यूक्लिओसिस: इसके लिए आमतौर पर “एपस्टीन बर्र” वायरस को जिम्मेदार माना जाता है. इस समस्या में टॉन्सिल्स में गंभीर सूजन के साथ गले में खराश, लाल चकत्ते, बुखार और थकान की समस्या हो सकती है.
- पेरिटॉन्सिलर एब्सेस: यह टॉन्सिलाइटिस के गंभीर प्रकारों में से एक माना जाता है क्योंकि इसमें टॉन्सिल्स के आसपास मवाद जमा होने लगता है और कई बार फोड़े भी बनने लगते हैं. पेरिटॉन्सिलर फोड़ों को तत्काल सुखाना बहुत जरूरी होता है.
- टॉन्सिल स्टोन्स (टॉन्सिलोइथ्स): टॉन्सिल्स में संक्रमण बढ़ने पर कई बार उनके तंतुओं में गांठे बन जाती हैं, जिसे टॉन्सिल स्टोन कहा जाता है. वहीं संक्रमण के दौरान टॉन्सिल में किसी प्रकार के अपशिष्ट के फंस जाने और फिर उनके सख्त जाने के कारण भी टॉन्सिल स्टोन्स या टॉन्सिलोइथ्स हो सकता है.
Dr Balwinder Singh बताते हैं कि कारण चाहे जो भी हो, टॉन्सिल में समस्या के बारें में जानकारी मिलते ही चिकित्सक से जांच, उनके द्वारा बताए गए दवाइयों के कोर्स को पूरा करना तथा अन्य सावधानियों का पालन करना बहुत जरूरी होता है. पीड़ित को सिर्फ इस समस्या में ही नहीं बल्कि किसी भी रोग या समस्या में बिना चिकित्सीय सलाह किसी भी दवा के उपयोग से बचना चाहिए.