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पहली बार गर्मी का सामना कर रहे शिशुओं की देखभाल में बरतें ज्यादा सावधानियां - neonatal health

गर्मी के मौसम में एक साल से कम उम्र वाले बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है. इस मौसम में शरीर में पानी की कमी के अलावा ज्यादातर छोटे बच्चों में त्वचा संबंधी समस्याएं भी काफी देखने में आती हैं. आइए जानते हैं कि विशेषज्ञ की राय के अनुसार कैसे छोटे बच्चों को गर्मी के प्रभाव से बचाया जा सकता है.

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पहली बार गर्मी का सामना कर रहे शिशुओं की देखभाल में बरतें ज्यादा सावधानियां

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Published : Apr 21, 2022, 6:52 PM IST

मौसम चाहे सर्दी का हो या गर्मी का शरीर पर अलग-अलग तरह के प्रभाव दिखाता है. दोनों मौसमों में हर उम्र के लोगों को अलग-अलग प्रकार की सावधानियां बरतने की जरूरत होती है. लेकिन जब बात ऐसे नवजात शिशुओं या छोटे बच्चों की हो, जो जन्म के बाद पहली बार गर्मी या सर्दी के मौसम का सामना कर रहे हों, तो उनके लिए सावधानियों की लिस्ट अपेक्षाकृत ज्यादा लंबी हो जाती है.

गर्मी के मौसम में छोटे बच्चों की आम समस्याएं

विशेष तौर पर गर्मी के मौसम की बात करें तो छोटे बच्चों की देखभाल में जरा सी असावधानी ना सिर्फ उनकी सेहत बल्कि त्वचा पर भी भारी पड़ सकती है. हरियाणा के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ अनुजा डागर बताती हैं कि गर्मियों के मौसम में एक साल से कम आयु वाले छोटे बच्चों को त्वचा संबंधी समस्याएं काफी परेशान कर सकती हैं.

वहीं इस मौसम में कई बार कुछ माता पिता इस सोच के साथ कि बच्चों को ज्यादा गर्मी ना लगे उन्हें लंबे समय तक तेज एसी वाले कमरे में, पंखे के सीधे नीचे या कूलर के समक्ष लेटा देते हैं. जो कि बच्चे में कई बार नाक बहने तथा सर्दी जुखाम होने का कारण बन सकता है. इससे कुछ अन्य समस्याओं के होने की आशंका भी बढ़ जाती है. बच्चे को हमेशा ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जो हवादार हो और जहां बच्चा सीधे तौर पर, पंखे या कूलर की सीधी हवा के संपर्क में ना आ पाए. यदि बच्चा एसी वाले कमरे में लेटा भी है, तो कमरे का तापमान ज्यादा ठंडा नही होना चाहिए.

पहली बार गर्मी का सामना कर रहे शिशुओं की देखभाल में बरतें ज्यादा सावधानियां

डॉ अनुजा बताती हैं कि 6 महीने से ज्यादा बड़े बच्चों, जिनका ऊपरी ठोस आहार शुरू हो चुका हो, उनके आहार पर इस मौसम में विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. अन्यथा पानी की कमी या अन्य कारण से उन्हें कब्ज या अन्य पाचन संबंधी परेशानी हो सकती हैं. जहां तक संभव हो उन्हे तरल आहार जैसे चावल का मांड व दाल का पानी जैसे आहार ही दें, जो उनके शरीर को पोषण देने के साथ शरीर में पानी की कमी को भी पूरा करते हों.

वहीं 6 माह से कम उम्र के बच्चों की बात करें तो वे पूरी तरह से माता के दूध पर निर्भर होते हैं. ऐसे में बहुत जरूरी है मां उन्हें नियमित अंतराल पर स्तनपान कराती रहे. जिससे बच्चे के शरीर में पानी की कमी ना हो. साथ ही बहुत जरूरी है कि दूध पिलाने वाली माता भी पौष्टिक व सुपाच्य आहार के साथ जरूरी मात्रा में पानी व अन्य तरल पदार्थों का सेवन करती रहे. क्योंकि यदि वह स्वस्थ रहेंगी तभी उसके दूध पर आश्रित उसके बच्चे का स्वास्थ्य भी बना रहेगा.

छोटे बच्चों को पानी कब व कितना पिलाएं

डॉ अनुजा बताती हैं कि वैसे तो सिर्फ स्तनपान करने वाले बच्चों को अलग से पानी पिलाने की जरूरत नहीं होती है क्योंकि माता के दूध में ही 80 फ़ीसदी से ज्यादा पानी होता है. वहीं ऐसे बच्चे जो किसी कारणवश 6 माह से कम आयु में ही फॉर्मूला दूध का सेवन करना शुरू कर देते हैं उनके शरीर में पानी की पूर्ति भी फॉर्मूला दूध से हो जाती है क्योंकि उसे पानी में घोलकर बनाया जाता है. लेकिन किसी समस्या या विशेष अवस्था में यदि बच्चे के शरीर में पानी की कमी होने लगे तो चिकित्सक के निर्देशानुसार ही बच्चे को सिर्फ उबला हुआ साफ पानी बताई गई मात्रा में पिलाया जाना चाहिए.

वही 6 माह से लेकर 12 माह तक के बच्चों की बात करें तो ठोस आहार के साथ यदि बच्चा स्तनपान या फार्मूला दूध का सेवन कर रहा हो तो उसके शरीर में काफी हद तक पानी की जरूरत उसी से पूरी हो जाती है. लेकिन यदि गर्मी बहुत ज्यादा हो, साथ ही बच्चे की शारीरिक गतिविधियां भी काफी ज्यादा हो तो उन्हें थोड़े-थोड़े अंतराल पर थोड़ा-थोड़ा पानी दिया जा सकता है.

त्वचा पर गर्मी के प्रभाव से कैसे बचें

डॉ अनुजा बताती हैं कि छोटे बच्चों को गर्मी के प्रभाव से बचाने के लिए बहुत जरूरी है कि उनके कपड़ों का विशेष ध्यान रखा जाए. इस मौसम में बच्चों को ज्यादातर सूती और ढीले कपड़े ही पहनाने चाहिए. इससे पसीना सूखता रहता है.

वहीं गर्मी के मौसम में अधिकांशतः बच्चों को डायपर के कारण रेशेज का सामना करना पड़ता है. दरअसल डायपर या डिस्पोजेबल नैपी के निर्माण में ऐसे तत्वों का उपयोग होता है जो बच्चों की त्वचा पर एलर्जी का कारण बन सकते हैं. ऐसे में बहुत जरूरी है कि बच्चे के डायपर को थोड़े-थोड़े अंतराल पर बदला जाता रहे. साथ ही दिन में कम से कम दो बार कुछ समय शिशु को बगैर डायपर के खुली हवा में छोड़ देना चाहिए. इस मौसम में बच्चे को डायपर की बजाय सूती कपड़े की नैप्पी या लंगोट पहनाना ज्यादा फायदेमंद होता है.

इस मौसम में बच्चों की साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. जहां तक संभव हो उन्हें प्रतिदिन नहलाना चाहिए. यदि किसी कारण से ऐसा संभव ना हो तो गीले कपड़े से उसके पूरे शरीर को अच्छे से साफ करना चाहिए. इसके अलावा बच्चे की त्वचा को साफ करने के बाद उसे सुखाकर हमेशा ऐसी स्थानों पर जहां पसीना ज्यादा आता हो जैसे उसकी बगल, गर्दन तथा जांघों पर कम खुशबूदार टेलकम पाउडर का इस्तेमाल करना चाहिए.

ध्यान दें

डॉक्टर अनुजा बताती हैं कि यदि तमाम सावधानियों के बाद भी बच्चों की त्वचा पर छोटे-छोटे लाल दानें, चकते, रेशेज या अन्य प्रकार की त्वचा संबंधी समस्याओं के प्रभाव नजर आने लगे, या उन्हें पेशाब करने में, मल त्यागने में समस्या या अन्य प्रकार की शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़े तो तत्काल चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए.

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