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थिंक चेंज फोरम ने लॉन्च किया 'फ्रीडम फॉर आवर फ्यूचर' कैंपेन, वैपिंग के दुष्प्रभावों को सामने लाएगा डिजिटल अभियान - vaping awareness

TCF ने वेपिंग पर लगाम के लिए अपना अभियान 'फ्रीडम फॉर अवर फ्यूचर लॉन्च किया है. अर्जुन पुरस्कार व पद्मश्री से सम्मानित डॉ दीपा मलिक ने कहा मैं इस अभियान का स्वागत करती हूं क्योंकि यह हमारे बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा करने में मदद करेगा.

vaping side effects
वैपिंग के हानिकारक प्रभाव

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Published : Aug 15, 2023, 2:07 PM IST

नई दिल्ली: किशोरों के बीच नशे की बढ़ती लत के कारणों की पड़ताल और इस दिशा में प्रभावी समाधान प्रदान करने के अपने प्रयासों के तहत थिंक चेंज फोरम (टीसीएफ) ने आगामी स्वतंत्रता दिवस से पूर्व वेपिंग पर लगाम के लिए अपना अभियान 'फ्रीडम फॉर अवर फ्यूचर लॉन्च किया है. TCF एक स्वतंत्र थिंक टैंक है जो नए विचारों के लिए समर्पित है. स्पोर्ट्स, ब्यूरोक्रेसी, सशस्त्र बल और बाल कल्याण समेत विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ इस अभियान से जुड़े हैं और वेपिंग जैसी गतिविधियों के खिलाफ शिक्षा को बढ़ावा देने की जरूरत जताई है. विशेषज्ञों ने सरकार से आग्रह किया कि विभिन्न सार्वजनिक मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से वैपिंग के खिलाफ जागरूकता अभियानों की शुरुआत की जाए, जिससे धूम्रपान-रोधी विज्ञापनों जैसा ही प्रभाव लाया जा सके.

वैपिंग क्या है:वैपिंग, सिगरेट की तरह ही होता है लेकिन इसमें धुएं के बजाय तरल कणों ( Liquid particles ) को छोटे हैंडहेल्ड डिवाइस जैसे वेप पेन, E-सिगरेट का इस्तेमाल करके सांस के जरिए अंदर खींचा जाता है. टीमवर्क आर्ट्स के प्रबंध निदेशक, सलाम बालक ट्रस्ट के संस्थापक ट्रस्टी संजय रॉय ने कहा, 'वैपिंग के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता लाने के लिए फ्रीडम फॉर अवर फ्यूचर अभियान का हिस्सा बनने की मुझे खुशी है. जिस तरह सिनेमाहॉल में धूम्रपान विरोधी ग्राफिक विज्ञापन दिखाए जाते हैं, उसी तरह हमें वैपिंग के खिलाफ भी ऐसे ही प्रभावशाली संवाद की जरूरत है. इन विज्ञापनों में वैपिंग के कारण व्यक्ति के फेफड़ों और समग्र स्वास्थ्य को होने वाले संभावित नुकसान को स्पष्ट रूप से दर्शाया जाना चाहिए और वैपिंग को छवि के लिए प्रतिकूल दिखाया जाना चाहिए. समय की आवश्यकता है सरकार एंटी-वैपिंग विज्ञापन अभियान शुरू करे.'

वैपिंग - कांसेप्ट इमेज

पद्मश्री, खेल रत्न और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित डॉ. दीपा मलिक ने जोर देकर कहा, 'मैं इस अभियान का स्वागत करती हूं क्योंकि यह हमारे बच्चों में वैपिंग की आदत को कम करने और उनके स्वास्थ्य की रक्षा करने में मदद करेगा. नीति निर्माताओं को भी नीतियों में संशोधन करना चाहिए और वैपिंग के हानिकारक प्रभावों के बारे में व्यापक जागरूकता अभियान की शुरुआत करनी चाहिए. ये प्रभावशाली विज्ञापन केवल मूवी हॉल तक ही सीमित नहीं होने चाहिए बल्कि गलतफहमियों को दूर करने के लिए विभिन्न सार्वजनिक स्थलों पर भी इन्हें प्रदर्शित किया जाना चाहिए.'

वैपिंग के दुष्प्रभावों को सामने लाएगा डिजिटल अभियान
'फ्रीडम फॉर अवर फ्यूचर अभियान मुख्यतः एक डिजिटल अभियान होगा. इसके तहत शैक्षिक वीडियो की एक सीरीज होगी जो वैपिंग के दुष्प्रभावों को सामने लाएगी और इस आदत से जुड़े भ्रम को दूर करेगी. इस डिजिटल दुनिया में बच्चे ही प्राथमिक नागरिक हैं और इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस अभियान को डिजिटल माध्यम पर लॉन्च किया गया है, जिससे देश के बच्चे इन मादक द्रव्यों के सेवन से दूर हों. यह अभियान भारत के साथ-साथ अन्य देशों में वैपिंग पर प्रतिबंध के बारे में जागरूकता भी बढ़ाएगा और ऐसे प्रतिबंधों के पीछे के कारणों को स्पष्ट करेगा.

विशेषज्ञों ने वैपिंग जैसी गतिविधियों को लेकर दंडित करने के लिए नए कानून के साथ-साथ सरकार के नेतृत्व में मांग घटाने के अभियान संचालित करने की मांग भी की. सोसायटी फॉर प्रमोशन ऑफ यूथ एंड मासेज (एसपीवाईएम) के कार्यकारी निदेशक डॉ. राजेश कुमार ने कहा, 'वैश्विक और भारतीय स्तर पर ज्यादातर प्रयास सप्लाई रोकने पर केंद्रित हैं, जबकि हमें मांग कम करने पर फोकस करना होगा. केवल सप्लाई कम करने की पहल अपर्याप्त है. आपूर्ति में कमी के प्रयासों के साथ ही सरकार के नेतृत्व में मांग कम करने की नीति भी अनिवार्य है. इस नीति में वैपिंग या अन्य मादक द्रव्यों के कारोबार से जुड़े लोगों को दंडित करने वाले कड़े कानून शामिल हो सकते हैं. इस तरह के उपायों से बच्चों और माता-पिता दोनों में डर पैदा होगा, जिससे उपयोग कम हो जाएगा और बाद में आपूर्ति पर भी असर पड़ेगा.'

कर्नाटक कैडर की रिटायर्ड वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी प्रभा राव इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम जो स्कूल उठा सकते हैं, वह है सभी छात्रों की वार्षिक स्वास्थ्य जांच. इसमें ब्लड टेस्ट भी शामिल है, जिससे यह पता लग सकता है कि बच्चे किसी ड्रग का सेवन कर रहे हैं कि नहीं. निजी स्कूल इसे आसानी से अपना सकते हैं, साथ ही उचित फंडिंग के साथ सरकारी स्कूल भी ऐसा कर सकते हैं.'

आईए एंड एएस, महानिदेशक लेखापरीक्षा (सेवानिवृत्त) गजाला मीनई ने कहा, 'निकोटिन-फ्री वैपिंग से शुरुआत करते हुए बच्चा धीरे-धीरे तंबाकू और फिर अन्य खतरनाक पदार्थों के सेवन की ओर बढ़ सकता है. बच्चों को सशक्त बनाया जाना चाहिए, ताकि वे आत्मविश्वास के साथ नशीली दवाओं को अस्वीकार कर सकें. हमारे स्कूली दिनों की नैतिक शिक्षा की पढ़ाई की तरह ही जीवन के शुरुआती स्तर पर ही बच्चों को सही मूल्य दिए जाने चाहिए.'

डॉ. दीपा मलिक ने कहा, माता-पिता अक्सर अपने बच्चों को बहुत बचाकर रखते हैं, उन्हें असुविधाओं से बचाते हैं, जिससे उन्हें परिस्थितियों के अनुरूप ढलना नहीं आता है. यही आगे चलकर उन्हें वैपिंग और अन्य नशे की चपेट में आने का कारण बन सकता है. जरूरी है कि उन्हें सशक्त बनाएं, जिससे वे बुद्धिमानी से निर्णय और ऐसी हानिकारक आदतों से दूर रहने में सक्षम बनें.'

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एयर कमोडोर (डॉ.) हरिंद्र कुमार धीमान वीएसएम (सेवानिवृत्त), जो वर्तमान में मणिपाल विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रशासक हैं, ने कहा, 'आज के युवाओं को समझना महत्वपूर्ण है; वे अत्यधिक प्रयोगात्मक, बुद्धिमान और जल्दी सीखने वाले हैं. वे जानते हैं कि उनकी गलतियों के परिणाम से उनके माता-पिता उन्हें बचा लेंगे. यह मानसिकता बदलनी चाहिए और उन्हें एहसास होना चाहिए कि उन्हें अपनी गलतियों की जिम्मेदारी लेनी होगी."थिंक चेंज फोरम एक स्वतंत्र थिंक टैंक है जो नए विचारों का सृजन करने और नई बदलती दुनिया में आगे बढ़ने की दिशा में समाधान खोजने के लिए समर्पित है.

(अतिरिक्त इनपुट एजेंसी )

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