छोटे बच्चों में लिखने-पढ़ने में समस्या होना आम बात होती है. कुछ में यह कम तो कुछ में ज्यादा भी नजर आ सकती है. ज्यादातर लोग बच्चों के पढ़ने-लिखने की क्षमता को उनकी बुद्धिमत्ता से जोड़ कर देखते हैं. जो सही नहीं है. कई बार बच्चों में पढ़ने लिखने में समस्या लर्निंग डिसएबिलिटी कहे जाने वाली मानसिक स्थिति डिस्लेक्सिया (Mental condition learning disability) के कारण भी हो सकती है. आंकड़ों कि माने तो हर 10 में से एक बच्चे में (Learning disability Mental condition) यह समस्या पाई जाती है. लेकिन इसके बावजूद ज्यादातर लोग इसके कारणों, इसके प्रभावों तथा इसके निवारण के उपायों को लेकर ज्यादा जागरूक नहीं है. वैश्विक स्तर पर लोगों में इस Learning disability को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल चार अक्टूबर को विश्व डिस्लेक्सिया दिवस (World Dyslexia Day 4 October 2022) मनाया जाता है. The international dyslexia association world dyslexia day 2022 theme breaking through barrier .
डिस्लेक्सिया दुनिया भर के बच्चों में पाई जाने वाली एक आम Learning disability है. डिस्लेक्सिया दरअसल किस तरह का मनोरोग है! उसके क्या प्रभाव हो सकते है इस बारें में ज्यादा जानने के लिए ETV भारत सुखीभवा ने देहरादून की मनोचिकित्सक, राष्ट्रीय स्तर पर मनोरोगों के लिए जागरूकता फैलाने तथा उनके निवारण के लिए देश भर के मनोचिकित्सकों द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम “मैप टॉक“ (Map Talk) की जनरल सेकेट्री व सुसाइड प्रिवेंशन (Suicide Prevention) सहित विभिन्न मानसिक समस्याओं को लेकर चलाये जा रहे कई सरकारी व गैर सरकारी अभियानों की सदस्य डॉ वीना कृष्णन (Dr Veena Krishnan General Secretary Map Talk) से बात की.
क्या है डिस्लेक्सिया (What is dyslexia):डॉ. कृष्णन (Dr Veena Krishnan Psychiatrist Dehradun) बताती है कि डिस्लेक्सिया एक ऐसी मानसिक अवस्था है, जिसमें बच्चा किसी जानकारी को ग्रहण करने, उसको समझने और उसका इस्तेमाल करने में असमर्थ रहता है. यह लर्निंग डिसऑर्डर है. जिसमें आमतौर पर बच्चों को दिशा पहचान पाने में, अक्षरों को पहचान पाने में, लगातार इस्तेमाल होने वाले शब्दों की स्पेलिंग को भी पढ़ने व लिखने में, अक्षरों को हमेशा एक जैसा लिखने में, उनके सीधे या उलटे होने का भेद कर पाने में, वाक्यों या शब्दों का सही गठन करने तथा बातों या पाठ को याद रखने मुश्किल आती है. कई बार बच्चे इस समस्या में मिरर इमेज में अक्षर लिखने लगते हैं. यहाँ तक की कई बार डिस्लेक्सिक बच्चे ब्लैक बोर्ड या किताब से पढ़कर भी कॉपी में सही तरीके से नहीं लिख पाते हैं. इसके अलावा इन बच्चों को जूते के फीते बांधने या शर्ट में बटन लगाने जैसे कार्य, जहां ध्यान लगाने की जरूरत होती है, करने में समस्या होती है. इस समस्या से पीड़ित बच्चों की कुछ भी सीखने की गति काफी धीमी होती है.
Dr Veena Krishnan Psychiatrist बताती हैं कि यह दरअसल तंत्रिका तंत्र (Nervous system) से जुड़ा एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर (Neurological disorder) है, जिसके लिए कई बार आनुवंशिक कारण (Genetic reasons) भी जिम्मेदार हो सकते हैं. आमतौर पर ज्यादा छोटे बच्चों में शुरुआत में इसके लक्षणों को समझना मुश्किल होता है. क्योंकि यह कोई शारीरिक बीमारी तो है नहीं, इसलिए किसी बच्चे के स्वास्थ्य को देख कर इसके लक्षणों का पता नहीं लगाया जा सकता है और जब बच्चा स्कूल जाना शुरू करता है तो शुरुआत में लगभग सभी बच्चों को सीखने में समस्या होती ही है.आमतौर पर बच्चों में भी इसके लक्षण तब समझ में आते हैं जब स्कूल में लगातार उन्हे भाषा या नई चीजें सीखने में परेशानी होने लगती है. डॉ वीना कृष्णन बताती हैं कि लक्षणों के आधार पर इस लर्निंग डिसऑर्डर के तीन मुख्य प्रकार माने जाते हैं.
- डिस्लेक्सिया (Dyslexia): जिसमें बच्चे को शब्दों को पढ़ने में दिक्कत होती है.
- डिस्ग्राफिया (Dysgraphia): जिसमें बच्चे को लिखने में समस्या होती है.
- डिस्कैल्कुलिया (Dyscalculia): जिसमें उसे गणित विषय में समस्या आती है.
मानसिक बीमारी नहीं है डिस्लेक्सिया (Dyslexia is not a mental illness)
डॉ वीना कृष्णन बताती है कि डिस्लेक्सिया मानसिक बीमारी नहीं है और इस समस्या से पीड़ित बच्चे जरूरी नहीं है की बुद्धू हों. कई बार डिस्लेक्सिक बच्चों की बौद्धिक क्षमता (Intellectual abilities of dyslexic) औसत या औसत से ज्यादा भी हो सकती है. ये बच्चे चित्रकार, बेहतरीन वक्ता या गायक भी हो सकते है. Psychiatrist Dr Veena Krishnan बताती हैं कि हालांकि पहले के मुकाबले अब लोग इस समस्या को लेकर ज्यादा जागरूक हो रहे हैं लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे माता-पिता हैं जो इस समस्या के लक्षण नजर आने के बावजूद इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर पाते हैं कि उनके बच्चे को जांच तथा विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है. जिसका खामियाजा बच्चे को उठाना पड़ता है. जब सीखने में या पढ़ाई में सही परफ़ॉर्म ना करने पर अध्यापक और अभिभावक उन्हे सबके सामने डांटते हैं उनके दोस्त और उसके सहपाठी उनका मजाक उड़ाने लगते है, तो कई बार कुछ बच्चों में आत्मविश्वास में कमी आने लगती है, वहीं कुछ बच्चों में गुस्सा, जिद, लड़ने या मारपीट करने की आदत बढ़ जाती है. ऐसी हालात में बच्चा वह काम भी नहीं कर पाता, जो उसे ज्यादा बेहतर तरह से आता हैं.