पिछले दिनों एक अध्ययन में सामने आया था कि तनाव इम्यून एजिंग को बढ़ावा देता है, जिससे भविष्य में कैंसर जैसी गंभीर समस्याओं का जोखिम बढ़ सकता है. लेकिन तनाव से सिर्फ यही एक समस्या नहीं बढ़ती है. कई शोधों में सामने आ चुका है तनाव कई शारीरिक व मानसिक समस्याओं का कारण बन सकता है. ETV भारत सुखीभवा ने तनाव को लेकर पिछले कुछ सालों में सामने आए कुछ शोधों को लेकर जानकारी एकत्रित की तथा इस संबंध में अपने विशेषज्ञ की भी जानकारी ली.
इम्यून एजिंग बढ़ाता है
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में सामने आया है कि ट्रामा या किसी भी तरह का तनाव होने पर व्यक्ति की इम्युनिटी कमजोर होने लगती है. जिससे ना सिर्फ संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है बल्कि समय से पहले इम्यून एजिंग और कैंसर जैसी बीमारी तक का जोखिम बढ़ सकता है. शोध के नतीजों में प्रमुख अध्ययन लेखक डॉ. एरिक क्लोपैक ने बताया है कि जो लोग तनाव का अनुभव करते हैं, उनकी आहार संबंधी आदतें खराब होने लगती हैं और वे व्यायाम भी नहीं करते हैं. जिससे तनाव का प्रभाव बढ़ने लगता है. इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि ट्रॉमा और समाज में हो रहे भेदभाव की वजह से बड़ी संख्या में लोग लगातार तनाव लेने लग जाते हैं. जिसके फलस्वरूप उनके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है और सीएमवी वायरस के असर होने की आशंका बढ़ जाती है.
सीएमवी एक ऐसा वायरस होता है जिसे जिसे इम्यून एजिंग का कारण माना जाता है. इस वायरस से एक बार संक्रमित होने के बाद, यह व्यक्ति के शरीर में जीवन भर रहता हैं. इसके चलते पीड़ित को अक्सर हरपीज़ या कोल्ड सोर जैसी समस्याएं हो सकती हैं. इस शोध में प्रतिभागियों के रक्त के नमूने लिए गए थे और उनकी टी कोशिकाओं की गिनती की गई थी. साथ ही उनमें उतार-चढ़ाव की जांच भी की गई थी. जिसमें पाया गया कि ट्रामा और भेदभाव से दो प्रकार के टी सेल्स प्रभावित होते हैं. इनमें से एक इम्यून अटैक करते हैं और दूसरे वो जो इम्यून अटैक को रेगुलेट करते हैं.
गौरतलब है कि टी कोशिकाएं प्रतिरक्षा उम्र बढ़ने से प्रभावित एकमात्र कोशिकाएं नहीं हैं, बल्कि वे प्रतिरक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण घटक होती हैं और कैंसर तथा रोगजनकों से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. ऐसे में टी कोशिकाओं को नुकसान पहुँचने पर कैंसर, संक्रामक रोगों और अन्य रोगों के लिए खतरा बढ़ जाता है.
इस शोध से पूर्व भी तनाव के शारीरिक स्वास्थ्य विशेषकर शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पर पड़ने वाले असर को लेकर शोध किए जाते रहे हैं. "नेचर" नामक पत्रिका में प्रकाशित एक शोध में चूहों पर हुए एक अध्ययन में भी इस बात की पुष्टि की गई थी कि तनाव कई शारीरिक बीमारियों का कारण बन सकता है.
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नेत्र व मस्तिष्क को नुकसान
सिर्फ प्रतिरक्षा प्रणाली पर असर ही नहीं, तनाव नेत्रों व मस्तिष्क में नुकसान का कारण भी बन सकता है. जर्मनी में मैग्डेबर्ग की ओटो वॉन गुरिके यूनिवर्सिटी के एक शोध में सामने आया था कि लंबे समय तक लगातार तनाव और कोर्टिसोल के बढ़े हुए स्तर से ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम में असंतुलन बढ़ने लगता है. जो वास्कुलर डिरेगुलेशन के कारण बनता है. इससे नेत्रों और मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. उक्त शोध में यह भी पाया कि इंट्राऑकुलर प्रेशर में वृद्धि, एंडोथेलियल डिसफंक्शन (फ्लैमर सिंड्रोम) और सूजन, तनाव के कुछ ऐसे नतीजे हैं जिससे और भी कई तरह से नुकसान पहुंच सकता है.
वहीं, कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ कैल्गरी के शोधकर्ताओं द्वारा चूहों पर किए गए शोध में भी सामने आया था कि मस्तिष्क में बदलाव से जुड़े तनाव के कारण पीटीएसडी, चिंता विकार और अवसाद सहित कई मानसिक बीमारियां हो सकती हैं. नेचर न्यूरोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित हुए इस शोध में कहा गया था कि तनाव और भाव संक्रामक हो सकते हैं.
इसके अलावा वर्ष 2013 में स्वीडन में 800 महिलाओं पर हुए शोध में सामने आया था कि महिलाओं में मध्य वय जीवन के तनाव के चलते भूलने की बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है. बीएमजे ओपन में प्रकाशित इस शोध में इन महिलाओं में एक दशक के बाद अल्जाइमर से पीड़ित होने की आशंका जताई गई थी. शोध में बताया गया था कि तनाव से जुड़े हार्मोन की वजह से दिमाग पर विपरीत असर पड़ता है.
बालों पर प्रभाव
तनाव के चलते शरीर पर उम्र का जल्दी असर भी नजर आ सकता है. न्यूयॉर्क स्थित कोलंबिया यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में मनोवैज्ञानिक तनाव से बालों के सफेद होने के संख्या आधारित (क्वांटिटेटिव) सबूत जुटाए गए थे. इस शोध में यह भी पाया गया था कि तनाव खत्म होने पर प्रतिभागियों के बाल फिर से काले होने लगे. शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि तनाव होने पर इंसान की कोशिकाओं के माइटोकांड्रिया में बदलाव होने लगता है. जिससे बालों में पाए जाने वाले सैकड़ों प्रोटीन बदल जाते हैं और काले बालों का रंग सफेद हो जाता है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
दिल्ली के मनोवैज्ञानिक व काउन्सलर रितेश सोनी बताते हैं कि इस बात की पुष्टि ना सिर्फ कई शोधों में हो चुकी है बल्कि चिकित्सा विज्ञान भी मानता है कि तनाव हमारे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को काफी ज्यादा प्रभावित कर सकता है. सिर्फ कार्टिसोल में उतार चढ़ाव ही नहीं और भी कई मध्यमों में तनाव प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में शारीरिक व मानसिक समस्याओं का कारण बन सकता है. वह बताते हैं कि लंबे समय से तनाव या अवसाद से पीड़ित कई लोगों में कोमोरबीटी से लेकर कई अन्य रोग नजर आ सकते हैं. जिसके लिए तनाव के चलते खान-पान में अनुशासनहीनता सहित कई अन्य कारणों को जिम्मेदार माना जा सकता है. वह बताते हैं कि तनाव यदि ज्यादा बढ़ने लगे तो उसका इलाज भी उतना ही जरूरी है जितना अन्य गंभीर बीमारियों का अन्यथा यह स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव दिखा सकता है.