हमारे समाज में किसी व्यक्ति की अपंगता या शारीरिक तथा मानसिक कमी का मजाक बनाना आम बात है. किसी का लंगड़ा कर चलना, आँखों में समस्या, त्वचा संबंधी समस्या उसे लोगों में हंसने का पात्र बना देते हैं. ऐसी ही एक समस्या है हकलाना. यदि कोई व्यक्ति अटक-अटक कर बात कर रहा हो या उसे बोलने में समस्या आ रही हो, तो दूसरे लोग बगैर यह समझे कि यह कोई बीमारी या समस्या हो सकती है,उसका मजाक उड़ाने लगते हैं. जो पीड़ित में हीनता का भाव उत्पन्न करने लगता है.
लोगों को इसी तथ्य से रूबरू कराने कि हकलाना एक ऐसी समस्या है,जो किसी शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक समस्या के कारण हो सकती है तथा इससे जुड़ी अन्य जरूरी बातों को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 22 अक्टूबर को दुनिया भर में “अंतरराष्ट्रीय हकलाहट जागरूकता दिवस” मनाया जाता है.
बच्चों तथा बड़ों में स्टैमरिंग यानी हकलाने की समस्या अलग-अलग कारणों से हो सकती है. ऐसे में स्पीच थेरेपी इस समस्या को दूर करने में मददगार हो सकती है. लेकिन यहां यह जानना भी जरूरी है कि स्पीच थेरेपी हकलाने का शत-प्रतिशत इलाज नहीं होती है. मस्तिष्क में गंभीर समस्या या अनुवांशिकता के कुछ मामलों में हकलाने की समस्या में स्पीच थेरेपी ज्यादा मदद नहीं कर पाती है.
क्या है हकलाना
दरअसल हकलाना एक आम बोलने से संबंधित समस्या है. जो किसी शारीरिक या मानसिक बीमारी, भावनात्मक उथल-पुथल या सदमें, दुर्घटना, स्ट्रोक तथा अन्य कारणों के चलते मस्तिष्क के प्रभावित होने पर हो सकती है. कुछ लोगों में यह समस्या अनुवांशिक तौर पर भी नजर आती है. आम तौर पर यदि परिवार में इस समस्या का इतिहास हो तो 3 में से 2 लोगों में हकलाने की समस्या नजर आ सकती है.
बेंगलुरु के स्पीच थैरेपिस्ट सचिन भारद्वाज बताते हैं कि आमतौर पर स्टैमरिंग के दो मुख्य प्रकार माने जाते हैं. पहला, डेवलपमेंटल स्टैमरिंग (Developmental Stammering), जिसमें छोटे बच्चों में देर से बोलने की समस्या नजर आती है, और जब वह बोलने भी लगते हैं तो कई बार वह साफ बोलने की बजाय ज्यादातर अटक अटक कर बोलते हैं.
वही दूसरा प्रकार है लेट ऑनसेट स्टैमरिंग (Late Onset Stammering), जिसमें ऐसे लोग जो पहले सही तरह से बात करते हों लेकिन बाद में किसी बीमारी या दुर्घटना के कारण मस्तिष्क को पहुंचने वाले नुकसान के कारण सहज तरीके से और साफ बोलने में असमर्थ हो जाते हैं. इसके अलावा कई बार लोगों में साइकोजेनिक कारणों यानी किसी सदमे या मानसिक त्रास के चलते भी बोलने में समस्या होने लगती है.
सचिन भारद्वाज बताते हैं कि बच्चों में देर से बोलने की समस्या या हकलाने की समस्या पता चलते ही उनकी स्पीच यानी बोलने की क्षमता पर काम किया जाना बहुत जरूरी होता है. सही समय पर सही थेरेपी मिलने से ज्यादातर मामलों में इस समस्या को दूर किया जा सकता है. लेकिन इसमें समय लग सकता है इसलिए बहुत जरूरी है की पूरी थेरेपी के दौरान माता-पिता धैर्य बनाकर रखें तथा चिकित्सक द्वारा बताए गए निर्देशों का पूरी तरह से पालन करें.
वे बताते हैं कि कई बार माता-पिता या परिजनों का व्यवहार उन बच्चों के आत्मविश्वास में कमी ले आता है जिन्हें बोलने में पहले से ही समस्या होती है. जिससे उनके ठीक होने की रफ्तार पर भी असर पड़ता है.