लखनऊ : किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक कई बच्चे टाइप 2 मधुमेह का शिकार हो रहे हैं. केजीएमयू के मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ फैकल्टी मेंबर कौसर उस्मान ने कहा, 'जिस सबसे छोटे बच्चे में मैंने मधुमेह का निदान और उपचार किया है, वह कक्षा 7 का छात्र था, जिसके परिवार में मधुमेह का कोई इतिहास नहीं था. ऐसे बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई है. बिना किसी पारिवारिक इतिहास के ओपीडी में मधुमेह का निदान किया जा रहा है.'
डॉक्टरों का कहना है कि इसके लिए आनुवांशिकी से ज्यादा बदलती आदतों/जीवनशैली को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. केजीएमयू के फिजियोलॉजी विभागाध्यक्ष एनएस वर्मा ने कहा, 'बच्चे अब ज्यादातर घर से बाहर का खाना खाने लगे हैं और यहां तक कि स्कूल में टिफिन लाने से भी बचते हैं. व्यस्त माता-पिता भी टिफिन के बजाय पैसे देते हैं. इसके अलावा उन पर अच्छा प्रदर्शन करने का काफी दबाव है. इसका उद्देश्य कक्षा 4 या 5 से ही चिकित्सा या इंजीनियरिंग जैसे पेशे पर निर्णय लेना है. हमारे समय में यह सारा दबाव कक्षा 10 के बाद ही आता था.'