गौरतलब है की प्री-एक्लेमप्सिया एक गर्भावस्था से जुड़ी अवस्था है, जोकि आमतौर पर गर्भावस्था का आधा चरण पार कर लेने के बाद या फिर शिशु के जन्म के कुछ ही समय बाद होती है। गर्भावस्था के 20 सप्ताह बाद इसके विकसित होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। प्री-एक्लेमप्सिया के कारण अपरा यानी प्लेसेंटा से रक्त का प्रवाह कम हो जाता है। जिससे माता का रक्तचाप अनियंत्रित हो सकता है, और गर्भस्थ शिशु को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन और पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं। इससे उसका विकास भी बाधित हो सकता है। इस विकार के चलते मां और बच्चे दोनों को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है।
जर्नल क्लिनिकल साइंस में प्रकाशित इस समीक्षा में आंकड़ों के एक बड़े सेट का विश्लेषण किया गया था। जिसमें निष्कर्ष निकला कि गर्भावस्था के दौरान कोरोना संक्रमण होने पर एसीई2 के कार्य पर असर पड़ता है जिससे शरीर में प्रोटीन की हानी हो सकती है, जोकि प्लेसेंटा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। साथ ही एसीई2 के कार्य के प्रभावित होने के कारण माता का रक्तचाप भी प्रभावित होता है।
दरअसल एसीई2 एक प्रकार का प्रोटीन है, जो कोरोना संक्रमण होने पर प्रभावित होने वाली कोशिकाओं (एसीई2 रिसेप्टेर) को बांधने का कार्य करता है। गौरतलब है की एसीई2 के स्तर में परिवर्तन उन प्रणालियों के कामकाज को बाधित करता है, जो रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए उन पर निर्भर होते हैं।
फेडरल यूनिवर्सिटी ऑफ साओ पाउलो मेडिकल स्कूल (ईपीएम-यूनीएफईएसपी) में अपने डॉक्टरेट अनुसंधान के रूप में इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाली नायरा अज़िन्हेरा नोब्रेगा क्रूज़ बताती हैं की "गर्भवती महिलाओं में सार्स-कोवी-2 द्वारा संक्रमण होने और प्लेसेंटा में उसके चलते एसीई2 के कार्यों के प्रभावित होने को लेकर किए गए अध्ययनों के निष्कर्षों के आधार पर, यह नतीजा निकाला जा सकता है कि गर्भवती महिलाओं में गैर-गर्भवती महिलाओं की तुलना में, कोविड -19 संक्रमण के गंभीर रूप के विकसित होने का खतरा अधिक होता है।