नोएडा/लखनऊ : ग्रेटर नोएडा में कभी सुंदर तालाबों और झीलें हुआ करती थीं, इन्हीं के बारे में बात करते हुए 29 साल के रामवीर तंवर ने कहा कि उन्होंने गौतम बुद्ध नगर में तालाबों और झीलों को धीरे-धीरे सिकुड़ते और फिर गायब होते देखा है. उनका कहना कि अगर स्थानीय लोग पहल करें तो वे अपने इलाके के जलस्रोतों को बचा सकते हैं. गौतम बुद्ध नगर के निवासी रामवीर तंवर ने कहा, ''मेरा तालाब व झीलों के प्रति आकर्षण था. मैं अपने मवेशियों के झुंड को अपने गांव डाढ़ा में चराने के लिए ले जाता था. मैं अपना स्कूल का काम इत्मीनान से पूरा करने के लिए स्थानीय तालाब के किनारे बैठता था, उस समय भी जब जानवर घास खाते थे.''
जल चौपाल अभियान की शुरूआत : Ramveer Tanwar ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की है. पिछले कुछ सालों में अपने गांव और ग्रेटर नोएडा के सभी क्षेत्रों का शहरीकरण देखा है. शहरीकरण के चलते जनसंख्या वृद्धि हुई, जिसके कारण जल निकाय और जंगल सिकुड़ गए. उन जमीनों पर ऊंची इमारतें खड़ी हो गई. फिर तंवर ने फैसला किया कि वह लुप्त हो रहे जल निकायों और वन भूमि की चिंता का समाधान करेंगे. तंवर और उसके बैच के साथियों ने स्थानीय समुदायों के साथ जल संरक्षण पर 'जल चौपाल' नामक एक अनौपचारिक अभियान शुरू किया. उन्होंने अपने गांव डाढ़ा से शुरुआत की, लेकिन जल्द ही डबरा, कुलीपुरा, चौगानपुर, रायपुर, सिरसा, रामपुर, सलेमपुर सहित इलाके के अन्य गांवों का दौरा किया.
छात्र समूह के साथ कई पर्यावरणविद् भी थे और उन्होंने ग्रामीणों के साथ बैठकें कीं. इन 'जल चौपालों' में, ग्रामीणों ने पानी की गुणवत्ता के मुद्दों पर अपने अनुभव साझा किए, और छात्र समूह और विशेषज्ञों ने उपायों पर चर्चा की. उन्होंने लोगों से जल संरक्षण और तालाबों, झीलों और आर्द्रभूमि ( Wetland ) जैसे प्राकृतिक संसाधनों को बचाने का आग्रह किया. Pondman Ramveer Tanwar ने अपने गांव के बच्चों को शिक्षा देना शुरू किया, जिससे उन्हें लगने लगा कि उन्हें अपने खत्म होते जल स्रोतों के बारे में कुछ करना होगा. बाद में, उन्होंने छात्रों से कहा कि वे हर रविवार को अपने माता-पिता के साथ आएं और वह पानी के संरक्षण के तरीके सुझाएंगे. आखिरकार संदेश समझ में आने लगा और ग्रामीण वास्तव में उस समस्या को समझने लगे जिसका वे सामना कर रहे थे. उनके प्रयास की जिला अधिकारियों ने सराहना की और इन Jal Chaupal को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई. 2015 में, तंवर और उनके स्वयंसेवकों, छात्रों और उनके अभिभावकों की टीम ने पहले तालाब से सारा कचरा हटा दिया. उन्होंने न केवल इसे साफ किया, बल्कि इसके आसपास कुछ पेड़ भी लगाए.
शानदार नौकरी छोड़ी
बाद में, उन्होंने स्थानीय प्रशासन को जीर्णोद्धार देखने के लिए आमंत्रित किया. अच्छी खबर तेजी से फैली और जल्द ही, अन्य गांवों और जिलों के लोग स्थानीय झीलों के जीर्णोद्धार में मदद मांगने के लिए आने लगे. उन्होंने अधिक लोगों को शामिल किया और क्षेत्र में दर्जनों झीलों और तालाबों का जीर्णोद्धार किया. स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद, Ramveer Tanwar को एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी मिल गई, जहां उन्होंने लगभग दो सालों तक काम किया. लेकिन, वह 'जल चौपाल' को अपने दिल और दिमाग से नहीं निकाल सके और जल्द ही तंवर ने सूखे जल निकायों को बचाने और वनीकरण को बढ़ावा देने में अपना समय और ऊर्जा समर्पित करने के लिए अपनी शानदार नौकरी छोड़ दी.
आखिरकार, तंवर 2016 में पूर्णकालिक संरक्षणवादी बन गए. Ramveer Tanwar का कहना है कि भारत में 60 प्रतिशत से अधिक जल निकाय या तो कचरे या ठोस कचरे से भरे हुए हैं या उन क्षेत्रों पर अतिक्रमण कर लिया गया है. उन्होंने कहा, ''यह उन क्षेत्रों में अधिक प्रचलित है जहां शहरीकरण हो रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में Wetlands तुलनात्मक रूप से बेहतर स्थिति में हैं. जो भी क्षेत्र शहरीकृत है, उस क्षेत्र की Wetland को नुकसान होगा.''