ऑटिज्म के इलाज तथा इस समस्या पर नियंत्रण को लेकर ना सिर्फ पारंपरिक चिकित्सा पद्धती बल्कि चिकित्सा की विभिन्न विधाओं में भी शोध तथा प्रयास किए जा रहे हैं। जानकार मानते हैं की होम्योपैथिक दवाइयां ऑटिज्म पर नियंत्रण में फायदेमंद हो सकती है। ऑटिज्म प्रबंधन में होम्योपैथी की सफलता के बारे में जानने के लिए ETV भारत सुखीभवा ने होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. समीर चौक्कर से बात की जो लंबे समय से ऑटिज्म पीड़ितों की मदद कर रहें है।
होम्योपैथी और ऑटिज्म
डॉ. समीर बताते हैं की होम्योपैथिक दवाइयां ऑटिज्म के लक्षण तथा उसके प्रभावों पर काफी सकारात्मक असर करती है। होम्योपैथी में ऑटिज्म के अलग-अलग लक्षणों तथा प्रभावों के लिए दवाइयां उपलब्ध है, जो बगैर पार्श्व प्रभावों के ऑटिज्म के लक्षणों पर तो कार्य करती ही है, साथ ही पीड़ित के सामान्य स्वास्थ्य को बेहतर करने का भी कार्य करती है। डॉ. समीर बताते हैं की ऑटिज्म के होम्योपैथी प्रबंधन के लिए सामान्य जांच पद्धती के अलावा होम्योपैथी में बताई गई विशेष व्यक्तिगत जांच पद्धतियों का भी सहारा लिया जाता है।
ऑटिज्म के लक्षण तथा उनके आधार पर दवाइयां
डॉ. समीर ने ETV भारत सुखीभवा को ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर के लक्षणों तथा उनके आधार पर दी जाने वाली होम्योपैथिक दवाइयों के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
⦁ संवेदी या इंद्रियों से संबंधित लक्षण
हम आमतौर पर बाहरी दुनिया से संपर्क अपनी इंद्रियों के माध्यम से ही करते हैं। जैसे सुन कर, देख कर, महसूस कर लोगों और वस्तुओं सहित अन्य चीजों के बारे में जानकारी लेना। ऑटिज्म होने की अवस्था में सर्वप्रथम लक्षण संवेदी अंगों की प्रतिक्रियाओं से ही पता चलते हैं, जैसे किसी ज्यादा शोर होने पर, किसी के छूने पर, भड़कीला रंग देखने पर या फिर किसी विशेष स्वाद के चलते असामान्य व्यवहार जैसे आक्रामकता या चिड़चिड़ापन दर्शाना। यह लक्षण कई प्रकार के हो सकते हैं।
डॉ. समीर बताते हैं की 'मेटेरिया मेडिका पुस्तक तथा होम्योपैथी रेपर्टरी' में इन लक्षणों के बारे में विस्तार से बताया है। साथ ही इस अवस्था में फायदा पहुंचाने वाली दवाइयों के बारे में भी जानकारी दी गई है। जैसे इन विशेष परिस्थितियों में बोरॉक्स, असारम, थेरिडियन, नक्स वोमिका, ओपीयम तथा चाइना जैसी दवाइयां संवेदी अंगों से जुड़े लक्षणों की अवस्था में दी जा सकती है।
⦁ काइनेटिक अवस्था (अतिसक्रिय अवस्था )
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर में ज्यादातर पीड़ितों में अतिसक्रियता आम मानी जाती है, लेकिन कुछ बच्चों में अतिसक्रियता या हाइपर व्यवहार, गुस्सा आने व परेशान होने पर हिंसक प्रतिक्रियाओं के जरिए नजर आता है, जैसे चीजों को तोड़ना या फेंकना आदि। तो कुछ बच्चों में अन्य गतिविधियों में अन्य प्रकार की हाइपर अवस्था नजर आती है। ऐसे लक्षण नजर आने पर टारेंटयुला, स्ट्रैमोनियम, ट्यूबरक्युलिनम, मेडोराइनम, नक्स वोमिका दवाइयां दी जा सकती है।
इसके अतिरिक्त व्यवहार में यदि स्वयं को नुकसान पहुंचने वाली प्रवृत्ती नजर आए तो लिसिनम, स्ट्रामोनियम, टारेंटयुला, टब ( पीड़ित को स्वयं को मारने की अवस्था में ) तथा बेल (दीवार पर सिर मारने की अवस्था में ) दवाइयां तथा प्रतिरोधी यंत्र दिए जा सकते है।
⦁ रिग्रेसिव अवस्था (किसी भी आदत की पुनरावृत्ती करना)
आमतौर पर इस विशेष अवस्था से पीड़ित बच्चों में किसी भी कार्य को लगातार दोहराने की प्रवृत्ती देखी जाती है। यानी वे अपने व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं। नियंत्रण की कमी सिर्फ व्यवहार ही नहीं बल्कि मल मूत्र त्यागने जैसे नित्यकर्मों में भी नजर आती है। कई बार पीड़ितों विशेषकर वयस्कों में कामुकता संबंधी असामान्य व्यवहार भी नजर आते हैं, जैसे अपने जननांगों को बार-बार छूना, हस्तमैथुन, मल या मिट्टी खाना आदि। ऐसी अवस्था में हायोसाइमस, बुफो तथा बैराइटा कार्बोनिका दवाइयां दी जा सकती है।
पढ़े :कैसे जांचे बच्चे में ऑटिज्म के शुरुआती लक्षण
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर में कैसे मददगार है होमयोपैथी
- होम्योपैथिक दवाई या किसी एक विशेष अंग पर असर ना करते हुए पीड़ित के साइको-न्यूरो-एंडोक्रिनोलोजिस्टकल तथा साइको इम्यूनोलॉजिकल एक्सेस पर गहराई से असर करता है। जिसके चलते पीड़ित में ऑटिज्म के लक्षणों में कमी आती है तथा उसकी अवस्थाओं पर खासा प्रभाव पड़ता है।
- ऑटिज्म में बड़ी संख्या में बच्चों में ऐसे लक्षण नजर आती हैं, जो संवेदी अंगों से जुड़े होते हैं और संवेदनाओं में अतिरेकता की अवस्था में नजर आते हैं, जैसे बहुत से बच्चे छूने पर, ज्यादा शोर होने पर, गले लगाने पर या चीजों को छूने पर असामान्य या आक्रामक प्रतिक्रिया देते हैं। होम्योपैथी में बताई गई दवाइयां इन संवेदनाओं को नियंत्रित करने तथा उनके व्यवहार को सामान्य बनाए रखने में काफी मदद करती हैं।
- होम्योपैथिक दवाइयां बच्चों में मोटर स्किल्स को बेहतर करने, व्यवहार में असमानता या पुनरावृति की घटनाओं को कम करने तथा बातों और परिस्थितियों को समझने में होने वाली कठिनाई को कम करने में मदद करती है। होम्योपैथी में दी जाने वाली छोटी-छोटी गोलियां बच्चों में अति सक्रियता, आक्रामक व्यवहार, स्वयं को नुकसान पहुंचाने वाली प्रवृत्तियों तथा चीजों को तोड़ने फोड़ने वाले व्यवहार पर जादुई तरीके से कार्य करती हैं।
- होम्योपैथिक दवाइयों का असर आम तौर पर पीड़ित के सामान्य व्यवहार से नजर आना शुरू होता है। जैसे बच्चे का व्यवहार शांत हो जाता है, उसकी नींद बेहतर होती है, भूख सामान्य होती है तथा स्वास्थ्य भी पहले के मुकाबले बेहतर स्थिति में आ जाता है।
- इन दवाइयों का अगला असर उसके व्यवहार पर नजर आता है, जैसे उनकी अति सक्रियता, परेशानी, चिड़चिड़ापन तथा आक्रामक व्यवहार में कमी आती है। इसके अतिरिक्त ऑटिस्टिक बच्चों में दूसरों से नजर मिला कर बात करने, व्यवहार या बातों के जरिए प्रतिक्रिया देने तथा दूसरों को जवाब देने की आदत में सुधार होता है। धीरे-धीरे उनके दूसरों से संपर्क करने की क्षमता भी विकसित होने लगती है, जैसे बोलने विशेषकर किसी दूसरे की बातों को दोहराना। हालांकि बच्चों के जुनूनी व्यवहार या उनके द्वारा किसी कार्य को बार-बार करने की आदत में कमी आने में समय लगता है। लेकिन सामान्य स्तर पर उसके व्यवहार में तथा उसके स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर नजर आने लगता है। जिसका कारण यह भी है कि होम्योपैथिक दवाई या विशेष तौर पर रोग प्रतिरोधक क्षमता को नियंत्रित करती हैं।
- शुरुआती दौर में ही लक्षणों पर ध्यान देकर यदि उपचार शुरू कर दिया जाए तो काफी हद तक ऑटिज्म को नियंत्रण में किया जा सकता है। लेकिन कई बार ऑटिज्म की गंभीरता यानी उसका सामान्य, मध्यम या जटिल होने का, उसके लक्षणों तथा प्रभावों के बेहतर होने की संभावनाओं पर असर पड़ता है। इसके अतिरिक्त यदि ऑटिज्म के साथ मिर्गी या फिर अनुवांशिक समस्याएं हो तो भी इस पर नियंत्रण में रुकावट आ सकती है।
इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए drsamirchaukkar@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।