सितंबर महीने में बच्चों के टीकाकरण की शुरुआत की घोषणा ने भारतीय अभिभावकों को काफी राहत और उम्मीद दी थी। हालांकि यह भी सत्य है की कोरोना का वैक्सीन लगवाने को लेकर लोगों में अभी भी काफी भ्रम और संशय की स्तिथि है, जिसका असर देश में टीकाकरण अभियानों की गति पर भी पड़ा है। लेकिन पेरेंटिंग ब्रांड रैबिटैट द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि बच्चों में कोरोना के टीकाकरण को लेकर अभिभावक काफी सकारात्मक सोच रखते हैं। इस सर्वेक्षण में 10 में से 9 माता-पिता ने अपने बच्चों को वैक्सीन उपलब्ध होते ही टीकाकरण करवाने को लेकर उत्सुकता जताई है।
सिर्फ 1% अभिभावकों ने जताई अनिच्छा
गौरतलब है की अपने बच्चों में टीकाकरण करवाने के बारे में माता-पिता की राय जानने तथा यह आंकलन करने कि क्या माता-पिता अपने बच्चों को टीकाकरण के बिना स्कूल भेजने पर विचार करेंगे, के बारे में अभिभावकों की स्पष्ट राय जानने के लिए यह सर्वेक्षण किया गया था।
सर्वेक्षण के नतीजों में साफ हो गया है की 10 में से केवल 1 प्रतिशत अभिभावक ऐसे है जो अपने बच्चों को टीकाकरण नहीं करना चाहते थे। बाकी के 9 प्रतिशत माता पिता वैक्सीन का बेसब्री से इंतजार कर रहें हैं।
लेकिन यहाँ चिंता की बात यह है की भले ही टीकाकरण कराने को लेकर अनिच्छूक माता-पिता का प्रतिशत काफी कम है लेकिन यदि 10 में से सिर्फ 1 प्रतिशत बच्चों का भी टीकाकरण नहीं हो पाता है तो संक्रमण फैलने का खतरा काफी ज्यादा होगा क्योंकि कोविड-19 के हल्के संक्रमण वाले बच्चे भी वाहक के रूप में कार्य कर सकते हैं और वायरस को और फैला सकते हैं।
300 अभिभावकों पर किया गया था सर्वेक्षण
इस सर्वेक्षण में 300 अभिभावकों को शामिल किया गया था। जिनमें से सिर्फ 1.2 प्रतिशत माता-पिता ने बच्चों के लिए टीकाकरण को महत्वपूर्ण नहीं माना। वहीं 5.6 प्रतिशत अभिभावक बच्चों में वैक्सीन की जरूरत को लेकर अनिश्चित थे। लेकिन 93.2 प्रतिशत अभिभावकों ने वैक्सीन को बहुत महत्वपूर्ण माना।
इस सर्वेक्षण में शामिल सभी अभिभावकों में से 64.3 प्रतिशत माता-पिता स्वयं टीकाकरण करवा चुके थे। बाकी के अभिभावक कोविड -19 से उबरने और टीकाकरण लेने से पहले अनुशंसित 60-90 दिन की अवधि की प्रतीक्षा करने, गर्भावस्था और स्तनपान के चलते या उनके क्षेत्र में टीकों की उपलब्धता में कमी और स्लॉट की अनुपलब्धता के चलते अभी तक वैक्सीन नहीं लगवा पाए थे।
वैक्सीन के रूप में कोविशील्ड पहली पसंद
सर्वेक्षण में अधिकांश अभिभावकों ने, यह पूछने पर कि वे किस वैक्सीन (ब्रांड/कंपनी) को प्राथमिकता देते हैं, 57.4 फीसदी लोगों ने कोविशील्ड को, 22.2 फीसदी ने कोवैक्सिन को, 14.8 फीसदी ने स्पुतनिक को और 5.6 फीसदी ने तीनों में से किसी को भी प्राथमिकता नहीं देने की बात कही।
यह पूछे जाने पर कि क्या वे वैक्सीन के बाजार में आते ही अपने बच्चों को टीका लगवाने के लिये इच्छुक हैं? 89.5 प्रतिशत माता-पिता ने कहा की हाँ वे शीघ्र-अतिशीघ्र अपने बच्चों को टीका लगवाना चाहते हैं। वहीं 8.9 प्रतिशत माता-पिता ने इस विषय पर अनिश्चितता दिखाई और 1.6 प्रतिशत ने कहा की वे अपने बच्चे को वैक्सीन नहीं लगवाना चाहते हैं।
बिना टीकाकरण स्कूल नहीं
बच्चों को स्कूल भेजने को लेकर भी आजकल लोगों के मन में बहुत सी शंकाएं हैं जैसे क्या टीकाकरण बच्चों को सुरक्षित रखने में एक प्रमुख भूमिका निभाएगा? इसी शंका को लेकर सर्वेक्षण में अभिभावकों से पूछा गया कि क्या वे अपने बच्चों को बिना टीकाकरण के स्कूल भेजेंगे। जिसके जवाब में 89.7 प्रतिशत माता-पिता ने कहा की वे अपने बच्चों को टीकाकरण के बिना स्कूल नहीं भेजना चाहते हैं, जबकि 10.3 प्रतिशत ने कहा कि वे टीकाकरण के बिना भी उन्हें स्कूल भेजने में सहज हैं।
गौरतलब है की कुछ माह पूर्व एक सूचना में एम्स के प्रमुख रणदीप गुलेरिया ने संभावना जताई थी सितंबर माह तक बच्चों का टीकाकरण शुरू हो जाएगा। सूचना में उन्होंने बताया था कि भारत में भारत बायोटेक और ज़ाइडस दोनों के टीको को ही महत्वपूर्ण माना जा रहा है, उन्होंने फाइज़र वैक्सीन की उपलब्धता को भी बच्चों के टीकाकरण की दिशा में काफी मददगार बताया था। ज्ञात हो की इस संबंध में ज़ाइडस का परीक्षण पहले ही हो चुका है। वहीं वैक्सीन प्रशासन को लेकर राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह के प्रमुख डॉ. एन के अरोड़ा ने भी एक निजी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में संभावना जताई थी की 12 से 18 साल के बच्चों के लिए ज़ाइडस वैक्सीन के साथ सितंबर तक बच्चों के टीकाकरण की शुरुआत हो सकती है।
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