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अवस्था ही नहीं रोग भी बन गया है ओबेसिटी

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Published : Mar 6, 2021, 1:58 PM IST

Updated : Mar 6, 2021, 4:07 PM IST

मोटापा एक गंभीर समस्या है। ज्यादातर चिकित्सक मानते हैं कि लगभग सभी गंभीर बीमारियों के कारणों में से एक मोटापा भी होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी मोटापे को 'अत्यधिक चर्बी जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है' के रूप में परिभाषित किया है।

Obesity is a serious problem
मोटापा एक गंभीर समस्या

मोटापा यानि ओबेसिटी वर्तमान समय में अवस्था तथा असंक्रामक रोग दोनों का ही उदारहण बन गया है। ओबेसिटी को लेकर सबसे चिंतनीय बात यह है की फिलहाल यह एक ऐसे कारक के रूप में प्रसिद्धि पा रही है, जो लगभग सभी गंभीर रोगों की गंभीरता को ज्यादा बढ़ा देता है। 4 मार्च को मनाए गए 'विश्व ओबेसिटी दिवस' के अवसर पर जारी, 'द 2021 एटलस रिपोर्ट' में साफ तौर से बताया गया है कि वैश्विक स्तर पर कोरोना महामारी के चलते हुई जनहानी तथा गंभीर हुए मामलों में संक्रमण की गंभीरता को बढ़ाने वाले कारणों में ओबेसिटी मुख्य कारणों में से एक था। आंकड़ों की माने तो वर्ष 2020 के अंत तक कोविड-19 के दौरान जिन देशों में ज्यादातर लोग मोटापे या ओबेसिटी के शिकार थे, उन देशों में कोविड-19 के कारण होने वाली मृत्यु का आंकड़ा भी ज्यादा था।

क्या कहते हैं आंकड़े

वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन द्वारा जारी 'द 2021 एटलस रिपोर्ट' के अनुसार फरवरी 2021 के अंत तक कोविड-19 के कारण दुनियाभर में होने वाली जनहानी का आंकड़ा लगभग 2. 5 मिलियन रहा। जिनमें से लगभग 2.2 मिलियन मामले ऐसे देशों से सामने आए जहां पर आधी से ज्यादा जनसंख्या का वजन जरूरत से ज्यादा था। वहीं यूनाइटेड किंगडम के आंकड़ों के अनुसार कोविड-19 के कुल मामलों में से लगभग 36 प्रतिशत मामले, जिनमें मरीज अस्पताल में भर्ती हुए, उनमें से ज्यादातर ऐसे लोग थे, जिनकी शारीरिक गतिविधियां कम थी या जो मोटापे से पीड़ित थे। आंकड़ों की माने तो यूनाइटेड स्टेट्स में 1 मार्च से 14 मई 2020 के बीच आने वाले कोरोना के पॉजिटिव मामलों की गंभीरता को बढ़ाने वाले कारणों में से 10.5 प्रतिशत का कारण मोटापा रहा।

शोध में शामिल इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड की रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 महामारी के चलते वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं तथा अन्य मदों में लगभग 10 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ, वहीं 2025 तक यह आंकड़ा बढ़कर लगभग 22 ट्रिलियन डॉलर होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

शोध में एक अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि मोटापे जैसी खतरा बढ़ाने वाली अवस्थाओं के चलते आने वाले समय के लिए कोविड-19 के चलते होने वाले खर्चे में 6 से 7 ट्रिलियन डॉलर की बढ़ोतरी हो सकती है।

भारत में आदर्श नहीं है लोगों का बीएमआई

अलग-अलग देशों की देश काल परिस्थितियों, लोगों की अनुमानित आयु, चिकित्सा विकास तथा अन्य कई कारको को आधार बना कर किए गए इस शोध में भारतीय आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट ने लोगों के माथे पर चिंता की लकीरे खींच दी है।

रिपोर्ट की माने तो हमारे देश में बड़ी संख्या में व्यस्को का बीएमआई यानी बॉडी मास इंडेक्स आदर्श नहीं है। शोध का विषय रहे लोगों में से 19.7 प्रतिशत लोगों का वजन उनके बॉडी मास इंडेक्स के लिए जरूरी वजन से काफी ज्यादा था, वहीं लगभग 3.9 प्रतिशत लोग ओबेसिटी का शिकार थे।

भारत में वर्ष 2010 से लेकर 2025 तक के तथ्यों और अनुमानित मोटापे के शिकार लोगों के आंकड़ों की बात करें तो, जहां वर्ष 2010 में ओबेसिटी की शिकायत पुरुषों की जनसंख्या लगभग 2 प्रतिशत थी। वहीं 2025 में उनकी अनुमानित जनसंख्या 5.3 प्रतिशत मानी गई है। यदि संख्या में बात करें तो, अनुमान है कि 2025 तक लगभग 26321.8 पुरुष ओबेसिटी के शिकार होंगे।

वहीं इसी श्रेणी में महिलाओं से जुड़े आंकड़ों के बारे में बात करें तो, वर्ष 2010 में यह आंकड़ा 4 प्रतिशत था, जो 2025 तक 8.4 बढ़ने की आशंका है। यदि संख्या में माने तो 2025 तक यह आंकड़ा 39604.7 होगा।

पिछले कुछ समय में बच्चों में भी लगातार मोटापे की समस्याएं बढ़ने के मामले सामने आए हैं। शोध में बच्चों के जुड़े आंकड़े भी पेश किए गए हैं, जिसमें 2010 के आंकड़ों के अनुसार मोटापे के शिकार 5 से 19 साल के बच्चों तथा युवाओं का 1 प्रतिशत था, जो कि 2025 तक 5.1 प्रतिशत बढ़ने की आशंका है। यदि संख्या की बात करें तो, 2025 में यह संख्या बढ़कर लगभग 18294.1 होगी।

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भोजन की प्रकृति ने भी किया मृत्यु दर को प्रभावित

इस शोध में ओबेसिटी को प्रभावित करने वाले भोज्य पदार्थों को लेकर भी गहन शोध किया गया। शोध में हेल्दी डाइट माने जाने वाले दो घटक दालें तथा जड़ वाली सब्जियों तथा ऊर्जा बढ़ाने वाले समृद्ध आहार जैसे मांसाहार, रिफाइंड तेल तथा शर्करा या शुगर युक्त आहार को शामिल किया गया है। जिसके नतीजों में साफ तरह से सामने आया की कोविड-19 संक्रमण के चलते मृत्यु का शिकार हुए लोगों में ऐसे लोग, जो दालों तथा जड़ वाली सब्जियों का नियमित सेवन करते थे, की संख्या उन लोगों के मुकाबले काफी कम थी जो, नियमित रूप से गरिष्ठ मांसाहर तथा शर्करा युक्त भोजन का सेवन करते थे और ओबेसिटी का शिकार थे।

Last Updated : Mar 6, 2021, 4:07 PM IST

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