एक बच्चे को जन्म देना मां के लिए दूसरा जन्म माना जाता है. गर्भावस्था की अवधि, प्रसव तथा उसके बाद का वह समय जब महिला का शरीर रिकवरी की प्रक्रिया से गुजर रहा होता है. यह बहुत ही जटिल समय माना जाता है. इस अवधि में महिला में बहुत से शारीरिक व मानसिक बदलाव आते हैं. यही नहीं गर्भावस्था की अवधि तथा प्रसव के दौरान कई बार महिला को कई समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है. जिनकी अनदेखी या बच्चे के जन्म के बाद यदि माता के स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखा जाय, तो वह स्तिथि उनके लिए कई बार जानलेवा भी हो जाती हैं. हमारे देश में हर वर्ष हजारों महिलाएं गर्भावस्था के दौरान , प्रसव से पहले या बच्चे के जन्म के बाद सही देखभाल ना मिलने के चलते या प्रसव के दौरान होने वाली जटिलताओं के कारण मृत्यु का शिकार बन जाती हैं. आंकड़ों की मानें तो हर साल बच्चे को जन्म देते समय लगभग 45,000 महिलाएं अपनी जान गंवा देती हैं. यह प्रतिशत दुनिया भर में होने वाली मौतों का तकरीबन 12% है.
“राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस 2022” :भारत सरकार द्वारा महिलाओं को गर्भावस्था, प्रसव तथा बच्चे के जन्म के बाद भी अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से “व्हाइट रिबन अलायंस इंडिया” की पहल पर 11 अप्रैल को “राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस” मनाया जाता है. क्योंकि सुरक्षित मातृत्व हर महिला का अधिकार है . इस वर्ष इस विशेष दिवस के लिए “कोरोनावायरस के बीच घर पर रहना, मां और शिशु को वायरस के संक्रमण से बचाना” थीम निर्धारित की गई है.
गौरतलब है कि कोविड-19 महामारी के दौरान संक्रमण के लिहाज से गर्भवती महिलाओं को सबसे ज्यादा संवेदनशील लोगों की श्रेणी में रखा गया था. माता में संक्रमण उनकी जान पर भारी ना पड़ जाए और कहीं उनसे उनके बच्चे तक ना पहुंच जाये, इसके लिए कोरोना काल में गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष सावधानियां बरतने की बात कही गई थी. इस वर्ष की थीम भी उसी प्रयास का एक हिस्सा है.
क्या कहते हैं चिकित्सक :अहमदाबाद की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ लावण्या गोखले बताती हैं कि सुरक्षित मातृत्व से तात्पर्य सिर्फ गर्भावस्था के दौरान खानपान या अन्य प्रकार की देखभाल से नहीं होता है. बल्कि गर्भावस्था के सबसे शुरुआती तौर से लेकर प्रसव के दौरान तथा प्रसव के उपरांत भी महिला के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का दुरुस्त रखना होता है. वह बताती है कि गर्भावस्था की पुष्टि होने के तत्काल बाद से ही गर्भवती महिलाओं को कुछ विशेष बातों की सावधानियां रखने के लिए कहा जाता है जिनमें आहार, जीवन शैली तथा शारीरिक सक्रियता जैसी आदतें शामिल होती हैं. इनमें में कुछ इस प्रकार हैं.
- गर्भावस्था के शुरुआती दौर से ही महिलाओं को प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, फास्फोरस और फोलिक एसिड से भरपूर सब्जियों विशेषकर हरी सब्जियों, फलों तथा अनाज आदि का सेवन करने की सलाह दी जाती है. वही इस अवधि में महिलाओं को कुछ विशेष प्रकार के आहार से परहेज करने की सलाह भी दी जाती है. जैसे डिब्बाबंद आहार, तला- भुना- तेज मिर्च मसाले वाला आहार, किसी भी प्रकार का कच्चा व आधा पका हुआ मांस, आदि. इसके अलावा भी कुछ विशेष प्रकार की सब्जियों या फलों के सेवन के लिए गर्भावस्था में मना किया जाता है. गर्भवती माता को कभी भूखा नहीं रहना चाहिए बल्कि लगभग हर 4 घंटे में कुछ ना कुछ पौष्टिक आहार खाते रहना चाहिए.
- बहुत जरूरी है कि महिला इस अवधि में धूम्रपान या मदिरापान से दूर रहे . क्योंकि यह ना सिर्फ बच्चे के स्वास्थ्य को बल्कि माता के स्वास्थ्य को भी काफी ज्यादा प्रभावित कर सकते हैं.
- गर्भवती स्त्री अपने आराम पर भी ध्यान दे , तथा प्रतिदिन जरूरी मात्रा में नींद लें. चिकित्सक की सलाह पर कुछ व्यायाम भी किए जा सकते हैं.
- डॉ लावण्या बताती है कि गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं है तथा इस अवधि में महिलाएं वह सभी काम कर सकती हैं जो सामान्य अवस्था में करती हैं लेकिन कुछ विशेष सावधानियों के साथ. पुराने समय में माना जाता था, जो महिलाएं गर्भावस्था के अंतिम क्षणों तक शारीरिक रूप से सक्रिय रहती हैं यानी घर के काम या बाहर के काम करती रहती हैं उन्हें प्रसव के दौरान कम समस्याओं का सामना करना पड़ता है. हालांकि यह सभी महिलाओं पर लागू नहीं होता है लेकिन यह भी सत्य है कि चिकित्सक की सलाह मानते हुए तथा तमाम सावधानियों को बरतते हुए यदि गर्भवती महिला सामान्य दिनचर्या जिये तो यह उसकी सेहत को फायदा ही पहुंचाता है.
- वह बताती हैं कि गर्भावस्था की पुष्टि होने के साथ ही नियमित तौर पर चिकित्सीय जांच तथा चिकित्सक द्वारा बताए गए सप्लीमेंट्स का सेवन काफी जरूरी हो जाता है. क्योंकि कई बार गर्भवती महिलाओं के लिए जिन पोषक तत्वों को जरूरी माना जाता है वह उन्हें सामान्य आहार से नही मिल पाता है जैसे जिंक, फोलिक एसिड, आयरन तथा मल्टीविटामिन आदि.
गौरतलब है कि फूड एवं न्यूट्रीशन बोर्ड द्वारा जारी एक सूचना में भी कहा गया है कि गर्भवती महिला को सामान्य महिला के मुकाबले लगभग 300 कैलोरी की ज्यादा आवश्यकता होती है. यह संख्या महिला के स्वास्थ्य तथा उसके शरीर की जरूरत के आधार पर कम या ज्यादा भी हो सकती है.
वह बताती है कि बहुत जरूरी है कि शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ इस समय महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को भी सेहतमंद रखने का प्रयास किया जाए. दरअसल इस अवधि में महिला के शरीर में बहुत से हार्मोनल तथा शारीरिक बदलाव होते हैं, जो कई बार उनकी मनोदशा को काफी ज्यादा प्रभावित कर देते हैं. जिससे उनमें तनाव, अवसाद तथा घबराहट जैसी समस्याएं देखने में आ सकती हैं. ऐसे में बहुत जरूरी है कि उनके आसपास के माहौल को खुशनुमा रखने का प्रयास किया जाए, साथ ही उन्हें अच्छी बातें सोचने तथा ऐसे कार्यों को करने के लिए प्रेरित किया जाए जिससे उन्हें खुशी मिलती हो.
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