कोरोना से बचाव के लिए लगाए जाने वाले एमआरएनए (mRNA) टीके की सफलता ने कई गंभीर बीमारियों से बचाव व उनके इलाज में इस तकनीक के फ़ायदों को लेकर चिकित्सकों, वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं में जिज्ञासा उत्पन्न की है. जिसका नतीजा है कि इस संबंध में कई शोध भी किए जा रहें है. हाल ही में अमेरिका के मायो क्लिनिक द्वारा किए गए एक शोध में भी सामने आया है कि एमआरएनए थेरेपी के इस्तेमाल से कैंसर इम्यूनोथेरेपी के प्रभाव तथा इलाज के नतीजे बेहतर हो सकते हैं.
कैसे कार्य करता है एमआरएनए
गौरतलब है कि कोरोना के इलाज तथा टीकों के निर्माण के चलते मैसेंजर-आरएनए की उपयोगिता को लेकर काफी चर्चाएं तथा शोध हुए हैं. दरअसल कोरोना से बचाव के लिए लगाया जाने वाला एमआरएनए टीका शरीर में एक मैसेंजर यानी संदेशवाहक का कार्य करता है जो शरीर की कोशिकाओं को इस बात के निर्देशित करता है कि वायरस के प्रति इम्यून रिस्पॉन्स के लिए किस प्रकार से प्रोटीन का निर्माण किया जाय. टीके के इसी स्वभाव के चलते यह देश विदेश में चिकित्सकों तथा शोधकर्ताओं की दिलचस्पी का कारण बन रहा है. इसी श्रंखला में मायो क्लिनिक के वैज्ञानिकों ने भी कैंसर के इलाज में इस तकनीक की उपयोगिता को लेकर अध्ययन किया है तथा यह जानने का प्रयास किया है कि एमआरएनए का इस्तेमाल किस स्तर तक इस रोग की रोकथाम तथा उसके इलाज में मददगार हो सकता है.
क्या कहते हैं शोध के नतीजे
अमेरिकन एसोसिएशन फॉर कैंसर रिसर्च जर्नल में प्रकाशित इस शोध में मायो क्लिनिक के वैज्ञानिकों ने “एमआरएनए थेरेपी” के कैंसर के उन रोगियों के इलाज में उपयोग को लेकर अध्धयन किया गया है जिन पर सामान्य इलाज का ज्यादा असर नहीं होता है. इस शोध के नतीजों में सामने आया है कि एमआरएनए थेरेपी की मदद से कैंसर इम्यूनोथेरेपी के असर तथा उसके प्रभाव में ज्यादा सुधार लाया जा सकता है.
शोध में बताया गया है कैंसरके इलाज में सबसे बड़ी समस्या तब उत्पन्न होती है जब रोगी का शरीर दवा, थेरेपी तथा अन्य इलाजों का बेहतर तथा सकारात्मक प्रतिक्रिया नही देता है. आमतौर पर यह समस्या उन रोगियों में ज्यादा देखने में आती है जिन्हे इलाज के दौरान इम्यून चेकप्वाइंट इन्हीबिटर दिया जाता है. जिसका कारण रोगी के शरीर में इम्यून रिस्पॉन्स को मजबूत होने से रोकना होता है, क्योंकि ऐसा होने पर शरीर में स्वास्थ्य सेल्स को भी खतरा पैदा हो सकता है.
शोध के निष्कर्षों के बारें में जानकारी देते हुए मायो क्लिनिक में कैंसर शोधकर्ता डॉ हैडोंग डोंग बताते हैं कि शोध में पाया गया है कि इम्यून सेल में एमआरएनए की उपस्थिति रोग के निवारण के लिए उपयोगी प्रोटीन के उत्पादन में सुधार ला सकती है. जिससे जिनोम में बगैर बदलाव किए ट्यूमर रोधी गतिविधियों को बढ़ाया जा सकता है.
वह बताते हैं कि इस प्रक्रिया के माध्यम से सिंगल सेल आरएनए सीक्वेंसिंग में एमआरएनए के चलते होने वाले फ़ायदों के बारें में ज़्यादा जानकारी लेकर, दवाओं तथा इलाज में उसके उपयोग को लेकर रणनीति भी बनाई जा सकती है.
गौरतलब है कि इस अध्धयन में डॉक्टर डोंग तथा अन्य शोधकर्ताओं ने प्रयोग के लिए लैब में एक इम्यून सिस्टम प्रोटीन को उत्पादित किया था. जिससे मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के जरिए ट्यूमर टिश्यू में प्रोटीन के स्तर की जानकारी मिल सके. दरअसल प्रक्रिया का मूल उद्देश्य यह पता लगाना था कि क्या कैंसर के रोगियों के ट्यूमर रिएक्टिव इम्यून सेल में प्रोटीन उचित मात्रा में उपलब्ध था? और क्या उसकी मात्रा तथा उसके गुण इलाज के लिए उपयोगी बायोमार्कर होने में सक्षम थे?
कैंसर के इलाज को लेकर यह जांच काफी अहम मानी जा रही है, क्योंकि आमतौर पर एडवांस्ड स्टेज कैंसर से पीड़ित रोगियों को मौजूदा चेकप्वाइंट ब्लॉकेड थेरेपी से फायदा नहीं मिल पाता है.
शोध के नतीजों में डॉक्टर डोंग बताते हैं कि यह अध्धयन कैंसर के इलाज में एक ऐसा तरीका उपलब्ध करा सकता है, जिससे रोग के इलाज में उत्पन्न हो रही समस्याओं के कारणों को जाना जा सकता है. साथ ही उन कारणों को ठीक करने के लिए एमआरएनए आधारित थेरेपी का उचित उपयोग किया जा सके .
वह बताते हैं कि इसके साथ ही इस शोध में एमआरएनए आधारित एक ऐसे तरीके का भी विकास किया गया है, जो इम्यून चेकप्वाइंट इन्हीबिटर के प्रति टी-सेल के रिस्पॉन्स में सुधार ला सकता है. यह तरीका उन रोगियों के लिए ज्यादा ज्यादा फायदेमंद हो सकता है जिन पर उनके मौजूद इलाज का ज्यादा असर नहीं हो रहा हो.
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