कई बार मौसम में बदलाव विशेष तौर पर लंबे समय तक धूप के संपर्क में ना आने पर कई लोगों में उदासी या मन में नकारात्मक भाव उत्पन्न होने जैसी समस्याएं नजर आने लगती हैं. मॉनसून के मौसम में भी यह समस्या कई लोगों को काफी प्रभावित करती है. दरअसल यह प्रकार का अवसाद (Type of depression) होता है जो सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (Seasonal Affective Disorder) की श्रेणी में आता है. इसे आम भाषा में मानसून ब्लूज (Monsoon blues) भी कहा जाता है.
सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर है मानसून ब्लूज:तीखी तेज धूप वाले गर्मी के मौसम के बाद बहुत से लोग बड़ी बेसब्री से मानसून यानी बारिश के मौसम का इंतजार करते हैं. रोमांस हो, रूमानियत हो या खाना पीना, सभी को आमतौर पर मानसून से जोड़कर देखा जाता है. यहां तक कि हमारी हिंदी फिल्मों में भी बारिश को रोमांस से जोड़ कर देखा जाता है लेकिन कई बार जब बारिश लगातार हो रही हो, मौसम खुल नही रहा हो तो बहुत से लोगों में उदासी, तनाव, दुख तथा ऐसी और भी कई तरह की मानसिक व व्यवहरात्मक समस्याएं बढ़ने लगती हैं. यह अवस्था मानसून ब्लूज (Monsoon blues) कहलाती है तथा इसका कारण आमतौर पर (Side effects of monsoon) मौसमी भावनात्मक विकार यानी सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (Seasonal Affective Disorder) माना जाता है.
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सर्दियों में भी हो सकता है:सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (SAD) यानी मौसम से प्रभावित होने वाला भावनात्मक विकार. जानकार मानते हैं कि (weather change disorder) मौसम हमारे व्यवहार को ही नही हमारी सेहत को भी काफी ज्यादा प्रभावित करता है. खासतौर पर सूरज की रोशनी या धूप हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी होती है. लेकिन जब बरसात या सर्दी के कारण यदि लंबे समय तक व्यक्ति धूप के सीधे संपर्क में ना आ पाए तो उसके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर काफी असर पड़ सकता है. सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर भी उन्ही प्रभावों में से एक है.
मनोचिकित्सों के अनुसार सर्दियों या बरसात के मौसम में जब लंबे समय तक धूप के दर्शन नही होते हैं तो कई लोग मानसून में मानसून ब्लूज तथा सर्दियों में विंटर ब्लूज का शिकार हो सकते हैं. इन दोनों ही अवस्थाओं में पीड़ित में अवसाद बढ़ने लगता है, उसके मूड में बहुत जल्दी-जल्दी परिवर्तन होने लगते हैं और कई बार वे बिना किसी कारण के बहुत ज्यादा उदासी महसूस करने लगते हैं. सिर्फ यही नहीं इस अवस्था के पीड़ितों में और भी कई तरह की मानसिक समस्याएं नजर आने लगती हैं जिसका असर उनके व्यवहार उनकी दैनिक गतिविधियों यहां तक कि उनके पारिवारिक व सामाजिक जीवन पर भी पड़ने लगता है.