नई दिल्ली : भारतीय वैज्ञानिकों के एक दल ने पाया है कि देश में फैल रहा मंकीपॉक्स वायरस स्ट्रेन यूरोप के उस 'सुपरस्प्रेडर' स्ट्रेन (Monkeypox super spreader strain) से अलग है, जिससे इस बीमारी का वैश्विक प्रकोप हुआ है. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (ICMR-NIV), पुणे की टीम ने केरल से मंकीपॉक्स के दो मामलों की जेनेटिक सीक्वेंसिंग (Genetic Sequencing आनुवांशिक अनुक्रमण) की.
डेटा से पता चला कि देश में मौजूद (Monkeypox virus strain A.2) वायरस स्ट्रेन ए.2 है, जो हाल ही में मध्य पूर्व से भारत में पहुंचा है. यह (Monkeypox virus strain A.2) पहले थाईलैंड और अमेरिका में 2021 के प्रकोप के दौरान मौजूद था. हालांकि, यूरोप में सुपरस्प्रेडर घटनाओं का कारण बनने वाला स्ट्रेन बी.1 (Monkeypox virus strain B.1) रहा है. इसलिए वैज्ञानिकों ने कहा है कि विदेशों में प्रकोप मचाने वाले स्ट्रेन से भारत में फैल रहा स्ट्रेन अलग है.
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CSIR-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) के वैज्ञानिक विनोद स्कारिया (Vinod Scaria Scientist) ने ट्वीट किया, "माना जाता है कि मंकीपॉक्स वायरस का वर्तमान निरंतर मानव से मानव संचरण (Human to human transmission of monkeypox virus) यूरोप में सुपरस्प्रेडर घटनाओं के माध्यम से हुआ है, जिसमें 16000 से अधिक मामले दर्ज किए जा चुके हैं और यह अब 70 से अधिक देशों में फैल चुका है. यह बड़े पैमाने पर वायरस के बी.1 (Monkeypox virus strain B.1) वंशावली के रूप में दर्शाया गया है और 2022 में जीनोम के लिए प्रमुख वंशावली को शामिल करता है."उन्होंने कहा कि ए.2 (Monkeypox virus strain A2) दुनिया भर में अधिकांश जीनोम के विपरीत है, जो बी.1 (Monkeypox virus strain B1) वंशावली से संबंधित हैं और भारत में देखा जाने वाला ए.2 क्लस्टर, 'सुपरस्प्रेडर घटना का सूचक नहीं है'
विनोद स्कारिया (Vinod Skaria Scientist) ने लिखा, "इसका मतलब है कि देश में मामले संभवत: यूरोपीय सुपरस्प्रेडर घटनाओं से जुड़े नहीं हैं." उन्होंने आगे कहा, "हम मानव-मानव संचरण (Human to human transmission)के एक अलग समूह को देख सकते हैं और संभवत: वर्षों से अपरिचित हो सकते हैं. अमेरिका से क्लस्टर में सबसे पहला नमूना वास्तव में 2021 से है, यह सुझाव देता है कि वायरस काफी समय से प्रचलन में है और यह यूरोपीय घटनाओं से पहले से ही है." उन्होंने देश में जीनोमिक निगरानी (Genomic surveillance) बढ़ाने का सुझाव दिया है, क्योंकि अधिक मामले सामने आ रहे हैं. विनोद स्कारिया (Vinod Skaria Scientist) ने कहा, "सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों और संचार को इन नई अंतर्²ष्टि को ध्यान में रखना होगा. व्यापक परीक्षण और जागरूकता कई और मामलों को उजागर कर सकती है."
लक्षण और इलाज :1958 में जब शोध करने वाले बंदरों में चेचक जैसी बीमारी के दो प्रकोप हुए थे, इसलिए इसे मंकीपॉक्स कहा जाता है. मंकीपॉक्स उसी वायरस फैमिली से संबंधित है, जिसका सदस्य चेचक यानी स्मॉलपॉक्स (Smallpox) है. स्मॉलपॉक्स के मुकाबले इसके लक्षण हल्के होते हैं. मंकीपॉक्स से पीड़ित लोगों में बुखार, शरीर में दर्द, ठंड लगना और थकान के लक्षण देखे जाते हैं. इसके अलावा गंभीर तौर से संक्रमित लोगों के चेहरे और हाथों पर दाने और घाव हो सकते हैं. यह शरीर के अन्य भागों में फैल सकते हैं. पांच दिनों से तीन सप्ताह तक इसका असर बना रहता है. ऐसे में हॉस्पिटल में एडमिट होने की आशंका कम होती है. मरीजों को ठीक होने में दो से चार सप्ताह का समय लग जाता है. भले ही इसके लक्षण गंभीर नहीं हों मगर मंकीपॉक्स 10 में से एक आदमी के लिए जानलेवा साबित हो सकता है. बच्चों को इससे बचाना ज्यादा जरूरी है, क्योंकि उनके लिए यह बीमारी खतरनाक साबित हो सकती है. इसके इलाज के लिए एंटीवायरल दवाएं भी विकसित की जा रही हैं. यूरोपियन (ECDC) सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल (European Center for Disease Prevention and Control) ने सभी संदिग्ध मामलों को अलग-थलग करने और हाई रिस्क वाले कॉन्टैक्ट्स को स्मॉलपॉक्स के टीके देने की सिफारिश की है.
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