आमतौर पर बुढ़ापे का रोग कहे जाने वाले डिमेंशिया को वैश्विक स्तर पर वृद्ध लोगों में विकलांगता के सबसे बड़े कारणों में से गिना जाता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है विशेष रूप से मध्यम और निम्न-आय वाले बुजुर्गों में याददाश्त में कमी, भावनात्मक नियंत्रण की समस्याएं और संज्ञानात्मक प्रदर्शन में सामान्य गिरावट, व्यवहार और रोजमर्रा की गतिविधियों को करने की क्षमता में कमी आने लगती है। आमतौर पर वृद्ध लोगों में अल्जाइमर रोग या स्ट्रोक जैसी बीमारियां ज्यादा देखने में आती हैं, लेकिन जानकारों का मानना है की इन्हे उम्र बढ़ने की प्रक्रिया का सामान्य हिस्सा नहीं माना जाता है। आँकड़े बताते हैं की हर साल, लगभग 10 मिलियन लोग डिमेंशिया का उपचार करते हैं लेकिन दुनिया भर में लगभग 50 मिलियन लोग इस समस्या के साथ जी रहे हैं।
यूके के यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन के महामारी वैज्ञानिक मिका किविमाकी के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन में सामने आया है की बौद्धिक रूप से उत्तेजक नौकरियां, यानी ऐसी नौकरी जिसमें मानसिक उत्तेजनाएं ज्यादा हो, करने वाले लोगों में उन लोगों की अपेक्षा मनोभ्रंश का जोखिम कम रहता है जो ऐसी नौकरी या व्यवसाय करते हैं जिनमें उन्हे मानसिक उत्तेजनाओं का कम सामना करना पड़ता है। इस अध्धयन में 107,896 प्रतिभागियों के डेटा की जांच के आधार यह आंकलन प्रस्तुत किया गया है।
हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है की जरूरी नहीं कि हमेशा मानसिक सक्रियता या उत्तेजना डिमेंशिया को रोकने में सक्षम हो, लेकिन यह इसकी शुरुआत में लगभग डेढ़ साल की देरी कर सकती है। जनसंख्या समूह अध्ययन के ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुए इस अध्धयन की रिपोर्ट में तीन विश्लेषण प्रस्तुत किए गए थे जो कार्यस्थल में संज्ञानात्मक उत्तेजना, प्लाज्मा प्रोटीन, और मनोभ्रंश के जोखिम पर आधारित थे।
इस अध्ययन में प्रतिभागियों से लिए गए नमूनों में प्लाज्मा प्रोटीन के निम्न स्तर पाए गए थे, जिन्होंने अधिक संज्ञानात्मक उत्तेजक गतिविधियों का प्रदर्शन किया। गौरतलब है की ये प्रोटीन स्वस्थ मस्तिष्क समारोह के विकास को रोक सकते हैं।