यष्टिमधु जिसे आम तौर पर मुलेठी के नाम से जानी जाती है. इसका उपयोग आयुर्वेद में कई तरह के रोगों से निपटने के लिए किया जाता है. मुलेठी में भरपूर मात्रा में ग्लाइसेमिक अम्ल और कैल्शियम पाई जाती है. इसका इस्तेमाल घाव के उपचार के साथ-साथ मुख रोग, कंठ रोग, नेत्र रोग, श्वासन विकार, हृदय रोग आदि के लिए किया जाता है.
मुलेठी पाचन तंत्र और श्वसन प्रणाली के लिए बेहद फायदेमंद होती है. इसमें एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी बायोटिक, वसा और प्रोटीन के गुण होते है. आयुर्वेद के अनुसार ये वात, कफ और पित्त दोषों से निपटने में सहायक होती है. मुलेठी जोड़ों के दर्द, सामान्य दुर्बलता, छाला, अति अम्लता आदि रोगों में प्रयोग की जाती है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञ डॉ. पीवी रंगानायकुलु ने बताया कि मुलेठी का वैज्ञानिक नाम ग्लिह्राइझा ग्लॅब्रा है, जो फैबेसी के कुल से आती है. खास तौर पर इसके जड़ों का उपयोग रोगों के इलाज के लिए किया जाता है.
डॉ. रंगानायकुलु ने मुलेठी से स्वास्थ को होने वाले फायदे और नुकसान के बारे में जानकारी दी है.
मुलेठी के फायदे
⦁ पाचन: मुलेठी पेट संबंधी समस्या जैसे अति अम्लता, पेट के अल्सर, पाचन आदि के इलाज में सहायक होती है. मुलेठी में मौजूद जीवाणुरोधी और सूजन कम करने के गुण पेट को संक्रमण से बचाती है और पेट में सूजन को कम करती है.
खुराक: 1 चम्मच मुलेठी के पाउडर को गर्म पानी में मिलाकर 10 मिनट के लिए रखें फिर छानकर पी लें. ऐसा हफ्ते में 2-3 बार करें.
⦁ हृदय रोग:मुलेठी के नियमित सेवन से हृदय से संबंधित बीमारियां होने का खतरा कम हो जाती है. यह हृदय रोग के अलावा अन्य कई रोगों के लिए भी फायदेमंद है.
खुराक: 2 ग्राम मुलेठी में 2 ग्राम कुटकी का चूर्ण और 4 ग्राम मिश्री को एक गिलास पानी में मिलाकर घोल बना लें. इसे दिन में 2 बार पी सकते है.
⦁ श्वसन रोग: श्वसन तंत्र में संक्रमण के कारण सर्दी, खांसी, दमा जैसी समस्या होती है. मुलेठी में सूजन को कम करने और एंटीऑक्सीडेंट गुण के कारण श्वसन नालियों में होने वाले सूजन को कम करती है. इसके साथ ही जीवाणुरोधी, रोगाणुरोधी और एंटी वायरल गुण होने से सांस संबंधी बीमारियों से छुटकारा मिलता है.