परस्पर यौन संबंधों के बिना यौन संतुष्टि को प्राप्त करने के लिए कई लोग हस्तमैथुन का सहारा लेते हैं. हालांकि यह एक सुरक्षित तरीका हैं, लेकिन इसकी लत व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकती है. हस्तमैथुन को लेकर समाज में अलग-अलग भ्रांतियां हैं. कुछ लोग इसे बीमारी मानते हैं, तो कुछ लोग बीमारी का कारण. हस्तमैथुन को लेकर समाज में व्याप्त भ्रांतियों और इसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को लेकर ETV भारत सुखीभवा की टीम ने मनोचिकित्सक डॉ. वीणा कृष्णन से बात की.
हस्तमैथुन
हस्तमैथुन एक प्राकृतिक प्रकिया हैं, जो महिला तथा पुरुष दोनों को बगैर परस्पर शारीरिक संपर्क के यौन संतुष्टि की अनुभूति देता हैं. हस्तमैथुन के दौरान तथा उपरांत स्त्री या पुरुष दोनों के शरीर में हैप्पी हार्मोन यानी उन हार्मोन का स्राव होता है, जो कि साधारण तौर पर शारीरिक संबंधों के दौरान किसी जोड़े में स्रावित होते है, तथा इस प्रक्रिया के उपरांत व्यक्ति वैसा ही संतोष और आनंद अनुभव करता है, जैसा कि सामान्य शारीरिक संबंधों के उपरांत किया जाता है.
डॉ. कृष्णन बताती हैं की कोई भी प्रक्रिया जब तक आदत नहीं बनती हैं, नुकसानदायक नहीं होती है. आमतौर पर हस्तमैथुन का व्यक्ति की शारीरिक स्वास्थ्य पर कोई भी दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन अगर यह आदत, लत में बदल जाए, तो प्रभावित व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य तथा सामाजिक जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करती है.
हस्तमैथुन, भ्रम तथा सत्य
हमारी पुरातन सामाजिक मान्यताओं में हस्तमैथुन को एक बुरा कार्य माना जाता है. इसे लेकर लोगों में एक सबसे बड़ा भ्रम यह है कि हस्तमैथुन करने वाले व्यक्ति के शरीर में बीमारियां हो जाती है, उसके शरीर में कमजोरी आ जाती हैं और वह स्वस्थ यौन जीवन का आनंद नहीं ले पाता है. जबकि सत्य यह है कि सामान्य तौर पर हस्तमैथुन करने वाला व्यक्ति एक स्वस्थ एवं संतोष पूर्ण जीवन व्यतीत करता है. बल्कि विशेषज्ञ तो यहां तक मानते हैं कि असुरक्षित यौन संबंधों के स्थान पर अपनी शारीरिक संतुष्टि के लिए यदि महिला या पुरुष हस्तमैथुन का सहारा लेते हैं, तो असुरक्षित यौन संबंधों के कारण होने वाली बीमारियों, अनचाहे गर्भ और यौन अपराधों से काफी हद तक बचा जा सकता है.
हस्तमैथुन की लत तथा उसके दुष्प्रभाव
ज्यादातर महिलाओं और पुरुषों का परिचय हस्तमैथुन से उस समय होता है, जब वह किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं. डॉक्टर कृष्णन बताती है कि महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में हस्तमैथुन की आदत ज्यादा पाई जाती है. कई बार बालक या व्यस्क यदि पोर्नोग्राफी या किसी अन्य माध्यम से प्रभावित हो, तो इस प्रक्रिया को लगातार दोहराने लगते हैं, तब यह लत में तब्दील हो जाती है. ऐसी अवस्था में व्यक्ति के दिमाग में लगातार यौन क्रियाओं से जुड़े खयाल घूमते रहते हैं, जिससे प्रभावित होकर वह ज्यादा आवृत्ति में हस्तमैथुन करने लगता है.
इससे व्यक्ति के सामाजिक जीवन पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, विशेषकर कम उम्र के किशोरों की बात करें, तो उनका ध्यान पढ़ाई से हट जाता है. इसके अलावा वह खेलने कूदने से बचने लगते हैं और ज्यादातर समय अकेले तथा एकांत में व्यतीत करने लगते हैं.
वयस्कों की बात करें, तो इसका उनके सामाजिक जीवन के साथ उनके पारिवारिक जीवन पर भी काफी असर पड़ता है. वे अपने माता-पिता, अपनी पत्नी तथा अपने दोस्तों से एक दूरी बना देते हैं. अपनी काल्पनिक और विचारों भरी दुनिया में रहने के लिए लोग शराब तथा ड्रग्स जैसे नशे का भी सहारा लेने लगते हैं.
इस लत के ज्यादा बढ़ने पर लोग ज्यादा आक्रामक तरीके से हस्तमैथुन करने तथा सेक्सटॉयज या अन्य साधनों का उपयोग करने लगते हैं. ऐसी परिस्थितियों में उनकी निजी अंग चोटिल हो सकती है. साथ ही वह विभिन्न प्रकार के संक्रमणों का शिकार भी बन सकते हैं.
ऐसी परिस्थिति उत्पन्न ना हो इसके लिए बहुत जरूरी है कि परिवार में सभी जन एक दूसरे की व्यवहार को लेकर सचेत रहें. यदि परिवार का कोई सदस्य ज्यादा से ज्यादा अकेले कमरा बंद करके रहता हो, दूसरे लोगों से ज्यादा मिलना जुलना पसंद ना करता हो और इनके साथ ही अपनी पढ़ाई या अन्य कार्यों से जी चुराता हो, तो उससे बात कर उसके व्यवहार के पीछे के कारणों को जानने का प्रयास करना चाहिए और आवश्यकता लगने पर मनोचिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए.
हस्तमैथुन और उसके बाद अपराध बोध महसूस करना
सामाजिक तौर पर अस्वीकृत गतिविधि माने जाने वाले हस्तमैथुन की प्रक्रिया को सार्वजनिक तौर पर लोग गंदी तथा शर्मनाक जैसी उपमा देते हैं, जबकि अधिकांश व्यक्ति अपने जीवन में कभी ना कभी अपनी शारीरिक संतुष्टि के लिए इस प्रक्रिया का सहारा लेता है. सामाजिक मान्यताओं और अपने विचारों के बीच के द्वन्द के चलते कई बार वह हस्तमैथुन के उपरांत अपराध बोध महसूस करता है. डॉक्टर कृष्णन बताती है कि हस्तमैथुन एक बहुत ही आम प्रक्रिया है, जो सामान्य आवृती में दोहराए जाने पर शरीर और मस्तिष्क दोनों को तनाव मुक्त बनाती है, इसलिए इसे गलत तथा अनैतिक कहा जाना सही नहीं है.