38 वर्षीय राघव पिछले कुछ समय से काफी परेशान चल रहा था. कारण यह था कि वह और उसकी पत्नी नीरा तमाम कोशिशों के बाद भी संतान सुख प्राप्त नहीं कर पा रहे थे. दरअसर अपनी शादी के तुरंत बाद ही राघव और उसकी पत्नी ने निर्णय लिया था कि अगले पांच साल वे बच्चा प्लान नहीं करेंगे. लेकिन पांच साल बाद जब लगातार कोशिशों के बावजूद वे संतान उत्पत्ति में सफल नहीं हो पाये, तो उन्होंने अपनी जांच करवाई जिसमें पता चला की नीरा तो बिलकुल ठीक है. लेकिन राघव को पुरुष बांझपन की समस्या है, क्योंकि उसके शरीर में शुक्राणुओं की संख्या लगातार कम हो रही है. जिससे वह संतान उत्पत्ति में सक्षम नहीं है.
यह किस्सा सिर्फ राघव का नहीं, बल्कि आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में सपनों के पीछे भाग रहे बहुत से युवाओं की कहानी है. जो पहले तो अपने शरीर की सीमाओं को नहीं समझते हुए संतानोपत्ति में देर करते हैं और बाद में जब समस्या बड़ी हो जाती है, तब हाथ मलते रह जाते हैं. आंकड़ों की मानें तो पिछले कुछ सालों में पुरुष बांझपन की घटनाएं काफी बढ़ी है. आखिर क्या होता है पुरुष बांझपन. इस बारे में ETV भारत सुखीभवा टीम से बात करते हुए मशहूर एंडरोलॉजिस्ट डॉ. राहुल रेड्डी ने जानकारी दी है.
क्या है पुरुष बांझपन का कारण
डॉ. रेड्डी बताते हैं कि यदि कोई पुरुष पिता बनने में असमर्थ हो तो उसकी समस्या को पुरुष बांझपन यानि मेल इन्फर्टिलिटी कहते है. यह बात सभी जानते हैं कि बच्चे के जन्म के लिए पुरुष शुक्राणुओं का महिलाओं के अंडकोष तक पहुंचना जरूरी है. लेकिन कई बार बढ़ती उम्र, खराब जीवन शैली तथा कई बार अनुवांशिक कारणों से पुरुष के शरीर में या तो पर्याप्त मात्रा में शुक्राणुओं का निर्माण नहीं हो पाता है या फिर जो शुक्राणु बनते भी है, वह स्वस्थ्य नहीं होते हैं. जिसके फलस्वरूप वे संतान प्राप्ति से वंचित रह जाते है. पुरुष बांझपन के लिए मुख्यतः तीन कारण माने गए हैं.
पहला शरीर में शुक्राणुओं के निर्माण में कमी, दूसरा शुक्राणुओं की गुणवत्ता खराब होना तथा तीसरा शुक्राणुओं का असामान्य आकार. इसके अलावा पुरुष बांझमन के विभिन्न कारणों को वर्गीकृत भी किया गया है. जो इस प्रकार है:
एजोस्पर्मिया:डॉ. रेड्डी बताते हैं कि पुरुष के शुक्राणुओं से महिला का एग निषेचित यानि फर्टिलाइज होता है. अब शुक्राणुओं को महिला के अंडकोष तक पहुंचाने का कार्य वीर्य करता है. परन्तु कई बार पुरुष के शरीर में महिला के अंडे को निषेचित करने के लिए पर्याप्त मात्रा और स्वस्थ रूप में शुक्राणुओं की उत्पत्ति नहीं होती है. यह अवस्था एजोस्पर्मिया कहलाती है.