कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए महामारी का यह दौर बहुत संवेदनशील है। जिसका नतीजा यह है की दिल के मरीज अचानक मौत और संक्रमण के गंभीर प्रभाव होने के डर के साए में जी रहे हैं।
आंकड़ों की माने तो पिछले एक साल में कोरोना संक्रमण से पीड़ितों में कार्डिएक अरेस्ट के कारण होने वाली मौतों की संख्या में काफी वृद्धि देखी है। कोरोना की दूसरी लहर में कोविड-19से ठीक होने के उपरांत अचानक हुई मौतें सबसे ज्यादा कार्डियक अरेस्ट के कारण ही हुई। इसलिए चिकित्सकों और जानकारों की ओर से हृदय रोगों के इतिहास वाले लोगों को शीघ्र अतिशीघ्र टीकाकरण करवाने की सलाह दी गई थी।
हालांकि कुछ लोग अभी भी कोविड-19 टीकों के बारे में प्रसारित भ्रम में विश्वास कर रहे हैं, लेकिन वर्तमान समय में चिकित्सकों द्वारा विशेषकर हृदय रोगियों के लिए वैक्सीन शॉट अनिवार्य बताया गया है। इस तथ्य ने उस प्रश्न का जवाब दे दिया जो लंबे समय से लोगों की जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ था की, क्या कोविड-19 टीके हृदय रोग वाले लोगों के लिए सुरक्षित हैं?
वैसे तो कोविड-19 टीकाकरण के उपरांत पार्श्वप्रभावों के रूप में ह्रदय रोगियों में गिलैन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस),रक्त के थक्कों में वृद्धि,मायोकार्डिटिस (हृदय की मांसपेशियों की सूजन),या एनाफिलेक्सिस (एक एंटीजन के लिए तीव्र एलर्जी प्रतिक्रिया) के जोखिम नजर आने की बात सामने आई है| लेकिन आँकड़े बताते हैं की इस प्रकार के अधिकांश दुष्प्रभाव टीकाकरण के कुछ सप्ताह बाद तक ही रहते हैं। ये समस्याएं लंबी अवधि तक नहीं चलती हैं। समय से इन समस्याओं की जानकारी होने पर उनका निदान तथा प्रबंधन दोनों संभव हैं।
आंकड़ों के अनुसारटीकों से जुड़े गंभीर दुष्प्रभाव का औसत, सामान्य आबादी पर अन्य बीमारियों के पार्श्व प्रभावों के मुकाबले औसत से भी कम हैं। उदाहरण के लिए,सामान्य संक्रमणों के साथ गिलैन-बैरे सिंड्रोम से होने वाला नुकसान, कोरोना पीड़ितों के मुकाबले 17 गुना अधिक होने की आशंका रहती है। इस संबंध में की विभिन्न जांच रिपोर्टें बताती हैं कि कोविड-19 के टीके न केवल हृदय रोगियों के लिए सुरक्षित हैं,बल्कि वे उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण भी हैं।