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डिमेंशिया का जोखिम कम कर सकता है लिथियम : शोध

मूड स्टेबलाइजर 'लिथियम' डिमेंशिया जैसी बीमारी से बचाव में काफी उपयोगी हो सकता है. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के एक शोध में यह बात सामने आई है.

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लिथियम कम कर सकता है डिमेंशिया का जोखिम : शोध

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Published : Mar 22, 2022, 9:11 PM IST

आमतौर पर डिमेंशिया को बुजुर्ग लोगों की आम बीमारी माना जाता है, जिसमें व्यक्ति की याददाश्त कमजोर हो जाती है. चिंता की बात यह है कि वर्तमान में डिमेंशिया के रोगियों की संख्या में काफी ज्यादा बढ़ोतरी देखी जा रही है. डिमेंशिया पर उपलब्ध आंकड़ों की मानें तो वर्तमान समय में दुनिया भर में लगभग साढ़े पांच करोड़ से ज्यादा लोग डिमेंशिया के शिकार हैं. इस बीमारी की गंभीरता के मद्देनजर दुनिया भर में इसके इलाज तथा इससे पीड़ित लोगों की स्थिति को बेहतर करने के लिए उपयोगी उपायों के बारे में शोध आयोजित किए जाते रहे हैं. इसी श्रृंखला में हाल ही में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने भी एक अध्ययन किया था, जिसमें सामने आया कि मूड स्टेबलाइजर 'लिथियम' की मदद से डिमेंशिया के खतरे को कम किया जा सकता है.

शोध में हुआ 30,000 रोगियों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड का विश्लेषण
जर्नल पीएलओएस मेडिसिन में प्रकाशित इस अध्ययन में इस बात का समर्थन किया गया है कि लिथियम डिमेंशिया की रोकथाम तथा उपचार में काफी प्रभावी हो सकता है. गौरतलब है कि इस शोध में कैम्ब्रिजशायर और पीटरबरो एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट के लगभग 30,000 ऐसे रोगियों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड का पूर्वव्यापी विश्लेषण किया गया था, जिनकी उम्र 50 साल से अधिक थी और जिन्होंने 2005 और 2019 के बीच एनएचएस मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग किया. शोध में पाया गया था कि ऐसे मरीज जिन्होंने लिथियम का सेवन किया था उनमें ऐसा न करने वालों की तुलना में डिमेंशिया का खतरा काफी कम देखा गया. लेकिन यहां यह जानना भी जरूरी है कि शोध में शामिल ऐसे लोगों का आंकड़ा काफी कम था जिन्होंने लिथियम का सेवन किया था.

अध्ययन के दौरान पाया गया कि 29,618 रोगियों में से सिर्फ 548 रोगियों का इलाज लिथियम से किया गया था. शोध में जिन लोगों के स्वास्थ्य डेटा का विश्लेषण किया गया था, उनकी औसत आयु 74 वर्ष से कम थी और उनमें से लगभग 40 प्रतिशत रोगी पुरुष थे. अध्ययन में सामने आया कि जिन लोगों के इलाज के लिए लिथियम की मदद ली गई थी, उनमें से 53 / 9.7 प्रतिशत को मनोभ्रंश का निदान दिया गया था. वहीं जिस समूह को लिथियम नहीं मिला था, उसमें 3,244 / 11.2 प्रतिशत को मनोभ्रंश का निदान किया गया था.

शोध का उद्देश्य तथा निष्कर्ष
कैंब्रिज डिपार्टमेंट ऑफ साइकेट्रिक के प्रोफेसर तथा इस अध्ययन के मुख्य लेखक डॉ. शानकेन चेन ने शोध के निष्कर्षों में बताया है कि डिमेंशिया से ग्रस्त लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है तथा दुनिया भर में यह रोग बुजुर्गों के बीच विकलांगता और निर्भरता के सबसे बड़े कारणों में से एक है. शोध में उन्होंने बताया है कि यदि अलग-अलग माध्यमों या उपचार की मदद से डिमेंशिया को इसके होने की संभावित आयु से तकरीबन पांच साल तक टाल दिया जाए तो पीड़ित के शरीर पर इसके प्रभाव को 40 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है.

शोध में डॉक्टर शेन ने बताया है कि इस संबंध में पूर्व में किए गए कुछ अध्ययनों में यह संभावना जताई गई थी कि ऐसे लोग जो डिमेंशिया का शिकार हो चुके हैं या फिर जिनमें याददाश्त संबंधी समस्याएं होनी शुरू हो चुकी है उनमें लिथियम का उपयोग संभावित उपचार के रूप में किया जा सकता है. लेकिन आकार में सीमित होने के चलते यह अध्ययन इस बात की पुष्टि नहीं कर पाए थे कि लिथियम डिमेंशिया के विकास को कम करने या उसे पूरी तरह रोकने में कितना प्रभावी है. उन्होंने बताया कि इस शोध का उद्देश्य इसी धारणा की पुष्टि करना तथा डिमेंशिया के उपचार में लिथियम की उपयोगिता जानना था.

वह बताते हैं कि दरअसल लिथियम एक मूड स्टेबलाइजर या व्यवहार को नियंत्रित करने वाली दवाई है, जिसका उपयोग आमतौर पर बाइपोलर डिसऑर्डर या डिप्रेशन यानी अवसाद जैसी मानसिक समस्याओं के इलाज में किया जाता है. गौरतलब है कि इन दोनों ही अवस्थाओं को डिमेंशिया के लिए ट्रिगर के रूप में देखा जाता है. यानी इन दोनों प्रकार की समस्याओं से पीड़ित लोगों में डिमेंशिया होने का खतरा काफी ज्यादा देखा जाता है.

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