नई दिल्ली :सुरक्षित जल आपूर्ति एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था का आधार होती है, फिर भी दुर्भाग्यवश विश्व स्तर पर इसे प्रमुखता नहीं दी गई है. एक अनुमान के अनुसार जल से होने वाले रोगों के लिए भारत पर प्रति वर्ष लगभग 42 अरब रूपये का आर्थिक बोझ है. यह विशेष रूप से सूखे और बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों की एक कड़वी सच्चाई है, जिसका देश के एक तिहाई हिस्से पर पिछले कुछ वर्षों से असर पड़ा है.
भारत में 50 प्रतिशत से भी कम आबादी के पास पीने का सुरक्षित पानी उपलब्ध है. 1.96 करोड़ आवासों में मुख्य रूप से फ्लोराइड और आर्सेनिक युक्त पानी जाता है. जो शुद्ध पेयजल नहीं कहा जा सकता है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अनुसार, भारत में पानी में मौजूद अतिरिक्त फ्लोराइड 19 राज्यों में करोड़ों लोगों को प्रभावित कर रहा है.
यह महत्वपूर्ण है कि भारत के 718 जिलों के दो-तिहाई हिस्से पानी की अत्यधिक कमी से प्रभावित हैं और वर्तमान में पानी की सुरक्षा और इसके लिए योजना की कमी एक प्रमुख चिंता का विषय है. भारत को भूजल का दुनिया का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता माना जाता है. हालांकि, पिछले कुछ दशकों में बोरिंग के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण इस स्रोत में तेज़ी से कमी हो रही है. 3 करोड़ से अधिक भूजल आपूर्ति केंद्रों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी की 85 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 48 प्रतिशत आवश्यकताओं की पूर्ति होती है.
ऐसे में सभी ग्रामीण घरों में सुरक्षित पेयजल पहुंचाने की जल जीवन मिशन की महत्वाकांक्षा अत्यधिक मूल्यवान होने की संभावना है, जिससे सालाना लगभग 1,36,000 बच्चों की मौत को रोका जा सकेगा. यह नोबेल पुरस्कार विजेता माइकल क्रेमर द्वारा आकांक्षा सालेटोर, विटोल्ड विसेक और आर्थर बेकर के साथ भारत में सुरक्षित पेयजल तक पहुंच के माध्यम से बाल मृत्यु दर में संभावित कमी नामक एक पेपर के अनुसार कहा गया है.
विशेषज्ञों ने कहा, हम मंत्रालय के साथ काम करने की उम्मीद करते हैं और पानी की गुणवत्ता के उपचार जैसे कि रीक्लोरिनेशन के संभावित समाधानों का परीक्षण करके इस प्रयास में सहायता करते हैं. जल जीवन मिशन (जेजेएम) का उद्देश्य ग्रामीण भारत के सभी घरों में 2024 तक घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना है.