25 जुलाई 1978 को इंग्लैंड के मैनचेस्टर के ओल्ड हैम और डिस्ट्रिक्ट जनरल अस्पताल में आईवीएफ तकनीक की मदद से जन्में लेस्ली और पीटर ब्राउन के पुत्र लुईस जॉय ब्राउन के जन्म ने पूरी दुनिया में लोगों के सामने, विशेषकर उन दंपतियों के सामने जो माता पिता बनने में प्राकृतिक तौर पर सक्षम नहीं हो पा रहे थे उम्मीद की एक किरण जगा दी थी। इसके उपरांत अब तक दुनिया भर में हजारों-लाखों दंपती आईवीएफ तकनीक के माध्यम से संतान प्राप्त कर चुके हैं। इस वरदान यानी टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक “रॉबर्ट एडवर्ड” को 2010 में चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । भारत ने भी विश्व के पहले टेस्ट ट्यूब बच्चे के जन्म के लगभग 70 दिनों बाद ही यह उपलब्धि हासिल कर ली थी। इस वर्ष हम आईवीएफ की 43वीं वर्षगांठ मना रहे हैं।
क्या है आईवीएफ तकनीक
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन एक ऐसी उपचार पद्धति है जिसमें विभिन्न जटिल प्रक्रियाओं की मदद से लैब में भ्रूण निर्माण कर उसे माता के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान अंडाशय से परिपक्व अंडे एकत्र किए जाते हैं और एक प्रयोगशाला में शुक्राणुओं द्वारा निश्चित किए जाते हैं फिर निषेचित अंडे यानी भ्रूण को माता के गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में लगभग 3 सप्ताह का समय लगता है। हालांकि यह प्रक्रिया सस्ती नही है और हमेशा 100% नतीजे नही देती है, लेकिन यदि अच्छे और प्रमाणित फर्टिलिटी क्लिनिक में यह इलाज करवाया जाय अधिकांश प्रयासों में दंपति सफल नतीजे प्राप्त कर सकते हैं।
रिप्रोडक्टिव मेडिसिन तथा सर्जरी विशेषज्ञ तथा के.आई.एम.एस फर्टिलिटी सेंटर, हैदराबाद में मदरहुड फर्टिलिटी विभाग की निदेशक तथा विभागाध्यक्ष डॉ. एस. वैजयंती बताती है, कि आमतौर पर लोगों में आईयूआई तथा आईवीएफ को लेकर काफी भ्रम रहता है। हालांकि यह दोनों ही पद्धति वैज्ञानिक रूप से भ्रूण निर्माण का कार्य करती हैं। लेकिन यह दोनों ही पद्धतियां बिल्कुल अलग हैं। आईवीएफ पद्धति में प्रजनन विशेषज्ञ महिलाओं की ओवरी से अंडा लेकर पुरुष स्पर्म के साथ लैबोरेट्री में उनका निषेचन करते हैं। इस प्रक्रिया के उपरांत निर्मित भ्रूण को महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
किन समस्याओं में आईवीएफ उपचार है फायदेमंद
- फैलोपियन ट्यूब में रुकावट।
- ऐसा बांझपन जिसके कारणों को ज्ञात नहीं किया जा सका हो, यानी सभी जांचों के नतीजों के सामान्य आने के बावजूद भी गर्भधारण में समस्या होने पर।
- पुरुषों में स्पर्म से जुड़ी और समस्याएं, विशेषकर स्पर्म की संख्या में कमी और उनकी गुणवत्ता में खराबी।
- मध्यम या गंभीर एंडोमेट्रियोसिस।
- महिलाओं में अंडोत्सर्ग संबंधी समस्याएं।
- ओवरी में समस्याएं।