टाइप 1 मधुमेह के चलते जब व्यक्ति को नियमित तौर पर इंसुलिन लेना पड़ता है, तो उसके शरीर में बहुत से बदलाव आते हैं. अब ये बदलाव मानसिक भी होते हैं और शारीरिक भी. कई लोग इन बदलावों को झेल जाते हैं, जो नहीं झेल पाते वो जाने अनजाने ऐसी जीवन शैली को अपना लेते है, जो शरीर में और भी बहुत से विकारों को जन्म दे देती है. ऐसा ही एक विकार है डायबुलिमिया. जो वैसे तो खान पान संबंधी डिसऑर्डर कहलाता है, लेकिन चिकित्सक इसे मानसिक तथा व्यवहार परक बीमारी की श्रेणी में रखते हैं. कई बार यह अवस्था जानलेवा भी साबित हो सकता है. डायबुलिमिया के बारे में न्यूट्रिशीयन तथा मधुमेह सलाहकार दिव्या गुप्ता ने ETV भारत सुखीभव की टीम को विस्तार से जानकारी दी.
इटिंग डिसॉर्डर है डायबुलिमिया
दिव्या गुप्ता बताती हैं कि डायबुलिमिया शब्द डायबिटीज तथा बुलिमिया शब्द से मिलकर बना है. इस अवस्था का असर पीड़ित व्यक्ति के शरीर के साथ उसकी मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है. कई जानकार व चिकित्सक इसे व्यावहारिक अस्वस्थता भी कहते हैं. दरअसल बुलिमिया एक इटिंग डिसॉर्डर है, जिसमें व्यक्ति वजन कम करने के लिए बहुत सख्त डाइट अपना लेता है. डायबुलिमिया शब्द उन मधुमेह टाइप 1 मरीजों के लिए इस्तेमाल में आता है, जो इंसुलिन के चलते अपने बढ़ते वजन को कम करने के लिए अपनी इंसुलिन खुराक ही छोड़ देते हैं या कम कर देते है. यही नहीं वे तनाव का शिकार होकर खाना पीना भी कम कर देते है. इस अवस्था की शिकार ज्यादातर महिलाएं होती है, क्योंकि वह अपने वजन को लेकर ज्यादा सचेत रहना पसंद करती हैं. लेकिन ऐसा नहीं है की पुरुषों में यह बीमारी देखने में नहीं आती है. दरअसल इंसुलिन से शरीर का वजन बढ़ता है. वहीं कई बार तनाव या किसी अन्य बीमारी के चलते भी मधुमेह रोगी इंसुलिन कम करने के साथ खाना भी कम कर देते है, जिससे उनके शरीर में रक्त शर्करा कम हो जाती है, शरीर में केटॉन्स बनने लगते है. जिससे शरीर में केटोएसिडोसिस होने की आशंका बढ़ जाती है, जो मरीज को गंभीर अवस्था में भी पहुंचा सकता है.