इरिटेबल बाउल सिंड्रोम आंतों से संबंधित एक विकार है, जो बड़ी आंत को प्रभावित करता है। हालांकि यह एक आम रोग है, लेकिन इससे व्यक्ति का स्वास्थ्य तथा उसकी दिनचर्या दोनों ही प्रभावित होती है। चिकित्सक बताते हैं की दुनिया भर में हर ग्यारह में से एक व्यक्ति इस विकार से पीड़ित होता है। इरिटेबल बाउल सिंड्रोम को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसऑर्डर के तत्वावधान में अप्रैल माह को इरिटेबल बाउल सिंड्रोम जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है। हालांकि यह आयोजन यूनाइटेड स्टेट्स के स्वास्थ्य कैलेंडर का हिस्सा माना जाता है, लेकिन इस विकार को लेकर लोगों को जनजागरूक करने के उद्देश्य से दुनिया भर में अप्रैल माह में अभियान तथा कार्यक्रम आयोजित किये जाते है।
गौरतलब है की सर्वप्रथम वर्ष 1997 में इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसऑर्डर द्वारा इस आयोजन की शुरुआत की गई थी। इस वर्ष यह विशेष दिवस #IBSAwarenessMonth तथा #IBSEducation के साथ मनाया जा रहा है।
क्या है इरिटेबल बाउल सिंड्रोम?
यह विकार बड़ी आंत को प्रभावित करता है। जिसमें आंत की तंत्रिकाएं और मांसपेशियां अतिसंवेदनशील हो जाती हैं और उनके संकुचन की रफ्तार बढ़ जाती है। इस विकार में आमतौर पर रोगी को पेट में दर्द, बेचैनी तथा मल त्यागने में समस्या का सामना करना पड़ता है। इरिटेबल बाउल सिंड्रोम को स्पैस्टिक कोलन, इर्रिटेबल कोलन, म्यूकस कोइलटिस जैसे नामों से भी जाना जाता है। यह अलग-अलग कारणों से पनप सकता है। आंकड़ों की माने तो पुरुषों की तुलना में यह बीमारी महिलाओं को अधिक प्रभावित करती है।
कारण
- तनाव व अवसाद को इरिटेबल बाउल सिंड्रोम के मुख्य कारणों में से एक माना जाता है। दरअसल आंतों से सम्बंधित गतिविधियां मस्तिष्क द्वारा नियंत्रित की जाती हैं। इसलिए इरिटेबल बाउल सिंड्रोम को मस्तिष्क-आंत विकार भी कहा जाता है। शरीर में तनाव के ज्यादा बढ़ने पर मस्तिष्क की एड्रेनल ग्रंथियों से एड्रेनैलिन और कॉर्टिसॉल नाम के हार्मोनों का स्राव होता है। जिसकी वजह से पूरे पाचन तंत्र में जलन होने लगती है, जिससे पाचन नली में सूजन आ जाती है। जिसके नतीजतन बड़ी आंत द्वारा भोजन के पोषक तत्वों के अवशोषण के कार्य में परेशानियां आने लगती है।
- कुछ लोगों में चॉकलेट, फूल गोभी, दूध, बीन्स सहित कुछ विशेष खाद्यपदार्थ, शराब, गैस युक्त पेय, चाय-कॉफी, प्रोसेस्ड स्नैक्स, वसायुक्त तथा तले हुए आहार के कारण पेट में गैस बनती है, जिसके कारण पेट में अधिक तनाव उत्पन्न होता है और आंतों के कार्य पर असर पड़ता है।
- महिलाओं में हार्मोनल बदलाव के चलते भी यह समस्या हो सकती है। कई महिलाओं में यह समस्या मासिक चक्र के दिनों के आस-पास बढ़ जाती है।
- संवेदनशील कोलन या कमजोर रोग-प्रतिरोधक क्षमता के कारण भी यह समस्या पैदा हो सकती है।
- कई बार पेट में बैक्टीरियल इंफेक्शन के कारण भी इरिटेबल बॉयल सिंड्रोम हो सकता है।
लक्षण
इस विकार में आमतौर पर लोगों में कब्ज या दस्त की शिकायत देखने में आती है। इसके अलावा इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम कुछ मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं;
- दस्त/कब्ज होना
- पेट में दर्द
- मल त्याग में परेशानी
- पेट साफ ना होना
- अपक्व मल
- हाथ-पैरों में सूजन
- आलस्य
- चिड़चिड़ापन
- खट्टी डकारें
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सावधानी और बचाव
- इस रोग में पाचन शक्ति की गति कम हो जाती है, इसलिए रोग ठीक होने तक भर पेट खाना ना खाएं तथा भूख से अधिक भी कभी नहीं खाएं।
- एक समय के आहार में केवल एक अनाज और एक दाल या सब्जी ही लें। रोटी और चावल दोनों को इकट्ठे खाने से परहेज करें। ऐसा करने से पाचन तंत्र पर अधिक दबाव नहीं पड़ेगा।
- कम मिर्च मसाले का भोजन ग्रहण करें। तेज मिर्च और मसालों वाले भोजन से परहेज करें।
- नाश्ते, दोपहर के भोजन तथा रात्री भोजन के बीच कम से कम चार घण्टे का अंतराल रखें।
- दो आहारों के अंतराल में स्नैक्स जैसे बिस्कुट, नमकीन इत्यादि से भी बचे। खाने के समय का अनुशासन कड़ाई से पालन करें।
- भोजन को हमेशा धीरे-धीरे खाएं। खाना खाते समय जल्दबाजी ना करें।