International Day of Sign language : भारत में बधिरों की संख्या 50 लाख के पार, जानें श्रवण बाधितों के लिए कितना जरूरी है सांकेतिक भाषा
संयुक्त राष्ट्र महासभा की ओर से बधिरों के मानवाधिकारों के लिए सांकेतिक भाषा के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए 23 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस घोषित किया था. पढ़ें पूरी खबर..
हैदराबाद :वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ डेफ (world federation of the deaf) दुनिया भर के 135 देशों का एक संगठन है. यह दुनिया भर में बधिरों का प्रतिनिधित्व करता है. वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ डेफ के प्रस्ताव परअंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस मनाने का प्रस्ताव को 19 दिसंबर 2017 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से पास किया था. अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस 2023 की थीम- 'एक ऐसी दुनिया जहां बधिर समुदाय के लोग कहीं भी हस्ताक्षर कर सकते हैं' (A World Where Deaf People Can Sign Anywhere) निर्धारित किया गया है.
1951 में वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ डेफ की हुई थी स्थापना वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ डेफ की स्थापना की स्थापना 23 सितंबर को 1951 में किया गया था. इसलिए 23 सितंबर को ही अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस के रूप में चुना गया है. पहली बार अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस 23 सितंबर 2018 को मनाया गया था. सितंबर 1958 में अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा सप्ताह मनाया गया था. बधिरों के रोज के जीवन में आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए पहली बार इस दौरान चर्चा हुई थी.
सांकेतिक भाषा से जुड़े कुछ तथ्य
सुनने की क्षमता का मापक डेसीबल है. स्वस्थ व्यक्ति के सुनने की ऑडियोमेट्रिक के रूप में मापा जाता है. अगर किसी व्यक्ति को सुनने के लिए लिए 20 डीबी (डेसीबल) से तेज साउंड की जरूरत है तो मेडिकल साइंस के अनुसार श्रवण दोष है.
2021 में WHO की ओर से जारी World Report On Hearing के रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में श्रवण दोष से 15000 लाख (1.5 Billion) पीड़ित हैं. इनमें 4300 लाख लोग ( 430 Million) मध्यम या उच्च स्तर की श्रवण दोष से पीड़ित हैं.
विश्व बधिर महासंघ के श्रवण दोष से पीड़ित ज्यादातर लोग (करीबन 80 फीसदी) विकासशील देशों के निवासी हैं.
श्रवण दोष से पीड़ित सामूहिक रूप से 300 प्लस सांकेतिक भाषाओं का संवाद के लिए प्रयोग करते हैं.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में बधिरों की कुल आबादी 50 लाख थी.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 63 लाख (6.3 मिलियन) लोग श्रवण दोष (बहरापन) के शिकार हैं. यह भारतीयज जनसंख्या के 6.3 फीसदी है.
2000 के दशक में भारत के बधिर समुदाय के लिए भारतीय सांकेतिक भाषा (Indian Sign language ) की मांग उठी.
11 वीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012) में भारतीय सांकेतिक भाषा के लिए योजना को स्वीकार किया गया.
प्रस्ताव के तहत सांकेतिक भाषा को बढ़ावा देने के लिए इसके शिक्षण व प्रशिक्षण के लिए के लिए शोध संस्थान बनाने का निर्णय लिया गया.
सांकेतिक भाषा के लिए शिक्षकों और दुभाषियों के ट्रेनिंग के लिए सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र के लिए 2010-11 के बजट में प्रावधान किया गया.
बधिर समुदाय की ओर से लंबी लड़ाई के बाद 28 सितंबर 2015 को ISLRTC की मंजूरी दी गई.
इसके तहत भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र (Indian Sign Language Research And Training Centre-ISLRTC) स्थापित किया गया.
भारत में आज भी बधिरों से संचार के लिए दुभाषियों की काफी कमी है. एक अनुमान के मुताबिक देश में इसकी संख्या 300-400 है.
पूरी तरीके से श्रवण दोष से पीड़ित व्यक्तियों के लिए परंरागत भाषा में संवाद संभव नहीं हो पायेगा. इनके संवाद के लिए ज्यादातर जगहों पर सांकेतिक भाषाओं का उपयोग किया जाता है. दुनिया भर में सांकेतिक भाषाओं में एकरूपता नहीं है. कई भाषाएं लुप्त हो चुकी हैं. इस कारण अलग-अलग जगहों के रहने वाले श्रवण दोष से पीड़ित लोगों की सुविधा के लिए सांकेतिक भाषाओं के समर्थन, सुरक्षा और विकास पर बल दिया जा रहा है.
बता दें कि सामान्य भाषाओं के बराबर ही सांकेतिक भाषाओं का महत्व बराबर है. दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेंशन सभी देशों को सांकेतिक भाषा सीखने की सुविधा उपलब्ध कराने और बधिर समुदाय से जुड़े लोगों की भाषाई पहचान को बढ़ावा देने के लिए पूरी तरीके से बाध्य करती है.