मानसिक स्वास्थ्य के नजरिए से देखा जाए तो वर्ष 2020 एक काला साल रहा, क्योंकि मुख्यतः कोविड-19 चलते उत्पन्न परिस्थितियों और उनसे उत्पन्न अवसाद, दबाव और चिंताओं के चलते बहुत से लोगों ने अपने जीवन आत्महत्या करके समाप्त कर ली. इस साल निराशा, तनाव और अवसाद के बेहिसाब मामले दर्ज हुए. वहीं लॉकडाउन के कारण मानसिक रोगियों की दवाइयों की सप्लाई में कमी के कारण भी डिमेंशिया, अल्जाइमर तथा पर्किनसन जैसी बीमारियों के मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. इनके अलावा भी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली घरेलू हिंसा तथा पारिवारिक कलह जैसे मामले को लेकर भी मनोचिकित्सकों से बड़ी संख्या में सलाह मांगी गई. इस साल जिन मानसिक रोगों और अवस्थाओं ने सबसे ज्यादा लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया, उनमें से कुछ मुख्य इस प्रकार हैं;
तनाव, अवसाद के मामलों में बेहिसाब बढ़ोतरी
साल की शुरुआत से ही जैसे कोरोना वायरस के फैलने की सूचनाएं लोगों में प्रसारित होने लगी तथा वायरस के संक्रमण की वजह से पूरे देश में लॉकडाउन लागू किया गया, तो स्वास्थ्य और आर्थिक अवस्था, दोनों को लेकर लोगों के मन में चिंताए बढ़ने लगी. इसके अलावा कोरोना के दौरान लॉकडाउन के चलते घर में बंद लोग जेल जैसा महसूस करने लगे. इन सब बातों और परिस्थितियों के कारण लोगों में मानसिक अवसाद के मामले तेजी से बढ़ने लगे.
इस संक्रमण के पीड़ितों में भी बड़ी संख्या में अवसाद के मामले देखने में आए. भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का कहना है कि कोरोना महामारी के दौरान इस बीमारी से पीड़ित लगभग 30 फीसदी लोग अवसाद या डिप्रेशन का शिकार हुए हैं.
इसके अलावा तालाबंदी के कारण घर में रहने को मजबूर लोगों में भी बड़ी संख्या में आपसी असहमती के चलते पारिवारिक कलह और घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई. जिनसे लोगों में तनाव व अवसाद की घटनाएं भी बढ़ गई.
यही नहीं बच्चों में भी इस वर्ष अवसाद और तनाव के काफी ज्यादा मामले देखने में आए. बच्चों और टीनेजर्स में स्कूल कॉलेज बंद होने के कारण घर में होने वाली ऑनलाइन कक्षाओं के चलते बढ़ते दबाव, पूरा समय घर पर ही रहने की मजबूरी, और कोरोना के कारण होने वाली चिंता, बैचनी और डर के कारण तनाव और अवसाद उत्पन्न हुआ. यह स्थिति इतनी चिंतनीय रही की कई राज्य सरकारों ने पहल कर बच्चों के लिए ऑनलाइन काउंसलिंग सेशन की भी शुरुआत की.
आत्महत्या के मामले बढ़े