लखनऊ : पानीदार पनियाला अब भौतिक और रासायनिक विश्लेषण के लिए तैयार है. जल्द ही इन पौधों का वैज्ञानिक परीक्षण शुरू होगा. न सिर्फ इनके स्वस्थ्य संबंधी गुणों की पहचान होगी. बल्कि अन्य गुण भी सामने आयेंगे. इसे जीआई में शामिल करने के प्रयास तेज हैं. लखनऊ रहमान स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों ने गोरखपुर और पड़ोसी जिलों के पनियाला बाहुल्य क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया.
संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डा. दुष्यंत मिश्र एवं डा. सुशील कुमार शुक्ल ने कुछ स्वस्थ पौधों से फलों के नमूने लिए. दोनों वैज्ञानिकों ने बताया कि अब संस्था की प्रयोगशाला में इन फलों का भौतिक एवं रासायनिक विश्लेषण कर उनमें उपलब्ध विविधता का पता किया जा जाएगा. उपलब्ध प्राकृतिक वृक्षों से सर्वोत्तम वृक्षों का चयन कर उनको संरक्षित करने के साथ कलमी विधि से नए पौधे तैयार कर इनको किसानों और बागवानों को उपलब्ध कराया जाएगा.
उल्लेखनीय पनियाला को इंडियन कॉफी प्लम और पानी आंवला के नाम से भी जाना जाता है. इनके पेड़ उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज क्षेत्रों में पाये जाते हैं. पांच छह दशक पहले इन क्षेत्रों में बहुतायत में मिलने वाला पनियाला अब लुप्तप्राय है. केंदीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ( Central Institute for Subtropical Horticulture - CISH ) के निदेशक टी दामोदर ने बताया कि इसके पत्ते, छाल, जड़ों एवं फलों में एंटी बैक्टिरियल प्रापर्टी होती है. इसके नाते पेट के कई रोगों में इनसे लाभ होता है.
इन रोगों में है लाभकारी
स्थानीय स्तर पर पेट के कई रोगों, दांतों एवं मसूढ़ों में दर्द, इनसे खून आने, कफ, निमोनिया और खरास आदि में भी इसका प्रयोग किया जाता रहा है. फल लीवर के रोगों में भी उपयोगी पाए गए हैं. उन्होंने बताया कि पनियाला का फल विभिन्न एंटीक्क्सीडेंट्स भी मिलते हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश के छठ त्योहार पर इसके फल 300 से 400 रुपये किलो तक बिक जाते हैं . इन्हीं कारणों से इस फल को भारत सरकार द्वारा गोरखपुर का भौगोलिक उपदर्श (जियोग्राफिकल इंडिकेटर) बनाने का प्रयास जारी है. इनके फलों को जैम, जेली और जूस के रूप में संरक्षित कर लंबे समय तक रखा जा सकता है. लकड़ी जलावन और कृषि कार्यो के लिए उपयोगी है.