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ICAR- CISH इंडियन कॉफी प्लम या पानी आंवला का केमिकल एनालिसिस करेगा

इंडियन कॉफी प्लम और पानी आंवला के नाम से प्रचलित पानीदार पनियाला का वैज्ञानिक परीक्षण शुरू होगा. ICAR से संबद्ध Central Institute for Subtropical Horticulture - CISH के वैज्ञानिकों ने पनियाला बाहुल्य क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया है. पेट के कई रोगों में इनसे लाभ होता है.

Indian Coffee Plum paniyala scientific test in gorakhpur neighboring districts by ICAR cish
इंडियन कॉफी प्लम या पानी आंवला पानीदार पनियाला

By IANS

Published : Nov 28, 2023, 10:55 AM IST

Updated : Nov 29, 2023, 5:59 AM IST

लखनऊ : पानीदार पनियाला अब भौतिक और रासायनिक विश्लेषण के लिए तैयार है. जल्द ही इन पौधों का वैज्ञानिक परीक्षण शुरू होगा. न सिर्फ इनके स्वस्थ्य संबंधी गुणों की पहचान होगी. बल्कि अन्य गुण भी सामने आयेंगे. इसे जीआई में शामिल करने के प्रयास तेज हैं. लखनऊ रहमान स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों ने गोरखपुर और पड़ोसी जिलों के पनियाला बाहुल्य क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया.

संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डा. दुष्यंत मिश्र एवं डा. सुशील कुमार शुक्ल ने कुछ स्वस्थ पौधों से फलों के नमूने लिए. दोनों वैज्ञानिकों ने बताया कि अब संस्था की प्रयोगशाला में इन फलों का भौतिक एवं रासायनिक विश्लेषण कर उनमें उपलब्ध विविधता का पता किया जा जाएगा. उपलब्ध प्राकृतिक वृक्षों से सर्वोत्तम वृक्षों का चयन कर उनको संरक्षित करने के साथ कलमी विधि से नए पौधे तैयार कर इनको किसानों और बागवानों को उपलब्ध कराया जाएगा.

उल्लेखनीय पनियाला को इंडियन कॉफी प्लम और पानी आंवला के नाम से भी जाना जाता है. इनके पेड़ उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज क्षेत्रों में पाये जाते हैं. पांच छह दशक पहले इन क्षेत्रों में बहुतायत में मिलने वाला पनियाला अब लुप्तप्राय है. केंदीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ( Central Institute for Subtropical Horticulture - CISH ) के निदेशक टी दामोदर ने बताया कि इसके पत्ते, छाल, जड़ों एवं फलों में एंटी बैक्टिरियल प्रापर्टी होती है. इसके नाते पेट के कई रोगों में इनसे लाभ होता है.

इन रोगों में है लाभकारी
स्थानीय स्तर पर पेट के कई रोगों, दांतों एवं मसूढ़ों में दर्द, इनसे खून आने, कफ, निमोनिया और खरास आदि में भी इसका प्रयोग किया जाता रहा है. फल लीवर के रोगों में भी उपयोगी पाए गए हैं. उन्होंने बताया कि पनियाला का फल विभिन्न एंटीक्क्सीडेंट्स भी मिलते हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश के छठ त्योहार पर इसके फल 300 से 400 रुपये किलो तक बिक जाते हैं . इन्हीं कारणों से इस फल को भारत सरकार द्वारा गोरखपुर का भौगोलिक उपदर्श (जियोग्राफिकल इंडिकेटर) बनाने का प्रयास जारी है. इनके फलों को जैम, जेली और जूस के रूप में संरक्षित कर लंबे समय तक रखा जा सकता है. लकड़ी जलावन और कृषि कार्यो के लिए उपयोगी है.

ज्ञात हो कि पनियाला का रंग जामुनी होता है. साइज में जामुन से कुछ बड़ा और आकर में लगभग गोल पनियाला का स्वाद, कुछ खट्टा मीठा और थोड़ा सा कसैला. आज से चार पांच दशक पूर्व यह गोरखपुर का खास फल हुआ करता था. नाम के अनुरूप इसके स्वाद को याद कर इसे देखते ही मुंह में पानी आ जाता था. औषधीय गुणों से भरपूर पनियाला के लिए जीआई टैगिंग संजीवनी साबित होगी. इससे लुप्तप्राय हो चले इस फल की पूछ बढ़ जाएगी. सरकार द्वारा इसकी ब्रांडिंग से भविष्य में यह भी टेरोकोटा की तरह गोरखपुर का ब्रांड होगा.

प्रगतिशील किसान इंद्रप्रकाश सिंह के अनुसार जीआई टैग मिलने का लाभ न केवल गोरखपुर के किसानों को बल्कि देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, बहराइच, गोंडा और श्रावस्ती के बागवानों को भी मिलेगा. क्योंकि ये सभी जिले समान एग्रोक्लाईमेटिक जोन (कृषि जलवायु क्षेत्र) में आते हैं. इन जिलों के कृषि उत्पादों की खूबियां भी एक जैसी होंगी.

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Last Updated : Nov 29, 2023, 5:59 AM IST

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