किसी भी महिला के लिए गर्भावस्था के 9 महीने, ऐसा समय होता है, जब वह कई तरह के शारीरिक और मानसिक बदलावों से गुजर रही होती है. जिसके चलते इस अवधि में वह शारीरिक व मानसिक रूप से ज्यादा संवेदनशील भी हो जारी है. जैसे वह अपेक्षाकृत जल्दी थक सकती है, या कई बार उसके शरीर में बदलाव का प्रभाव पेट, कमर या पैरों में दर्द या सूजन के रूप में भी नजर आ सकता है या फिर वह व्यवहारिक रूप से इतनी ज्यादा संवेदनशील हो जाती है कि उसे कई बार तनाव भी ज्यादा महसूस होने लगता है. इस अवस्था में किसी भी कारण से उसे तथा उसके गर्भ में पल रहे शिशु को कोई नुकसान ना पहुंचे इसके लिए उसे कई सावधानियों को बरतने की सलाह दी जाती है. इन सावधानियों की लिस्ट उस अवस्था में ज्यादा बढ़ जाती है यदि महिला कामकाजी हो.
उत्तराखंड की वरिष्ठ महिला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर विजयलक्ष्मी बताती हैं कि गर्भावस्था किसी भी महिला के लिए कोई बीमारी सरीखी अवस्था नहीं है. इस अवस्था में वह अपनी दिनचर्या के सामान्य कार्य कर सकती है, फिर चाहे वह घर के हो या दफ्तर के. लेकिन यह भी सत्य है कि इस दौरान उन्हे शारीरिक गतिविधियों को लेकर थोड़ा ज्यादा सचेत तथा सावधान रहने की जरूरत होती है. विशेषतौर वे महिलायें जो नियमित रूप से ऑफिस जाती हैं उनके लिए अपने आराम, चलने-फिरने तथा लंबी अवधि तक बैठ कर काम करने जैसी गतिविधियों के दौरान कुछ सावधानियों को बरतना जरूरी होता है.
ऑफिस में लें छोटे-छोटे ब्रेक
वह बताती हैं कि कई बार दफ्तर में कार्य करते समय महिला को लंबी अवधि तक बैठे रहना पड़ता है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि गर्भवती महिलाएं यह सुनिश्चित करें कि वह अपने कार्य के बीच में थोड़ा चलने-फिरने के लिए ब्रेक लेते रहें. इसके अलावा चलने-फिरने तथा अपनी कुर्सी पर उठने व बैठने में हड़बड़ी करने की बजाय आराम से उठे, बैठे, चले. इसे गिरने का या झटके लगने का खतरा कम रहता है.
डॉ विजयलक्ष्मी बताती हैं कि गर्भावस्था के दौरान जैसे-जैसे महिला का शरीर और उसका वजन बढ़ने लगता है, कई बार उसके शरीर के कुछ अंगों में विशेषकर पैरों में सूजन या दर्द की समस्या भी होने लगती है. लंबी अवधि तक पैर लटका कर बैठे रहने से यह समस्या ज्यादा बढ़ सकती है. इसलिए जहां तक संभव हो अपने पैरों के नीचे सपोर्ट के लिए छोटी टेबल या स्टूल रखें. इससे एड़ी में दर्द और सूजन में कुछ हद तक राहत मिल सकती है.
व्यायाम व मेडिटेशन फायदेमंद
डॉ विजयलक्ष्मी बताती हैं कि कई बार इस अवधि में होने वाले तनाव में जब काम का तनाव भी मिल जाता है तो महिलायें ज्यादा परेशान महसूस करने लगती हैं. ऐसे में नियमित तौर पर मेडिटेशन तथा योग या अन्य प्रकार के व्यायाम ना सिर्फ तनाव को कम करते हैं बल्कि उनके शरीर को सक्रिय व स्वास्थ्य बनाए रखने में भी मदद करते हैं, लेकिन यहां यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि इस अवस्था में कुछ विशेष प्रकार के योग या व्यायाम से परहेज की बात कही जाती है. इसलिए बहुत जरूरी है कि किसी जानकार या विशेषज्ञ से सलाह लेकर ही अपनी व्यायाम रूटीन बनाना चाहिए.